रेल किराये में बढ़ोतरी के बाद अब छूट की तैयारी
नई दिल्ली: रेलवे ने नए साल से यात्री किराया बढ़ा दिया था और अब वह सभी श्रेणी की ट्रेनों में यात्रियों को खाली सीटों के आधार पर छूट देने की योजना बना रहा है। इनमें मेल, एक्सप्रेस, सुपरफास्ट और प्रीमियम ट्रेनें शामिल हैं। यह छूट उन ट्रेनों में उपलब्ध होगी जहां बड़ी संख्या में सीटें खाली होंगी।
इसे कम मांग वाली अवधि के दौरान यात्रियों की संख्या बढ़ाकर राजस्व में बढ़ोतरी की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। इसके तहत ऐसे मार्गों में किराये में छूट दी जाएगी जहां सड़कों के कारण रेलवे को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही कुछ ऐसे मार्ग भी हैं जहां ज्यादा स्टेशनों पर ठहराव के कारण ट्रेन को गंतव्य तक पहुंचने में बहुत समय लगता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हम श्रेणी आधारित छूट के मॉडल पर काम कर रहे हैं। यह उन सभी ट्रेनों पर लागू होगा जिनमें सीटें खाली जा रही हैं।"
रेल मंत्रालय के मुताबिक 2018-19 में शताब्दी एक्सप्रेस सहित विभिन्न ट्रेनों में प्रस्थान से गंतव्य तक भरी सीटों का औसत 70 से 100 फीसदी के बीच था। यह पहला मौका नहीं है जब रेलवे यात्रियों को लुभाने के लिए छूट दे रहा है। पहले से ही सभी तरह की ट्रेनों में पहला चार्ट तैयार होने के बाद खाली बची सीटों पर 10 फीसदी छूट की सुविधा दी जा रही है। इसके अलावा जिन ट्रेनों में श्रेणीवार भरी सीटें की संख्या 60 फीसदी से कम है, उनमें मांग आधारित किराये में छूट दी जा रही है।
2019-20 में कमाई के लक्ष्य को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही भारतीय रेल के लिए यात्री श्रेणी से ज्यादा राजस्व बेहद अहम है। रेलवे बोर्ड किराये को व्यावहारिक बनाने के लिए कई उपाय करने की योजना बना रहा है और किरायों में हाल में की गई बढ़ोतरी इसका हिस्सा है। रेलवे ने 1 जनवरी से विभिन्न श्रेणियों में यात्री किराये में एक पैसे से लेकर चार पैसे प्रति किलोमीटर की बढ़ोतरी की थी। उपनगरीय और मासिक टिकटों को इस बढ़ोतरी से दूर रखा गया था।
अप्रैल से नवंबर की अवधि के दौरान रेलवे की कमाई में 12.28 फीसदी यानी 16,391 करोड़ रुपये की गिरावट आई। रेलवे ने 133482.68 करोड़ रुपये की कमाई का लक्ष्य रखा था लेकिन उसे 117091.44 करोड़ रुपये मिले। दिलचस्प बात है कि पिछले वित्त वर्ष भी इस दौरान रेलवे की कमाई 117655.01 करोड़ रुपये रही थी। रेलवे के ऊंचे परिचालन अनुपात के कारण किराये में बढ़ोतरी रेलवे की वित्तीय स्थिति के लिए जरूरी थी। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी के यादव ने पिछले सप्ताह मीडिया से कहा, "इस तरह के संकट से संगठन मजबूत होगा।" उद्योग के सूत्रों के मुताबिक किराये में बढ़ोतरी मामूली है क्योंकि इससे रेलवे को केवल 2,300 करोड़ रुपये का फायदा होगा।
दिलचस्प है कि श्रेणी आधारित छूट पर माथापच्ची करना नीति निर्माताओं के लिए भी मुश्किल काम होगा क्योंकि रेलवे में मांग में एकरूपता नहीं है। यह कमजोर और ज्यादा मांग की अवधि, कम लाभकारी मार्गों, दूरी और ट्रेनों के समय पर निर्भर करता है।
अभी इस तरह की छूट राजधानी, शताब्दी, दुरंतो और हमसफर ट्रेनों में दी जा रही है जहां भरी सीटों की संख्या 60 फीसदी से कम है। यह छूट ट्रेन के छूटने की तारीख से चार दिन पहले दी जाती है। इस मॉडल में मांग आधारित किराये के तहत 70 फीसदी तक सीटें भरी होने पर अंतिम किराये का 20 फीसदी छूट दी जाती है जबकि 70 से 80 फीसदी सीटें भरी होने पर 10 फीसदी छूट दी जाती है। 80 फीसदी से अधिक सीटें भरी होने पर कोई छूट नहीं मिलती है। मांग आधारित किराया शुरू करने के बाद यात्रियों ने हवाई यात्रा का रुख करना शुरू कर दिया था। इससे कई ट्रेनों में आधी से अधिक सीटें खाली जा रही थी। इस स्थिति से बचने के लिए रेलवे ने छूट की पहल की थी।
(साभार- बी एस)
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