
लाइव 'ला': आर्य समाज मंदिरों में वैदिक या अन्य हिंदू रीति-रिवाजों के साथ संपन्न विवाह Hindu Marriage Act के तहत वैध : इलाहाबाद हाईकोर्ट
नई दिल्ली (लाइव 'ला'): इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में माना कि आर्य समाज मंदिरों में दो हिंदुओं (पुरुष और महिला) के बीच किए गए विवाह भी हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act), 1955 की धारा 7 के तहत वैध हैं, यदि वे वैदिक या अन्य प्रासंगिक हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार संपन्न किए गए हों और विवाह स्थल, चाहे वह मंदिर हो, घर हो या खुली जगह हो, ऐसे उद्देश्य के लिए अप्रासंगिक है।
जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि आर्य समाज मंदिर में विवाह वैदिक प्रक्रिया के अनुसार किए जाते हैं, जिसमें कन्यादान, पाणिग्रहण, सप्तपदी और सिंदूर लगाते समय मंत्रोच्चार जैसे हिंदू रीति-रिवाज और संस्कार शामिल हैं और ये समारोह 1955 अधिनियम की धारा 7 की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यद्यपि आर्य समाज द्वारा जारी प्रमाण-पत्र में विवाह की प्रथम दृष्टया वैधता का वैधानिक बल नहीं हो सकता, लेकिन ऐसे प्रमाण-पत्र 'बेकार कागज' नहीं हैं, क्योंकि उन्हें मामले की सुनवाई के दौरान भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के प्रावधानों के अनुसार पुरोहित (जिसने विवाह संपन्न कराया) द्वारा सिद्ध किया जा सकता है।
इन टिप्पणियों के साथ एकल जज ने महाराज सिंह नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें उनकी पत्नी द्वारा IPC की धारा 498-ए के तहत दायर मामला रद्द करने की मांग की गई थी।
न्यायालय में आवेदक का तर्क था कि चूंकि प्रतिवादी नंबर 2 के साथ उनका कथित विवाह आर्य समाज मंदिर में संपन्न हुआ था, इसलिए इसे वैध विवाह नहीं माना जा सकता। इसलिए उन्हें धारा IPC की 498-ए के तहत आरोपों का सामना करने का दायित्व नहीं है।
उनका यह भी तर्क था कि वास्तव में आर्य समाज मंदिर में कोई विवाह संपन्न नहीं हुआ। उनकी पत्नी द्वारा दायर विवाह प्रमाण-पत्र, जिसे कथित तौर पर आर्य समाज द्वारा जारी किया गया, जाली और मनगढ़ंत था।
दूसरी ओर, AGA ने उनकी दलील का विरोध किया, क्योंकि उन्होंने कहा कि प्रतिवादी नंबर 2 के बयान के साथ-साथ उनके गवाह (पुरोहित), जिन्होंने विवाह संपन्न कराया था, उनके अवलोकन से रिकॉर्ड पर पर्याप्त सबूत हैं कि विवाह हिंदू रीति-रिवाजों और संस्कारों के अनुसार संपन्न हुआ था।
यह भी तर्क दिया गया कि केवल इसलिए कि विवाह आर्य समाज मंदिर में संपन्न हुआ है, वह अमान्य नहीं हो जाता।
न्यायालय ने Hindu Marriage Act, 1955 की धारा 7 का उल्लेख किया और कहा कि हिंदू धर्म के पारंपरिक रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार संपन्न विवाह, अनुष्ठान के स्थान (चाहे वह मंदिर, घर या कोई खुली जगह हो) से परे वैध होगा।
इसके अलावा, न्यायालय ने हिंदू विवाह के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ पर विस्तार से बताया और कहा कि "हिंदू धर्म, जिसे सनातन धर्म (जिसका अर्थ है 'शाश्वत धर्म') के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया का सबसे पुराना धर्म है।"
एकल जज ने यह भी स्वीकार किया कि हिंदू धर्म एक गतिशील और विकसित परंपरा है, जो हमेशा सुधार के लिए खुला रहा है।
इसके अलावा, न्यायालय ने आर्य समाज की सुधारवादी विरासत पर भी प्रकाश डाला, जैसा कि उसने कहा:
"आर्य समाज भी एक मिशन है जिसकी स्थापना महान संत और सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल, 1875 को बॉम्बे में की थी। यह एकेश्वरवादी हिंदू सुधार आंदोलन था, जो एक ईश्वर में विश्वास करता है और जन्म के आधार पर जाति व्यवस्था का विरोध करता है।"
न्यायालय ने आगे बताया कि "वैदिक विवाह को हिंदू विवाह का सबसे पारंपरिक रूप माना जाता है," जिसमें वैदिक मंत्रों के जाप के साथ कन्यादान, पाणिग्रहण और सप्तपदी जैसे विशिष्ट अनुष्ठान किए जाते हैं।
न्यायालय ने कहा,
"हिंदू विवाह में विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में कई तरह की प्रथाएं शामिल हैं, जिनमें से कुछ में वैदिक रीति-रिवाज़ भी शामिल हैं। इसमें क्षेत्रीय रीति-रिवाज़ और परंपराएं भी शामिल हो सकती हैं। दोनों का मूल दो व्यक्तियों का पवित्र मिलन है, लेकिन वैदिक विवाह विशेष रूप से प्राचीन रीति-रिवाज़ों और पवित्र परंपराओं पर ज़ोर देता है। वैदिक विवाह को हिंदू विवाह का सबसे पारंपरिक रूप माना जाता है। वैदिक विवाह वेदों पर आधारित है, यह हिंदू विवाह का एक विशिष्ट प्रकार है, जिसमें विशेष अनुष्ठान और मंत्र होते हैं, जो अक्सर संस्कृत में किए जाते हैं। वैदिक विवाह में, कन्यादान, पाणिग्रहण और सप्तपदी की रस्में अक्सर वेदों के मंत्रों के साथ की जाती हैं।"
इस प्रकार, यह मानते हुए कि यदि आर्य समाज मंदिरों में भी वैदिक रीति-रिवाजों के साथ विवाह संपन्न होते हैं तो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 की आवश्यकताओं को पूरा करने तक यह वैध होगा।
मामले के तथ्यों पर वापस आते हुए न्यायालय ने प्रथम सूचनाकर्ता और आर्य समाज पुरोहित के बयानों पर विचार किया, जिसके अनुसार आवेदक नंबर 1 और प्रतिवादी नंबर 2 का विवाह आर्य समाज के राधा रानी मंदिर में हिंदू रीति-रिवाजों और संस्कारों के अनुसार संपन्न हुआ था।
इसलिए न्यायालय ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह मान लेना पर्याप्त है कि नियम, 1973 या विवाह रजिस्ट्रेशन रूल, 2017 के तहत रजिस्ट्रेशन न होने के बावजूद विवाह वैध था। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि इस तरह का पंजीकरण न होना वैध विवाह को अमान्य नहीं बनाता है।
इसके साथ ही याचिका खारिज कर दी गई, क्योंकि न्यायालय ने पाया कि आर्य समाज विवाह की अमान्यता के बारे में आवेदक का तर्क गलत था और यह तथ्य का विवादित प्रश्न है, इसलिए धारा 482 CrPC/528 BNSS के तहत निरस्तीकरण के चरण में इस पर विचार नहीं किया जा सकता।
(केस टाइटल- महाराज सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 133).
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(समाचार & फोटो साभार: लाइव 'ला')
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