प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों से प्रेम और उन्ही अंग्रेजों से मुक्त व्यापार संधि (FTA) करने का आत्मघाती कदम !!!
75 वर्ष बाद अंग्रेज पुनः माँ भारती को गुलाम बनाने आ गए भारत में !!!
लखनऊ: समतामूलक समाज निर्माण मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष - सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने https://www.drishtiias.com/hindi/printpdf/fta-theory-and-reality पर "मुक्त व्यापार सन्धियाँ: सिद्धांत और वास्तविकता" शीर्षक से प्रकाशित तथ्यों को पुनः प्रस्तुत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से यह जानना चाहा है कि, देश कि आज़ादी के पिछले 75 वर्षों में ऐसा क्या हो गया है कि, उनका इस देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों से ऐसा प्रेम हो गया है कि, उन्होंने उन्ही अंग्रेजों से मुक्त व्यापार संधि (FTA) कर आत्मघाती कदम बढ़ा दिया है।
समतामूलक समाज निर्माण मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्वीट कर आग्रह किया है कि, "अतीत से सबक लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और उनका मंत्रिमंडल 'दृष्टि' व उनके website पर "मुक्त व्यापार सन्धियाँ: सिद्धांत और वास्तविकता" शीर्षक से प्रकाशित लेख https://drishtiias.com/hindi/printpdf/fta-theory-and-reality के प्रकाश में मुक्त व्यापार संधि (FTA) नीति और विशेषकर अंग्रेजों (ब्रिटेन) के साथ मुक्त व्यापार संधि (FTA) पर पुनर्विचार कर इस नीति और संधि का तिरष्कार करें।
सच्चिदानन्द श्रीवास्तव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे ट्वीट में कहा है कि, @PMOIndia "मुक्त व्यापार सन्धियाँ:"मुक्त व्यापार सन्धियाँ: सिद्धांत और वास्तविकता" शीर्षक से प्रकाशित (Link: https://drishtiias.com/hindi/printpdf/fta-theory-and-reality ) तथ्यों को पुनः प्रस्तुत करते हुए कहा है कि, "मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से यह जानना चाहता हूँ कि, देश कि आज़ादी के पिछले 75 वर्षों में ऐसा क्या हो गया है कि, उनका इस देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों से ऐसा प्रेम हो गया है कि, उन्होंने उन्ही अंग्रेजों से मुक्त व्यापार संधि (FTA) कर आत्मघाती कदम बढ़ा दिया है।"
मैं चाहूंगा कि, अतीत से सबक लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और उनका मंत्रिमंडल 'दृष्टि' व उनके website पर "मुक्त व्यापार सन्धियाँ: सिद्धांत और वास्तविकता" शीर्षक से प्रकाशित लेख https://drishtiias.com/hindi/printpdf/fta-theory-and-reality के प्रकाश में मुक्त व्यापार संधि (FTA) नीति और विशेषकर अंग्रेजों (ब्रिटेन) के साथ मुक्त व्यापार संधि (FTA) पर पुनर्विचार कर इस नीति और संधि का तिरष्कार करें।
सच्चिदानन्द श्रीवास्तव
@PMOIndia "मुक्त व्यापार सन्धियाँ: सिद्धांत और वास्तविकता" शीर्षक से प्रकाशित (Link: https://t.co/YtKw19473n ) तथ्यों को पुनः प्रस्तुत करते हुए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से यह जानना चाहता हूँ कि, देश कि आज़ादी के पिछले 75 वर्षों में ऐसा क्या हो गया है कि, pic.twitter.com/Bk9UsW9ZyG
— SAMATAMOOLAK SAMAJ NIRMAN MORCHA (@NirmanSamaj) September 12, 2022
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— SAMATAMOOLAK SAMAJ NIRMAN MORCHA (@NirmanSamaj) September 12, 2022
उनका इस देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों से ऐसा प्रेम हो गया है कि, उन्होंने उन्ही अंग्रेजों से मुक्त व्यापार संधि (FTA) कर आत्मघाती कदम बढ़ा दिया है।
मैं चाहूंगा कि, अतीत से सबक लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और उनका मंत्रिमंडल 'दृष्टि' व उनके website पर pic.twitter.com/ucSFWb97nS
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— SAMATAMOOLAK SAMAJ NIRMAN MORCHA (@NirmanSamaj) September 12, 2022
मुक्त व्यापार सन्धियाँ: सिद्धांत और वास्तविकता शीर्षक से प्रकाशित लेख https://t.co/YtKw19473n के प्रकाश में मुक्त व्यापार संधि (FTA) नीति और विशेषकर अंग्रेजों (ब्रिटेन) के साथ मुक्त व्यापार संधि (FTA) पर पुनर्विचार कर इस नीति और संधि का तिरष्कार करें।
✍️सच्चिदानन्द श्रीवास्तव pic.twitter.com/eNtpSSzDUB
'दृष्टि' व उनके website पर "मुक्त व्यापार सन्धियाँ: सिद्धांत और वास्तविकता" शीर्षक से प्रकाशित लेख https://www.drishtiias.com/hindi/printpdf/fta-theory-and-reality में प्रस्तुत किया गया है कि,
"मुक्त व्यापार संधि के संबंध में प्रायः कहा जाता है कि यह सभी के लिये लाभदायक है, लेकिन यदि इसके इतिहास से कुछ सबक लें तो हम यह पाते हैं कि मुक्त व्यापार सन्धियाँ भी हाथी के दांत की तरह दिखाने के और खाने के कुछ और जैसी ही हैं। आज अमेरिका मुक्त व्यापार संधियों से स्वयं को मुक्त कर रहा, जो कभी मुक्त बाज़ारों का झंडाबरदार माना जाता था। हाल के घटनाक्रमों से यह ज़ाहिर है कि भारत आरसीईपी पर वार्ता को आगे बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध नज़र आ रहा है। ऐसे में यह उपयुक्त समय है मुक्त व्यापार संधि के सिद्धांतों और उनकी वास्तविकता में अंतर करने का।"
क्या है मुक्त व्यापार संधि (free trade agreement-FTA)
मुक्त व्यापार संधि का प्रयोग व्यापार को सरल बनाने के लिये किया जाता है। एफटीए के तहत दो देशों के बीच आयात-निर्यात के तहत उत्पादों पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि को सरल बनाया जाता है।
इसका एक बड़ा लाभ यह होता है कि जिन दो देशों के बीच में यह संधि की जाती है, उनकी उत्पादन लागत बाकी देशों के मुकाबले सस्ती हो जाती है। इसके लाभ को देखते हुए दुनिया भर के बहुत से देश आपस में मुक्त व्यापार संधि कर रहे हैं।
इससे व्यापार को बढ़ाने में मदद मिलती है और अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। इससे वैश्विक व्यापार को बढ़ाने में भी मदद मिलती रही है। हालांकि कुछ कारणों के चलते इस मुक्त व्यापार का विरोध भी किया जाता रहा है।
एफटीए से संबंधित वैश्विक अनुभव
ऐसे देश जो वस्तु एवं सेवाओं के क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं, वे एफटीए के ज़रिये तुलनात्मक रूप से अधिक लाभ कमा सकते हैं। फिर भी एफटीए के माध्यम से हर कोई लाभ कमाता है, लेकिन आज एफटीए की प्रचलित अवधारणा और वास्तविकता के बीच टकराव देखने को मिल रहा है।
विदित हो कि ‘उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता’, जिसे 1994 में लागू किया गया था, मैक्सिको को निर्यात के कारण 200,000 नई नौकरियाँ पैदा करने वाला था, लेकिन 2010 तक अमेरिका की मैक्सिको के साथ व्यापार घाटे में बढ़ोतरी हुई और लगभग 700,000 रोज़गार समाप्त हो गए।
2010 में अमल में लाये गए यूएस-कोरिया मुक्त व्यापार समझौते का उद्देश्य अमेरिकी निर्यात और नौकरियों में वृद्धि करना था, लेकिन तीन साल बाद व्यापार घाटा और बढ़ गया।
उल्लेखनीय है कि वैश्वीकरण, आउटसोर्सिंग, भारत एवं चीन के उदय और कम लागत वाले श्रम बाज़ारों को इन परिस्थितियों का ज़िम्मेदार ठहराया गया।
भारत और एफटीए
यद्यपि भारत 1947 से ही गेट (टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौता) का एक संस्थापक सदस्य था, जो अंततः 1995 में विश्व व्यापार संगठन में बदल गया था, लेकिन भारत 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद एफटीए को लेकर गंभीर नज़र आया। इसका प्रभाव यह हुआ कि भारत का व्यापार-जीडीपी अनुपात उल्लेखनीय स्तर पर जा पहुँचा।
दरअसल, दोहा दौर की वार्ताओं में अंतहीन देरी के कारण ऐसी परिस्थितियाँ बनी कि भारत द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौतों के संबंध में स्वयं के स्तर से आगे बढ़ने की कोशिश करने लगा।
इसी क्रम में यह एक मेगा मुक्त व्यापार समझौता ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership - RCEP) को लेकर गंभीर नज़र आ रहा है। यह तकनीकी स्तर पर आरसीईपी व्यापार वार्ता समिति की बैठक का 19वाँ दौर है।
विदित हो कि आरसीईपी में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 16 देश शामिल हैं। इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार एवं सरल बनाना है।
किन बातों का रखना होगा ध्यान ?-
भारत ने हमेशा व्यापार को उदार बनाने के लिये बहुपक्षीय दृष्टिकोण का समर्थन किया है, लेकिन यहाँ कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं।
पिछले 10 वर्षों में जिन देशों का भारत के साथ क्षेत्रीय व्यापारिक संधि यानी आरटीए थी और जिनके साथ यह संधि नहीं थी, दोनों ही परिस्थितियों में भारत का निर्यात समान दर से बढ़ा है।
दरअसल, यह तथ्य सामने आया है कि आरटीए के अंतर्गत टैरिफ में कमी लाने से निर्यात में उतनी वृद्धि नहीं होती है, जितनी कि गंतव्य देशों की आय में वृद्धि से होती है।
विदित हो कि पाँच में से केवल एक निर्यातक ही आरटीए मार्ग का उपयोग करता है, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि संबंधित आसियान देशों, कोरिया और जापान के साथ भारत का व्यापार घाटा संबंधित एफटीए पर हस्ताक्षर करने के बाद से दोगुना हो गया है।
क्या हो आगे का रास्ता ?
दरअसल, इसमें कोई शक नहीं है कि एफटीए, सिद्धांत की दृष्टि से एक उद्देश्यपूर्ण आर्थिक नीति है, लेकिन क्या यह व्यवहार में भी उतनी ही लाभदायक है? इस पर बहस की जा सकती है। इसलिये भारत को सोच समझकर आगे कदम बढ़ाना चाहिये।
ज्ञातव्य है कि आरसीईपी को लेकर हैदराबाद में ज़ारी वार्ता का देश भर के कई समूहों द्वारा विरोध किया जा रहा है। हालाँकि, वार्ता में शामिल भारतीय टीम भारत के हितों की रक्षा कर सकती है और यह सुनिश्चित कर सकती है कि यह एफटीए भारत के लिये अनुचित न हो।
निष्कर्ष
यह दिलचस्प है कि वर्ष 2004 में प्रमुख अर्थशास्त्री पॉल सैमुअलसन ने कहा था कि ‘मुक्त व्यापार वास्तव में श्रमिकों के लिये बदतर हालत पैदा कर सकता है’। लेकिन, मुक्त व्यापार के आक्रामक तरफदारों ने इस पर ठंडी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘बूढ़े आदमी ने अपना विवेक खो दिया है। लेकिन, आज उस बूढ़े व्यक्ति की चेतावनी के प्रति दुनिया सचेत नज़र आ रही है।
मुक्त व्यापार को बढ़ावा देते समय हमें रोज़गार सृजन की चिंताओं को भी ध्यान में रखना होगा। अतः सरकार को गैर-टैरिफ बाधाएँ, सार्वजनिक खरीद में स्थानीय वरीयता पर भी ध्यान देना चाहिये।
जब हम बात मुक्त व्यापार की कर रहे हैं तो हमें सिद्धांतों एवं वास्तविकताओं का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना होगा। भारत को आरसीईपी पर वार्ता को आगे ले जाना चाहिये, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह समझौता, इसमें शामिल एशिया-प्रशांत क्षेत्र के सभी 16 देशों के बीच संतुलित हो, जिससे कि इस मेगा व्यापार समझौते का लाभ सभी को प्राप्त हो सके।
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