COVID-19 - व्यंग्य: …….. और बेरोजगार हो गये रिंकिया के पापा!
COVID- 19 - कोरोना महामारी से उत्पन्न हालात पर बरिष्ठ पत्रकार- नवेन्दु उन्मेष द्वारा प्रस्तुत व्यंग्य______
भाजपा ने रिंकिया के पापा को इतना खींचकर तमाचा जड़ा कि वे दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष की गद्दी से धड़ाम से नींचे गिर गये। उन्हें चोट तो नहीं लगी लेकिेन गाल पर हाथ रखे जैसे ही वे भाजपा कार्यालय से बाहर आये तो उन्हें कुछ बिहारी मजदूर जरूर मिल गये। बिहारी मजदूरों ने उनसे कहा कि रिंकिया के पापा-लाॅकडाउन के कारण आप भी बेरोजगार हुए और हम भी।
इसलिए हम कहते हैं कि दिल्ली दिल वालों की है। दिल्ली में वही टिक सकता है जिसके पास अभिनेता राजकपूर की मेरा नाम जोकर फिल्म की तरह पर बड़ा दिल हो। अभी तक वैसा दिल सिर्फ राजकपूर के पास ही था। इसलिए वे उस दिल को लेकर पूरी दुनिया में छाये रहे। लेकिन हम बिहारियों के पास उतना बड़ा दिल तो है नहीं कि हम उसे पूरी दुनियां में दिखा सकें।
राजकपूर जब उस दिल को लेकर रूस गये तो लोगों ने भारत का राष्ट्रीय गीत______
’मेरा जूता है जापानी ये पतलून इंगलिश्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’ को समझा।
इससे तो अच्छा अपना बिहार है जहां दिल के साथ दिललगी भी हो जाती है। मजदूरों ने रिंकिया के पापा को बहुत देर तक समझाया। कहा आप तो बेकार मुंबई की मायानगरी छोड़कर दिल्ली के दिल को पाने के लिए यहां आये थे। वैसे हम भी तो बिहार छोड़कर दिल्ली का दिल पाने के लिए ही आये थे लेकिन मुआ लाॅकडाउन ने दिल्ली का दिल ही छीन लिया तो हम क्या करें। अब तो हम पांव पैदल ही बिहार जा रहे हैं। अगर आपके पास कोई सवारी नहीं है तो हमारे साथ पैदल हो लें। बिहार जाकर हम लोग कुछ न कुछ अवश्य कर लेंगे।
रिंकिया के पापा ने मजदूरों से कहा कि तुम लोग तो बिहार जाकर कुछ न कुछ कर लोगे। तुम लोगों को तो नीतिश सरकार मनरेगा में कोई न कोई काम अवश्य देगी लेकिन मेरे लिए तो मुंबई ही बेहतर होगा। मजदूरों को रिंकिया के पापा ने यह भी नसीहत दी कि देखो तुम पांव पैदल बिहार तो जा रहे हो लेकिन रेल की पटरियों पर सोना नहीं। इन दिनों रेल की पटरियां भी मजदूरों की दुश्मन बनी बैठी हैं। रेल की पटरियों कभी मजदूरों की दोस्त हुआ करतीं थी। जिन पटरियों को मजदूरों ने बनाया था वह उनकी कारीगरी को समझ नहीं रहीं हैं।
वह तो मजदूरों के साथ वैसा ही व्यवहार कर रहीं हैं जैसा कि ताजमहल बनाने के बाद शाहजहां ने किया था। तब शाहजहां ने ताजमहल बनाने वाले मजदूरों के हाथ कटवा दिये थे।
तब तक भाजपा कार्यालय के बाहर आदर्श आ गये और बोले- अब इस कार्यालय मे मेरा आदर्श चलेगा। जिन लोगों को मेरे आदर्श की जरूरत हो वे ही यहां रह सकते हैं। इसके बाद कार्यालय के बाहर आदर्श के जय-जयकारे लगने लगे। तब रिंकिया के पापा ने मन में सोचा-
‘एक चतुर नार करके श्रृंगार मेरे मन के द्वार ये घुसत जात। हम मरत जात अरे हे हे हे।‘
अब सब कार्यकर्ता भी आदर्श के आदर्शो की तख्तियां लिये भाजपा कार्यालय में प्रवेश कर चुके थे और रिंकिंया के पापा सोच रहे थे कि बिहार लौट जायें या मुंबई की मायानगरी।
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