विशेष: दीदी का सुहाग लुटा, लल्ला को बुखार है, मम्मी जी ऑक्सीजन को तड़प रही है? पर ,घर का मालिक तो बेरोजगार है, चारो तरफ सन्नाटा पसरा , हर गावँ --शहर श्मशान हो गया?
विशेष में प्रस्तुत है:
कोरोना काल से उपजे हालात और सरकार पर एक 'छंद':
(रचइता हैं, किसान, शिक्षाविद एवं समाजवादी नेता- नथुनी प्रसाद कुशवाहा)
***कहाँ तो तय था, हर हाथ को काम, हर खेत को पानी।
पर! घर - घर बेरोजगार हुए, जिस्म का सूखा पानी।।
चले थे, विकास का मॉडल लेकर, वो बिनाश का माडल बन कर ही रह गया?
56 इंच के सीने का अरमां था -- वो अब आँशुओं में बह गया।।
जिस ! गंगा के निर्मल धारा के साथ बहते थे, जहां बबूल और बेर !
पर आज ! वहां बह रही सिर्फ और सिर्फ लाशो की ढेर ?
*साहब *तो , सिर्फ! अपने मन की बातों में ही हैं मशगूल।
सुनने वाले की 'मन की वात' सुनना है कि नही ? ओ ये भी वात गए भूल।।
दीदी का सुहाग लुटा ,लल्ला को बुखार है, मम्मी जी ऑक्सीजन को तड़प रही हैं?
पर ,घर का मालिक तो बेरोजगार है।।
चारो तरफ सन्नाटा पसरा,
हर गावँ - हर शहर श्मशान हो गया ?
अब तो ! गांव -- गावँ का किसान, खेतो में वीज के बदले लाशों को ही बो गया ?
चारो तरफ सन्नाटा पसरा,
हर गावँ - हर शहर श्मशान हो गया ?
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