विशेष: भारतीय जनमानस के हृदय पर अमिट छाप छोड़ गए सम्पूर्ण क्रांति के प्रणेता श्रधेय लोकनायक जयप्रकाश नारायण: ✍अनिल कुमार श्रीवास्तव
नोएडा: राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत, समाज के प्रति समर्पित लोकनायक श्रधेय जय प्रकाश नारायण ने भारतीय जनमानस के हृदय पर अमिट छाप छोड़ी है।
उनकी दी गयी सामाजिक सीख को आज भी सियासी दलों के लिए बहुत मायने रखती हैं। चाहे वो पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान का नारा "जात पात तोड़ दो, तिलक दहेज छोड़ दो। समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो।। हो" या सम्पूर्ण क्रांति से तातपर्य समाज के सबसे अधिक दबे कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखने का विचार, हर जगह उन्होंने समाजवाद को प्रमुखता दी।
हरसू दयाल श्रीवास्तव के घर 11 अक्टूबर बिहार स्थित सिताबदियारा में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी यह असाधारण प्रतिभा बचपन से राष्ट्रभक्ति के जज्बे से प्रेरित थी।
लगभग 18 वर्ष की उम्र में विवाह के बावजूद इनकी पढ़ाई में रुचि कम नही हुई।
पढ़ाई में अत्यधिक मशगूल होने की वजह से इनकी धर्मपत्नी प्रभावती कस्तूरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम में रहने लगी। 1922 में जयप्रकाश आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए।
अमेरिका से उच्च शिक्षा प्राप्त कर स्वदेश लौटे जय प्रकाश ने आजादी के आंदोलनों में भाग लेने के साथ बेहतर समाज की परिकल्पना भी की।
इनके समाजहित के विचार क्रांति बनते देर नही लगती थी।
बिनोबा भावे के सम्पर्क में आकर भूदान आंदोलन, सर्वोदय आंदोलनों को बड़ा आकार देने वाले जयप्रकाश ने 1975 को पटना के गांधी मैदान में विशाल जनसमूह को सम्बोधित किया, इनके द्वारा दिये गए वक्तव्यों ने उपस्थित जनमानस को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इन्हें वहीं से "लोकनायक" की उपाधि मिली।
जय प्रकाश नारायण जी गांधी जी की विचारधारा से प्रभावित तो थे लेकिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के विचारों से भी इत्तेफाक रखते थे।
जहाँ आजादी की लड़ाई में विभिन्न आंदोलनों में इन्होंने गाँधीजी का साथ दिया वही नेताजी की लड़ाई से प्रभावित होकर हथियारों का उपयोग जरूरी माना।
इन्होंने भारत को आजादी दिलाने के लिए राष्ट्रपिता व नेताजी को एक करने का जतन भी किया लेकिन वह असफल रहे।
आजाद भारत के जनांदोलन के जनक व लोकप्रिय सामाजिक चिंतक मंहगाई, भ्र्ष्टाचार, अपराध की विभीषिका से जूझ रहे समाज को सम्पूर्ण क्रांति का नारा देकर तत्कालीन सरकार को निशाने पर लिया।
बिहार को सामाजिक, राजनीतिक तौर पर सुद्रढ़ व पारदर्शी बनाने के लिए जगी इस आंदोलन की अलख ने देशभर के युवाओं के सहयोग से विशाल रूप ले लिया।
राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक, आध्यात्मिक क्षेत्रो पर आधारित इस सम्पूर्ण क्रांति से तत्कालीन कांग्रेस सरकार के हाथ पाव फूल गए।
महंगाई, भ्र्ष्टाचार से फैली सामाजिक दुर्दशा से आहत लोकनायक जी का यह कदम इतना लोकप्रिय हुआ कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका और आजाद भारत मे पहली गैर कांग्रेस सरकार की स्थापना हुई।
आपातकाल के दौरान जेल में बन्द इस भारतीय विभूति की तबियत ऐसे बिगड़ी कि लगभग तीन वर्षों में काल के गाल में समा गए।
1976 में समाजहित की लड़ाई के चलते जेल में बन्द होने के दौरान तबीयत अचानक बिगड़ गयी 12 नवम्बर को इन्हें जेल से रिहा कर दिया गया, लेकिन मुंबई जसलोक अस्पताल पहुंचते इन्हें देर हो गयी थी और वहाँ इनकी रक्त जांच में पता चला कि दोनों गुर्दे फेल हो गए हैं।
इसके बाद वो डायलिसिस सपोर्ट पर ही रहे और 8 अक्टूबर 1979 को ह्रदयाघात से भारत की इस प्रतिभावान शख्सियत का अंत हो गया।
समाज मे व्याप्त गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अपराध, वैमनस्यता आदि से आजादी को असल आजादी मानने वाले लोकनायक साहित्य में भी खासी रुचि रखते थे।
1965 में मैग्ससे पुरस्कार से विभूषित इस सामाजिक प्रतिभा को अपने जीवन मे अनुकरणीय सामाजिक, राष्ट्रहित कार्यो को देखते हुए मरणोपरांत 1999 में भारत रत्न के सम्मान से सम्मानित किया गया।
दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल भी इन्ही के नाम से रखा गया।
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