एफ.डी.आई. का देश पर हमला: रघु ठाकुर
नई दिल्ली/ भोपाल: आज लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- महान समाजवादी चिंतक व विचारक- रघु ठाकुर ने देश के FDI, वर्तमान हालात और कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न विषम परिस्थितियों पर चर्चा करते हुए कहा कि, जैसी की आशंका थी, कोरोना के बहाने भारत सरकार ने सभी सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण की शुरुआत कर दी। रेलवे का अंग-भंग करके उसे निजी हाथों में दिया जा रहा है। इसके पहले कांग्रेस काल में इसकी शुरुआत मालगाड़ियों और उनके वैगन के लिए निजी वैगन चलाने के अधिकार द्वारा की गई थी। ‘ओन योर वैगन ओन योर कोच’ के नाम से स्व. राजीव गाँधी प्रधानमंत्री के काल में और स्व. माधव राव सिंधिया के रेल मंत्रित्व काल में विश्व बैंक के तत्कालीन उपाध्यक्ष श्री डेविड हूपर की भारत यात्रा के उपरान्त यह निर्णय हुआ था। यह जग जाहिर है कि विश्व बैंक के कर्ज के दबाव में यह शुरूआत हुई थी।
परन्तु अब स्थिति बहुत आगे जा चुकी है। वैगन के बाद पटरियों को किराए पर देने का क्रम आया, फिर निजी रेल गाड़ियां शुरू हुई उसके उपरान्त रेलवे के प्लेटफार्म को निजीकरण के हवाले किया गया। सूत्रों के अनुसार भारत सरकार ने लगभग 520 स्टेशन सौंदर्यकरण के नाम पर निजी कम्पनियों को दे दिए। जिसका परिणाम है कि, अनेक स्टेशनों के प्लेटफार्म का टिकिट अब बढ़ाकर 50 रूपये कर दिया है और गाड़ियों के पार्किंग का शुल्क दिन भर का 400 रू. तक लगता है। यह स्थिति अकेले रेलवे की नहीं है, हवाई यात्रा की भी है। हवाई यात्रा के क्षेत्र में निजी खिलाड़ी पहले से थे और अब हवाई अड्डों का संचालन कर ठेका भी निजी क्षेत्र को दिया जा रहा है। भारत सरकार और प्रधानमंत्री यह भूल गए कि सारे यूरोप में रेलवे जो एक जमाने में निजी क्षेत्र में थी को वहाँ की सरकारों को अपने अधीन लेना पड़ा और अब सब जगह सरकारी रेलवे है। इसी प्रकार जेट एयरवेज सरीखी अनेकों हवाई जहाज चलाने वाली कंपनियां जनता के लाखों करोड़ रूपये देने और खाने के बावजूद भी नहीं चल सकी और अंत में उन्हें सरकार को अपने अधीन लेना पड़ा। कोयले का क्षेत्र ब्रिटिश काल में निजी क्षेत्र में था और उस दौरान जिस प्रकार मजदूरों का शोषण और दमन होता था उसके कारण आजादी के 22 वर्षाें के बाद तत्कालीन सरकार को उसे अपने अधिकार में लेना पड़ा। लगभग यही स्थिति बिजली के क्षेत्र की रही। वर्न कम्पनी जैसी अनेकों निजी कंपनियां थी जो बिजली बनाकर जनता को बेचती थी अंततः मंदी और बंदी का शिकार हुई तथा सरकार को विद्युत क्षेत्र को भी अपने हाथ में लेना पड़ा।
परन्तु केन्द्र की भाजपा सरकार सभी सार्वजनिक क्षेत्रों को जिसमें बीमा और बैंक भी शामिल है। सभी के लिए निजी क्षेत्र को सौंपने का मानस बना चुकी है। बीमा, बैंक रेलवे, बिजली, कोयला, स्टील आदि में बड़ा हिस्सा एफ.डी.आई. के नाम पर विदेशी पूँजीपतियों के हाथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जा चुका है। और अब केन्द्र सरकार सरकारी क्षेत्र छोड़ कर निजी उद्यम और व्यापारों को भी विदेशी पूँजीपतियों के हवाले करने की तैयारी में है। कृषि का क्षेत्र जिसमें किसान और मजदूर मिलाकर लगभग 5-6 करोड़ लोग कार्यरत् है, और उनके परिवारों के 22 करोड़ लोग कृषि व्यवसाय से पलते हैं, अब विदेशी पूँजी निवेश के नाम पर निजी क्षेत्र को भारतीय कृषि में प्रवेश दिया जा रहा है। काश प्रधानमंत्री जी यह समझ पाते कि, दक्षिण अफ्रीका में विदेशी पूँजी निवेश का परिणाम यह हुआ है कि हजारों हज़ार एकड़ के बड़े-बड़े फार्म अफ्रीका की जमीन पर विदेशी पैसे वालों ने बनाए है। यहाँ तक कि भारत के पूँजीपतियों में टाटा आदि ने भी वहाँ जाकर सैकड़ों एकड़ की जमीने खरीदी हैं और अफ्रीकी आदिवासी बेदखली और भुखमरी का शिकार हो रहा है। तथा यह सामंत वहाँ मालिक बन रहे है। यह स्थिति कृषि के क्षेत्र में विदेशी पूँजी निवेश की भारत में होगी। होना तो यह चाहिए कि, सरकार की लीगल एक्ट को शक्ति से लागू करती तथा खेती करने वाले किसान को ही जमीन का मालिक बनाती। 50 के दशक में डाॅ. लोहिया के नारे के साथ लाखों आवाजे गूंजती थी उनका नारा होता था ‘‘जो जमीन को जोते बोएं वो जमीन का मालिक है।’’ महंगे दामों के लालच में छोटे किसान उसी प्रकार अपनी जमीनें विदेशियों को बेच देंगे। जिस प्रकार पिछले पाँच दशकों में महानगरों के पास की जमीनों को किसानों ने देशी पैसे वालों को दे दिया है। इससे कृषि क्षेत्र का रकबा घटेगा, पर्यावरण नष्ट होगा, प्रदूषण बढ़ेगा और विदेशी पूँजी बड़ी मशीनों के माध्यम से कृषि पैदावार करेगी तथा मजदूर और छोटे किसान क्रमश: बी.पी.एल. बनकर सरकारी राशन में पलेंगे या मौत के मुंह में जाएंगे।
रघु ठाकुर ने बताया कि, अब यह नया दौर मात्र निजीकरण का नहीं है, बल्कि विदेशी पूँजीकरण का है। मानसिक रूप से सरकार कितनी क्रूर हो चुकी है, इसकी कल्पना हाल ही में संसद में सरकार के उस उत्तर से समझी जा सकती है, जिसमें सरकार ने कहा है कि उसे नहीं पता कि कितने अप्रवासी मजदूर घरों को लौटते वक्त मरे। कुछ लोगों के अनुमान के मुताबिक रास्ते में दुर्घटनाओं और यात्रा के कष्ट से घरों पर जाकर मरने वालों की संख्या सैंकड़ों से बढ़कर हज़ारों से ऊपर पहुंची। माना जा सकता है कि, राज्यों के अंदर दुर्घटनाओं या मरने वालों की मौत की सूचना राज्यों के थानों में दर्ज होगी। परन्तु क्या संसद को यह अधिकार नहीं है कि, वह राज्यों से सूचना मंगाए?- अनेकों विषयों पर संसद और केन्द्र सरकार राज्यों से आँकड़े मंगाती है। परन्तु जाहिर है कि केन्द्र सरकार लाॅकडाऊन की अपनी कमियों को छिपाना चाहती है और यही तर्क तब भी देगी जब भूमिहीन मजदूर और जमीन बेचकर भूमिहीन बना किसान गाँव या शहरों में मजदूरी करते शराब पीते अपराध करते, या कुपोषण से होने वाली बीमारियों के कारण मौत से मरेगा।
रघु ठाकुर ने बताया कि, विदेशी पूँजी का हमला इसी प्रकार से किराना दुकानों और फुटकर व्यापार तक पहुंच चुका है। अंबानी के रिलायंस के माध्यम से वेजोस याने अमेजन के मुखिया ने अपनी घुँसपेठ शुरू कर दी है। यह भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि, रिलायंस रिटेल अपना 40 प्रतिशत का हिस्सा अमेजन को बेच रहा है और इस खबर के आने के बाद रिलायंस के शेयर के दाम 7 प्रतिशत तक बढ़ गए। यह भी सूचना मिली है की टाटा के सुपर ऐप में वालमार्ट की एक लाख अस्सी हज़ार करोड़ रूपये का निवेश करने की तैयारी है यह एक प्रकार से भारतीय संपत्ति की बिक्री जैसी है। याने हम जो अपने आप गर्व से भारतीय कहते हैं, दिमाग से इतने अभारतीय हैं कि, देशी कारखानों या संपत्ति के बिकने पर भी खुश है बशर्ते हमें लाभ मिल जाए।
रघु ठाकुर ने बताया कि, मेट्रो केश एन्ड कैरी के अध्यक्ष के अनुसार देश में खाद्य और किराने का बाजार 50 लाख करोड़ रूपये तक का है। याने भारत के राष्ट्रीय बजट का लगभग दो गुना। विदेशी कंपनियों ने देश के बाजार में दखल शुरू कर दिया है। फ्यूचर रिटेल और रिलायंस ने मिलकर लगभग 30 प्रतिशत डी-मार्ट, लगभग 20 प्रतिशत स्पेनसर, 11 प्रतिशत बिग बास्केट, 4 प्रतिशत तथा मेट्रो केश एन्ड कैरी जो जर्मन कम्पनी है, ने भी 4 प्रतिशत हिस्सेदारी बाजार में हासिल कर ली है। मात्र 4 प्रतिशत की हिस्सेदारी से देश के 8 लाख छोटे दुकानदार जुड़ चुके है। याने देश का होल सेल मार्केट प्रथम चरण में विदेशी पूँजी के साथ लगभग जा चुका है। प्राप्त जानकारी के अनुसार देश के थोक व्यापार का 76 प्रतिशत प्रत्यक्ष तौर पर विदेशी पूँजीपतियों के हाथ में पहुंच चुका है। एक बार थोक व्यापार में स्थिर अधिकार बनाने के बाद फिर अगला चरण फुटकर व्यापार का होगा और यह जो फुटकर व्यापारी अभी वालमार्ट, अमेजन, जियो मार्ट, केश एन्ड कैरी आदि थोक विक्रेताओं की चेन है, वे ही उनके डिलेवरी मैन बन जाएंगे। इसकी तैयारी इन विदेशी कंपनियों ने शुरू कर दी है, जिसके पहले चरण में भारतीयों के डाटा खरीदना शुरू कर दिया है। फ्रांस की कंपनी ने एक दैनिक अखबार को 28 जी.बी. में 30 लाख भारतीयों का डाटा देने का सौदा किया था और प्रति 1 लाख डाटा पर 4.25 लाख याने लगभग 1.25 करोड़ में सौदे की बात की थी। इस डाटा से ही आजकल बहुराष्ट्रीय कंपनियां बाजार के ट्रेंड को समझती है और तय करती है कि उनके ग्राहकों को क्या चाहिए या उन्हें कैसे अपना ग्राहक बनाया जाए? बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने थोक व्यापार पर तो लगभग कब्जा जमा ही लिया है, अब अगला चरण फुटकर व्यापार पर कब्जे का होगा उसकी यह तैयारी है। यह डाटा उन्हें फुटकर व्यापार के ऊपर कब्जे के लिये आम जन की इच्छाओं - क्षमता - प्रवृृŸिायों- आदि को समझने के लिये शोध का कच्चा माल जैसा होता है। वैसे भी ये निजी जानकारियां हैं, जिन्हें किसी को देना या बेचना निजता व गोपनीयता के कानून का उल्लंघन है। पर क्या कोई सरकार इन डाटा चुराने व खरीदने वाली कंपनियों के विरूद्ध कुछ करने में कभी समर्थ होगी?
याने भारत सरकार न केवल सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण और विदेशी पूँजीकरण कर रही है बल्कि देश के छोटे बड़े निजी क्षेत्र को भी दुनिया के दैत्य कारपोरेट को निगलने की अनुमति दे रही है।
रघु ठाकुर ने अंत में बताया कि, देश में चार प्रकार की प्रकृतियां नज़र आ रही है। लालच, तटस्थता, निराशा और निजी स्वार्थ। यह गंभीर बीमारियाँ उसी प्रकार की है, जैसे किसी व्यक्ति को कैंसर, टी.बी., हृदय रोग की बीमारी एक साथ हो जाए तो उसका बचना मुश्किल ही होगा। अगर इन राष्ट्रीय बीमारियों से देश का आम जन मुक्त होकर सबसे हटकर देश के बारे में सोचना शुरू नहीं करेगा तो इसके परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भुगतना होगा। देश के दो करोड़ सरकारी गैर सरकारी पेंशन धारियों या बड़े पैकेज धारियों का जीवन हो सकता है कि सुरक्षित गुजर जाए, परन्तु उनकी आने वाली पीढ़ियां और संताने बेरोजगारों की फौज में खड़ी दिखेेंगी जो या तो भूख से मरेंगे या अपराधी बनकर मरेंगे या फिर पुलिस की गोलियों से।
swatantrabharatnews.com