विशेष 'कविता': कोरोना का सच: राघवेंद्र सिंह
विशेष में प्रस्तुत है___
"कोरोना का सच"
(रचइता और प्रस्तुतकर्ता हैं, ललितपुर (उप्र) के गांव सिमिरिया के राघवेंद्र सिंह, राष्ट्रीय महासचिव / लोसपा)
सदियों से
हम गांव में रहते हैं
सांप भी गांव में रहते है,
खेत और खलिहानों में
अक्सर वे निकलते हैं;
कभी कहीं वे हम में से
किसी एक को काटा करते हैं।
कभी कभी हमबचते हैं
कभी कभी हम मरते हैं,
कभी हमारी लाठी से
वे भी मरते रहते हैं;
ढेरों दुख भी सहते हैं,
फिर भी गांव में रहते हैं।
ढोल मजीरा की थापों पर
फिर भी नाचा करते हैं।
आज 'कोरोना' का डर
हम सब पर भारी है,
सांपों से भी क्रूर और जहरीला
शासन और पुलिस का डंडा;
गरीबों की पीठ पर जारी है,
'कोरोना' से कितने मरे अभी
आंकड़ा आना बाकी है।
लेकिन सड़कों से रेल की पटरी तक
हमारा मरना जारी है-------।।(अंतहीन कहानी)
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