आजादी के 75वर्ष बाद भी 'आरक्षण' 'योग्यता', 'समानता के अधिकार' और 'संविधान की मूल भावना' के बिपरीत और राष्ट्र के लिए बिनाशकारी: सच्चिदा नन्द श्रीवास्तव
लखनऊ: 'स्वतंत्र भारत न्यूज़' के संपादक सच्चिदा नन्द श्रीवास्तव जो 'समतामूलक समाज निर्माण मोर्चा' के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं, ने "ग़रीब सवर्णो को आरक्षण पर माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय" और उस पर जाने-माने पत्रकार - पुण्य प्रसून बाजपेयी की वीडियो और तमाम पत्रकारों की प्रतिक्रिया सुनने के बाद कहा कि, "यह सत्य प्रतीत होता है कि, आरक्षण का लाभ जिनको मिलना चाहिए, उनको नहीं मिल पाता है और ग़रीब सवर्णो के लिए लागू आरक्षण भी उनमे से एक है। दूसरा तथ्य यह भी है कि बाबा साहब आम्बेडकर ने भी मात्र 10 वर्षों के लिए ही किया था और तीसरा तथ्य यह भी है कि, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी पहले आरक्षण का प्रावधान अधिकतम 50% रखने का निर्णय सुनाया था परन्तु आज इस देश में संविधान में "समानता के अधिकार का प्रावधान" और "जाति या अन्य आधार पर भेदभाव नहीं करने का प्रावधान" केवल कहने के लिए रह गया है। जमीनी हकीकत तो इसके बिपरीत दिखाई दे रहा है। दरअसल इस देश के लोकतंत्र ने केवल वोट और सत्ता हथियाने के लिए आजादी के दस वर्ष बाद ही नहीं बल्कि सरकारों द्वारा तमाम विकाश के दावों और आजादी के 75 वर्ष बाद भी आरक्षणों को जारी रख कर एक तरफ योग्यताओं और योग्य युवाओं के भविष्य / देश के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है तो दूसरी तरफ लोगों को लालची और बेरोजगार बनाकर एवं जनता के धन को टैक्स के माध्यम से लूटकर देश और देशवासियों को आर्थिक गुलाम बनाया जा रहा है।
अतैव हमारा मानना है कि, "आजादी के 75 वर्ष बाद भी 'आरक्षण' "योग्यता, समानता के अधिकार और संविधान की मूल भावना के विपरीत है जो इस राष्ट्र के लिए विनाशकारी है!"
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पत्रकार - पुण्य प्रसून बाजपेयी की वीडियो