गौ सेस एक अदूरदर्शी कदम: रघु ठाकुर
भोपाल (मध्य प्रदेश): लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- महान समाजवादी चिंतक व विचारक- साथी रघु ठाकुर ने बताया कि, मध्य प्रदेश सरकार ने "गौ कैबिनेट" बनाने की घोषणा की है। जाहिर है इस निर्णय से उन्होंने प्रदेश की जनता को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि प्रदेश सरकार गायों की समस्या को लेकर बहुत अधिक चिंतित है।
रघु ठाकुर ने बताया कि, इसके पहले भाजपा सरकार ने ही गौ अभ्यारण बनाने की घोषणा की थी और आगर-मालवा के सलारिया में जहाँ गौ अभ्यारण बनाया गया था। गौ कैबिनेट की पहली बैठक करने की घोषणा भी की थी। परन्तु 18 अक्टूबर को मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर यह जानकारी दी कि गौ कैबिनेट की बैठक सलारिया की उपस्थिति बैठक के बजाय वर्चुअल बैठक होगी। याने अभ्यारण में बैठक नहीं होगी। अभ्यारण में केवल एक्सपर्ट की बैठक होगी और उसमें केवल मुख्यमंत्री शामिल होंगे। पत्रकारों के पूँछने पर उन्होंने इसका कारण मंत्रियों के क्षेत्रों में दौरे पर होना बताया। परन्तु यह कारण बहुत तार्किक नहीं लगता क्योंकि मंत्री कैबिनेट की बैठक के लिए आते ही है, और दूसरे गौ कैबिनेट की यह पहली बैठक थी जिसमें मंत्री महोदयों को कुछ घन्टे मुख्यमंत्री के साथ रहने का अवसर मिलता और ट्रांसफर/ तबादले आदि के जरूरी काम भी निपट जाते।
रघु ठाकुर ने बताया कि, "मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि वे 22 नवम्बर रविवार को अकेले अभ्यारण में जाकर एक्सपर्ट के साथ बैठक करेंगे।" इस नाटकीय परिवर्तन के पीछे यह कारण दिखता है कि मीडिया में 16 -17 नवम्बर को यह खबरे आई थी कि गौ अभ्यारण में 10-11 गाय मरी हुई पाई गई, और मीडिया ने इन गायों की मौत का जिम्मेवार अभ्यारण प्रशासन याने एक अर्थ में सरकार को ही बताया था। इसलिए मीडिया के तीखे सवालों से बचने के लिए गौ कैबिनेट का स्थान और स्वरूप परिवर्तन कर दिया गया।
रघु ठाकुर ने कहा कि, "गायों की चिन्ता प्रदेश सरकार को कितनी अधिक है यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार ने इन गायों की मौत की जाँच करने के लिए कोई समर्थ कदम नहीं उठाए और न ही किसी को दोषी मानकर किसी अधिकारी पर कार्यवाही की, वरना इतनी गायों की आकस्मिक मौत कोई सामान्य घटना नहीं थी।"
रघु ठाकुर ने बताया कि, "प्रदेश में प्रतिपक्ष के नेता श्री कमलनाथ भी इस घटना पर मुखर नहीं हुए याने भाजपा और कांग्रेस गौ माताओं की मौत पर दोनों चुप हैं। यह सहज ही है या कुछ अंदरूनी दांस्तान है, यह कहना संभव नहीं है? परन्तु आश्चर्यजनक अवश्य है। यद्यपि भाजपा और कांग्रेस श्री शिवराज सिंह व श्री कमलनाथ दोनों ही गौ भक्त होने और गौ रक्षक होने का दावा करते रहे है, और 2018 के विधानसभा चुनाव में भी तथा हाल के उपचुनाव में भी गौशालाओं को खोलने गौ अभ्यारण बनाने आदि के वायदे करते रहे है।"
रघु ठाकुर ने बताया कि, गायों की समस्या, इस अर्थ में गम्भीर है कि, आज हजारों गाये और गौ वंश प्रदेश में लावारिस सड़कों पर घूम रहे हैं। शहरों में सड़कों पर आए दिन दुर्घटनाएं होती है, क्योंकि वह वाहन चालक से टकरा जाते है। हाइवे पर गाड़ियों का चलना मुश्किल होता है, क्योंकि सारी गायें और गौवंश सड़कों पर ही आकर विश्राम करते है या फिर भारी वाहनेां से भारी संख्या में गायें कट जाती है। दूसरी तरफ ग्रामीण अंचलों में जहाँ किसान नील गायों के आतंक से पहले से परेशान था अब दोहरे आतंक से पीड़ित है। नील गायों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है, क्योंकि नील गाय वन पशु है, जिसे मारने पर वैधानिक प्रतिबंध है, और सजा का प्रावधान भी है। जिस किसान के खेत में नील गायों का झुण्ड प्रवेश कर जाता है, वह खेत तो बर्बाद होता ही है, किसान भी बर्बाद हो जाता है। न किसान उन्हें मार सकता है न भगा पाता है क्योंकि वे हमलावर होती है और किसान अपनी आँखों के सामने रोते हुए अपनी फसलों को बर्बाद होते देखता है। अब लावारिस गायों की समस्या और भी बड़ी हो गई तथा हालात यह है कि सैंकड़ों लावारिस गायों के झुण्ड के झुण्ड निकलते है, जिनसे खेती को बचाना किसान के लिए कठिन कार्य हो गया है। रात - रात भर किसान, उनके बेटे लाठियां लेकर खेत की मेड़ पर बैठे रहते है। वे गायों के झुण्ड को घेरकर अगले गाँवों की ओर रवाना कर देते हैं याने लावारिस गायों की समस्या ने गाँव की चैन की नींद भी छीन ली है।
रघु ठाकुर ने बताया कि, "पहले तो हम यही विचार करें कि, यह लावारिस गायें लावारिस क्यों है? तथ्य यह है कि लोग अपनी पालतू गायों को, जब वह दूध देना बंद कर देती है या वृद्ध हो जाती है तो उन्हें सड़कों पर छोड़ देते है। अब हाल के वर्षों में यह भी अनुभव आया है कि शहरों और गाँवों में लोग दूध देने वाली गायों का दूध तो निकालते है, परन्तु दूध निकालकर उन्हें खाने चरने के लिए सड़कों पर छोड़ देते है। वह दिन भर छोटे सब्जी वालों की सब्जी दुकानों पर पेट भरने के लिए हमला करती है या फिर सड़कों पर भटकती है। ये दूध निकालने वाले इतने स्वार्थी और निर्दयी हो गए है कि जिसे गौ माता बोलते है, उस माँ का केवल शोषण करते है। उसके पेट भरने की चिंता नहीं करते हैं।"
रघु ठाकुर ने बताया कि, "सच्चाई तो यह है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत गौ संस्कृति का देश नहीं रहा बल्कि कुत्ते, बिल्ली संस्कृति का देश हो गया है। जहाँ कुत्तों और बिल्ली को तो खाना मिलता है, घर के भीतर रहते है, कभी-कभी बिस्तरों पर मालिक के साथ विश्राम करते है। कुछ किस्मत वाले ऐसे भी होते है, जिनकी सेवा को नौकर चाकर होते है। परन्तु गाय माता इतनी बदनसीब हो गई है कि उसे घर में दुहा जाता है, और बाहर ठोकरे खाने को छोड़ दिया जाता है।"
रघु ठाकुर ने बताया कि, "नील गाय और लावारिस गायों की समस्या लगभग देशव्यापी हो गई है। सरकारों ने जो गौशालाएं नाम मात्र को बनायी है उनमें गायें पलती या बचती कम है, मरती ज्यादा है।"
रघु ठाकुर ने बताया कि, "पहले लावारिस गायों के लिए काँजी हाऊस कुछ कारगर होते थे परन्तु अब वह भी उपयोगिता शून्य न्य हो चुके है। अधिकांश काँजी हाऊस की जमीन या मकानों पर सरकारी या गैर सरकारी अतिक्रमण हो गया है। याने या तो सरकार ने अन्य किसी दफ्तर आदि के लिए उन्हें इस्तेमाल में ले लिया है या फिर लोगों ने कब्जे कर मकान बना लिए हैं। सरकार ने काँजी हाऊसों की देख-रेख वाले कर्मचारियों की व्यवस्था भी लगभग समाप्त कर दी है और स्थानीय संस्थाएं भी अपने पैसे से सौंदर्यकरण तो करना चाहती है, परन्तु काँजी हाऊस जैसी संस्थायें नहीं चलाना चाहती है। स्वाभाविक भी है क्योंकि सौंदर्यीकरण के कामों में पैसा होता है। काँजी हाऊस पर तो दो-चार चारे के पूरा के अलावा मिलना क्या है?"
रघु ठाकुर ने बताया कि, "गौशालाओं के लिए जमीन दान की हमारी भारतीय परम्परा रही है और अतीत में बहुत सारे जमींदारों ने अपनी जमीनें गौशालाओं को दान में दी थी। परन्तु इन जमीनों पर भी अतिक्रमण कर लिया गया और अधिकांश जमीनें मकानों दुकानों के नीचे दब गई हैं। गौशालाओं को चलाने के लिए सरकार प्रतिवर्ष अनुदान देती है। परन्तु कटु अनुभव व सच्चाई यह है कि अधिकांश अनुदान की राशि अपवाद छोड़कर संचालकों के पेट में जा रही है। अगर समूचे देश में इसकी जाँच हो कि किन संस्थाओं को कितना अनुदान मिला और उनमें कितनी गायें मरी तो यह भी एक बड़ा गौ घोटाला होगा? जिसमेें अभी तक लाखों करोड़ों रूपये लूटे जा चुके है। यह भी चिंताजनक है कि गाय के गोश्त के नाम पर माॅब लीचिंग करने वाले बिक्री और गौकशी के नाम पर गायों की हत्या को रोकने वाले, गौ रक्षक गौशालाओं के भ्रष्टाचार और लूट पर गायों की इन निर्मम और मूक हत्यायों पर मौन रहते है। दूसरा प्रश्न है कि, गायों को कसाईयों को कौन बेचता है? क्या यह बेचने वाले अधिकांश हिन्दू नहीं है और वे नहीं जानते कि, वे किसके लिए और क्यों बेच रहे है? गाँव के गरीब लोग और अब तो बड़े लोग भी दूध नहीं देने वाली गायों से मुक्ति पाना चाहते है। उनके लिए इन्हें पालना फिजूल खर्ची है, और गरीब के लिए उन्हें बाहर छोड़ना लाचारी है। लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी पिछले कई वर्षों से भाजपा और कांग्रेस सभी सरकारों को सुझाव देती रही है, और यदा-कदा प्रदर्शन धरना भी करती रही है कि लावारिस गायों की समस्या के हल के लिए निम्न कदम उठाए जाएं:-ं
1. इच्छुक किसान को अधिकतम दो गायें पालने को दी जाए और तीन हजार रूपया प्रतिमाह प्रति गाय की दर से उन्हें पोषण दिया जाए। अगर यह व्यवस्था बन जाए तो गौशाला के नाम पर करोड़ों रूपयों का जो भ्रष्टाचार हो रहा है वह बंद हो जाएगा। यद्यपि उ.प्र. सरकार ने 900 रूपये प्रतिमाह की दर से प्रति गाय को पालने हेतु देने का नियम बनाया है, परन्तु 30 रूपये रोज में तो आदमी का पेट भी नहीं भरता गाय का पेट कैसे भरेगा?
स्वतः मुख्यमंत्री जी अपनी प्रिय गौशाला जिसे उनकी विष्ठकुल की बहन अपर्णा यादव चलाती है और जिसे उनकी सरकार ने करोड़ों रूपये प्रतिवर्ष का अनुदान दिया है का औसत निकाल ले कि वह प्रति गाय कितना पड़ता है?
2. देश में गौशालाओं में जितनी गायों की मौत हुई है उनकी जाँच के लिए भी आयोग बनाया जाए। जो पुरानी गायों की मौतों की जाँच करें। और यह स्थाई नियम बने जिस किसी गौ-रु39याालाओं में गाए की मौते हो उनका पोस्टमार्टम और जाँच कराई जाए तथा जिम्मेवार लोगों को भी हत्या का अपराधी माना जाए। अच्छा हो कि इस जाँच आयोग में सभी धर्म के लोगों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए ताकि निष्पक्ष जाँच भी हो और समरसता कायम हो।
3. नील गाय गाय नहीं है बल्कि वन-पशु है। किसान को खेत की रक्षा के लिए उन्हें मारने का अधिकार दिया जाए या फिर क्षतिग्रस्त खेत का पूरा हर्जाना सरकार दे।
4. गाय के अलावा बैल, साँड आदि गौ वंश आदि के लिए पुराने काँजी हाऊसों या गौशालाओं में रखा जा सकता है। किसानों को भी अपनी इन तकलीफों के बारे में सावधान होना होगा और मतदान के दिन जात बिरादरी, पैसा - शराब और प्रलोभन से हटकर लावारिस गौ वंश की समस्या के निदान के लिए वोट देना शुरू करना होगा वरना विधवा विलाप से कोई हल नहीं निकलेगा।
रघु ठाकुर ने बताया कि, "म.प्र. सरकार ने गौ कैबिनेट के नाम पर अपनी नीयत साफ कर दी है। और वे अब गौ सेस लगाने की तैयारी कर रहे है। इस गौ सेस का मतलब होगा कि करे कोई भरे कोई। लावारिस गायों को छोड़ने के लिए जो जवाबदार या गुनहगार हैं वे और अधिक मस्त और निश्चिन्त हो जाएंगे तथा प्रदेश की जनता भावनात्मक रूप से ठगी जाएगी। अगर लो.स.पा. के इस सुझाव को अभी भी सरकार मान ले तो किसी सेस के बगैर बाँटे जाने वाले अनुदान की राशि से ही लावारिस गायों की समस्या हल हो जाएगी।"
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