विशेष: 'विराट' ऐसे बना विराट !
इस मासूम बच्चे को भारतीय न्याय प्रणाली, पुलिस, कोर्ट की सारी कमियाँ, न्याय प्रक्रिया की धीमी गति और धनबल के आधार पर पक्षपात सब कुछ कहीं गहरे में समझ आ गया और इसने जीवन मे खुद न्यायाधीश बनने का सपना पाल लिया...
-:आस्था नन्द पाठक, IRAS.:-
लखनऊ (सोशल मीडिया से): श्री आस्था नन्द पाठक जी जो वर्तमान में भारतीय रेल में वित्त अधिकारी के पद पर हैं, उन्होंने अपने फेशबुक पोस्ट पर कुछ समय पहले एक ऐसे बच्चे की हकीकत बयाँ की है, जिसे उन्होंने स्वयं देखा भी है और बहुत ही समीप से महसूस भी किया है।
आइये देखते हैं, श्री आस्था नन्द पाठक जी की इस प्रस्तुति को उन्ही के शब्दों में....
'विराट' ऐसे बना विराट
कक्षा पाँच में पढ़ने वाले एक मासूम बच्चे के पिता को गलत तरीके से एक मामले में फंसा दिया गया...खेलने कूदने की उमर में पुलिस, कोर्ट, जेल और कैद जैसे शब्दों का अर्थ समझना पड़ा....पिता को निर्दोष साबित करने में दस साल का समय लग गया...
जब घर का मुखिया ही जेल में हो तो परिवार बिखरने के कगार पर पहुँच गया लेकिन ऐसे माहौल में भी माँ ने बच्चों को आगे बढ़ने और कुछ अच्छा करने को प्रेरित किया..इस मासूम बच्चे को भारतीय न्याय प्रणाली, पुलिस, कोर्ट की सारी कमियाँ, न्याय प्रक्रिया की धीमी गति और धनबल के आधार पर पक्षपात सब कुछ कहीं गहरे में समझ आ गया और इसने जीवन मे खुद न्यायाधीश बनने का सपना पाल लिया...
एक सपना, पूर्णतः विपरीत परिस्थितियाँ और एक घोर संघर्ष... देवरिया से कक्षा 12वीं, गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद कानून (LLB) की पढ़ाई के लिए विराट दिल्ली आ गया। दिल्ली विश्वविद्यालय से एल एल बी और एल एल एम की पढ़ाई की, कानून में ही पी एच डी की लेकिन अंतिम स्वप्न था जज बनने का....
PCS/J की लगातार लगभग 16 बार मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार में बैठा विराट...इसी बीच पिता जी का देहांत भी हो गया..जिसको न्याय दिलाने के लिए यह संघर्ष था वही नही रहा...इतनी बार असफलता अच्छे खासे मनोबल को शायद तोड़ देती... लेकिन 10 साल की उम्र के मासूम मन पर स्थापित संकल्प को कैसे डिगा पाती यह असफलताएं..
अंततः वर्ष 2017 में विराट ने उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा में अपनी सफलता सुनिश्चित कर ही ली...विराट जज बन गया...विपरीत परिस्थितयो का हवाला देकर अपने सपनों से समझौता करने वाले युवाओं को एक चुनौती देता है विराट का संघर्ष...विराट का मानना है कि, कठिन से कठिन परिस्थितियाँ भी सिर्फ और सिर्फ आपके आत्मबल की परीक्षा लेने और आपमे और फौलाद भरने के लिए आती है...
तुम्हारे संघर्ष को एक बिग सैल्युट विराट.. उम्मीद है कि जहाँ भी रहोगे, किसी एक भी व्यक्ति के साथ अन्याय नही होने दोगे... अपने पिताजी को इससे बेहतरीन श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है...
प्रस्तुति: *आस्था नन्द पाठक*
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श्री आस्था नन्द पाठक जी की उपरोक्त प्रस्तुति को पढ़ने के बाद मैं भी बहुत भावुक हो गया। जीवनभर मैंने भी बहुत संघर्ष किया और अब भी कर रहा हूँ। मैं रेलवे में ब्रिज इंजीनियर के पद पर तैनात था। ईमानदारी से तथा भ्रष्टाचार के बिरुद्ध कार्य करने का खामियाजा हमें भी भुगतना पड़ा था और हमारा ट्रांसफर के नाम पर 13 वर्षों तक वेतन रोका गया था, 34 ट्रान्सफर किये गए थे परन्तु मैं भी न झुका और न टूटा। मैंने रेलवे में रेल सेवक संघ की स्थापना की, शोषण, अनाचार और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध 'रेल सेवक संघ' के झंडे तले उत्तर मध्य रेलवे के मुख्यालय पर ''रेलवे के भ्रष्ट अधिकारियों'' की फोटो प्रदर्शनी लगाई जो विश्व रिकॉर्ड बना। रिटायर होने के बाद अपने जीवन को अपने देश और देशवासियों को समर्पित करते हुए देश में बढ़ रहे आर्थिक आतंकवाद, भूखमरी, बेरोजगारी और टैक्स व विभिन्न माध्यमों से जनता के धन की जारी लूट के विरुद्ध ''समता मूलक समाज निर्माण मोर्चा'' का गठन कर भारत वर्ष में समता मूलक समाज की स्थापना करने का प्रयास कर रहा हूँ। परन्तु हमें आज अपना संघर्ष भी जस्टिस श्री विराट जी के संघर्ष और संकल्प शक्ति के आगे बौना दिखाई दे रहा है। इससे एक सबक अवश्य मिलती है कि, मानव जाति को ईश्वर ने अपार शक्ति और आत्मबल दी है जिससे कोई भी जटिलतम परिस्थितियों में भी अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर सकता है, टूट नहीं सकता। इसीलिए मैं श्री आस्था नन्द पाठक जी के उपरोक्त प्रस्तुति को प्रकाशित करने से नहीं रोक सका। मेरा विश्वाश है कि, यह 'प्रस्तुति' विशेषकर देश के युवाओं और विद्यार्थियों के आत्मबल को मजबूती प्रदान करते हुए अपने उद्देश्य - अपने लक्ष्य को पाने में उनका मार्ग प्रशस्त करेगी।
अंत में मैं जस्टिस बिराट जी और उनकी मां को सैलूट करता हूँ।
अंत में मैं जस्टिस बिराट जी और उनकी मां को सैलूट करता हूँ।
*संपादक*
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