COVID-19: लॉक-डाउन और उसके परिणाम: रघु ठाकुर
ख्यातिनाम गांधीवादी - महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा शहीद-ए-आजम भगत सिंह एवं डॉ. लोहिया के सैद्धांतिक लक्ष्य, जो एक ऐसे 'समतामूलक समाज' की स्थापना, जिसमें कोई व्यक्ति किसी का शोषण न कर सके और किसी प्रकार का अप्राकृतिक अथवा अमानवीय विभेद न हो, को पूर्ण करने हेतु समर्पित लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक व राष्ट्रीय संरक्षक- रघु ठाकुर ने भोपाल के लोहिया सदन से "लाॅक-डाऊन और उसके परिणाम" पर अपना वक्तव्य जारी किया है, जो मूल रूप में प्रस्तुत है:
भोपाल: आज के समाचार पत्रों के मुताबिक सारी दुनिया में करोना संक्रमित लोगों की संख्या लगभग 20 लाख के आसपास पहुंच चुकी है और भारत में संक्रमित लोगों की संख्या 12759 तथा 420 लोगों की मृत्यु बताई जा रही है।
निसन्देहः संक्रमण का प्रभाव इन आंकड़ों के अनुसार भारत में दुनिया में सबसे कम है और इसके लिए भारत सरकार के विलंबित लॅाकडाउन के उनके निर्णय की प्रशंसा की जा सकती है।
विलंबित मैंने इसलिए कहा कि सेंट्रल रैपिड रिस्पांस टीम, जिसे भारत सरकार ने ही गठित किया था, कि रपट में कहा है कि लॉकडाउन लागू होने के 15 दिन पहले ही कोरोना इंदौर में प्रवेश कर चुका था।
कम से कम उन मित्रों को, जो बगैर तथ्यों को जाने आलोचना करते हैं, कम से कम उन्हें इन सरकारी तथ्यों का संज्ञान लेना चाहिए। कोरोना महामारी के दो और भी प्रभावित हिस्से हैं जो कोरोना की सीधी मार के क्षेत्र में नजर भी नहीं आते। परंतु अप्रत्यक्ष मार से प्रभावित हैं। इनमें से एक तबका किसान है, जो गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। परंतु राजनीतिक कोरोना वायरस विशेषज्ञों और मुख्य मीडिया की नजरों से अभी भी ओझल है।
किसानों की फसलें तैयार हो चुकी हैं और लगभग कट चुकी हैं। छोटे किसानों की तो फसलें तैयार होकर खेत - खलियान में पड़ी हैं। और अभी तक सरकार ने कृषि उपज की खरीद के लिए ना तिथि घोषित की है ना कोई सोची-ंसमझी व्यापक नीति बनाई है।
लॉक-डाउन प्रधानमंत्री जी के निर्देशों के अनुसार 3 मई तक पूरे देश में लगाने का निर्णय लिया गया। हालाँकि आठ नौ राज्यों ने प्रधानमंत्री की इच्छा को समझ कर पहले ही लॉक-डाउन ब-सजय़ाने का प्रस्ताव भेज दिया था। संक्रमण रोकने का एक मात्र प्रमाणिक तरीका लॉक-डाउन ही दुनिया में प्रभावी सिद्ध हो रहा है, इसलिए लाॅकडाउन के तकनीकी पक्ष और सरकार निर्णय पर मैं अभी कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।
परंतु इस पर जरूर ध्यान दिलाना चाहूंगा कि देश में लगभग 7 लाख गांव हैं और लगभग 30 करोड लोग कृषि के माध्यम से ही अपनी आजीविका चलाते हैं। सरकार ने पहले ही किसानों की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तार्किक और न्याय संगत तय नहीं किया है। उसकी चर्चा फिलहाल छोड़ दें, तब भी जो आज का सबसे ज्वलंत प्रश्न है कि किसान लॅेाक-डाउन में या सीमित लाॅक-डाउन में अपनी फसल किसको बेचे और कैसे बेचे? मेरे पास ग्रामीण क्षेत्रों से निरंतर सूचनाएं आ रही हैं कि, सरकार ने ना खरीद सुरु की है और ना ही कोई विकल्प दिया है।
अतः गांव-गांव में कृषि उपज माफिया के दलाल सक्रिय हो गए हैं तथा वह किसानों को भयभीत कर उनकी फसलों को सस्ते दामों पर खरीदने का अनुबंध कर रहे हैं।
इसके एवज में कुछ अग्रिम राशि भी दे रहे हैं। हालात यह हो गई कि, मटर का एमएसपी सरकार ने रू 4800/= प्रति कुंटल, गेहूं का बोनस के बगैर 1925/= रुपए प्रति कुंटल एवं चने का रू 4000/= प्रति कुंटल दाम निर्धारित किया है। जिसे दलाल क्रमशः मटर रू 4000/= गेहूं, रू 1400/=, चना रू3000/= प्रति कुंटल के दाम से खरीद रहे हैं। सरकार को यह भी पता नहीं है कि, गांव की कुल उपज का 30 से 40 प्रतिशत अनाज दलाल इस प्रक्रिया से अभी तक खरीद कर चुके हैं।
भारत के कृषि मंत्री ने कहा है कि, वे राज्य सरकारों को निर्देश दे रहे हैं कि जिस किसी भी तारीख से खरीद शुरू करें उसके 90 दिन तक सरकारी खरीद कर सकते हैं।
यानी भारत सरकार के द्वारा खरीदा जाने वाला अनाज का पैसा खरीदी -सुरु होने से लेकर 90 दिन की अवधि के बीच तक का भारत सरकार देगी। परंतु उन्होंने यह विचार नहीं किया कि लाॅकडाउन की वर्तमान अवधि 15 अप्रैल और बाद की वृद्धि की अवधि 3 मई के बाद जब सरकार खरीदी की घोषणा करेगी तो सारी तैयारी की प्रक्रिया में न्यूनतम 10 दिन का समय लगेगा। यानि खरीदी की प्रक्रिया 3 मई के हिसाब से 13 मई तक ही सुरु हो सकेगी।
सरकार के अनुसार 15 जून से बरसात -सुरु हो जाती है, अगर कुछ विलंबित भी हुई तो भी 30 जून से 10 जुलाई के बीच बहुत भारी बरसात सुरु हो सकती है। यानी किसानों की फसल खरीद वास्तव में मुश्किल से 1 माह ही हो सकेगी।
दूसरे किसानों पर सरकारी और प्राइवेट साहूकार कर्ज वसूलने के लिए दबाव डालेंगे। गैर सरकारी साहूकारों ने तो अभी से उनकी गर्दन दबाना -सुरु कर दिया है। छोटे किसान और गरीब लोग बड़े जमींदारों और साहूकारों का सामना नहीं कर सकते और औसतन 500/= से 1000/= का घाटा खाकर दलालों को अनाज बेच रहे हैं।
इसके अलावा अगर यह फसल खेतों में ही पड़ी रही तो इतने अनाज को घरों में रखा जाना संभव नहीं है। एक तरफ पशु-पक्षी अनाज खाएंगे।
क्या सरकार को इतना भी ज्ञान नहीं है कि, आज के गांव लावारिस जानवरों व गायों के आतंक से पीडित हैं। उन्हें ऐसी भीषण गर्मी में फसलों को बचाना कैसे संभव होगा। वे जंगली जानवरों को नही मार सकते हैं। अगर भगवान ना करे कि बारिश या ओलाबृष्टि की प्राकृतिक आपदा आ गई तो बर्बादी को बचाना ही असम्भव हो जाएगा।
परंतु यह सवाल सरकार की चिंता के नहीं हैं। वेयर हाउसों में जगह भी नहीं है और वह भी अमूमन गांव से कई किलोमीटर दूर -शहर और कस्बों के पास हैं। जहां लाॅकडाउन में फसलों को ले जाने का साधन या रास्ता किसानों के पास नहीं है। केंद्र से लेकर राज्य तक सत्ता के मुखिया के सलाहकार वह लोग हैं जो नौकर-शाह या थैली -शाह हैं, जिन्हे न किसानों की समस्या का ज्ञान है और न ही उसे हल करने चिंता।
मध्य प्रदेश में पिछली सरकार के मुखिया श्री कमलनाथ ने भले ही किसी कारण से एक निर्णय ठीक किया था कि सरकारी राशि लेने वालों को तीन-तीन माह का अग्रिम राशि दे दिया था। इसका लाभ यह हुआ कि सरकार की गोदामों में जगह खाली हो गई और बारदाना खाली हो गया।
मैं तो अभी भी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से अपील करूंगा कि, वह निम्न कदम उठाने का कष्ट करें, जिससे इस वर्ग को राहत मिल सके:
1. सार्वजनिक रूप से घोषणा करें कि जिन दलालों ने किसानों का सस्ता अनाज खरीदा है वह -धुलाई काट कर बकाया पूरा पैसा किसानों को दें, वरना उन पर रासुका की कार्यवाही की जायगी।
हाॅंलांकि सरकार अपने राजनीतिक व आर्थिक समर्थकों के खिलाफ ऐसा कोई कदम उठाएगी पर मुझे उम्मीद नहीं है।
मैंने 10 दिन पहले प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी को किसानों की दलालों की लूट की समस्या की जानकारी उनके ट्विटर पर दी थी परंतु अभी तक उस बारे में सुनने को नहीं मिला।
2. प्रत्येक तहसील के 50 से 100 गांव चुनकर उन्हें नजदीकी कृषि उपज मंडी या खरीद केंद्र से जोड़ें। वहां के कर्मचारी सरकारी वाहन यानी पुलिस, वन, सिंचाई आदि विभाग के ट्रकों तथा आवश्यकतानुसार प्राइवेट ट्रक किराए पर लेकर इन पूर्व चयनित ग्रामों में जाएं तथा किसानों की फसल खरीद कर उन्हें तिथि बार चेक दें, ताकि बैंक की एक शाखा पर 1 दिन में 100 लोगों से अधिक भुगतान के लिए ना पहुंचे। जिनके पास ए.टी.एम. की सुविधा है उनके पैसों को भी नजदीकी ए।टी।एम में इसी हिसाब से डाला जाए ताकि 100 से अधिक व्यक्ति दिन भर में न जाएं।
3. प्रदेश सरकार ने सख्त लॉकडाउन करके किसानों और उपभोक्ताओं के बीच सब्जी बेचने के माध्यम को रोक दिया है। अब किसान मंडी में आकर सब्जी बेच रहे हैं।उन्हें निगम या सरकारी एजेंसी खरीद रही है तथा उसे होम डिलीवरी के नाम से बेचा जा रहा है तथा कुछ चयनित बड़ी दुकानों जैसे डी मार्ट आदि के माध्यम से बिकवाया जा रहा है।
परंतु इस प्रक्रिया से कुछ बड़े और ताकतवर लोगों तक ही सब्जी पहुंच पा रही है। विशेषतः जिनके पास रू 5/= या 10/= की सब्जी खरीदने की क्षमता होती है, वह नहीं खरीद पा रहे हैं। हजारों ठेले वालों की जिनकी अजीविका ही सब्जी बेचकर घर चलाने की थी वह खत्म हो गई है।
दूसरी तरफ किसानों को भी पर्याप्त दाम नहीं मिल पा रहे है। उनकी सब्जी तैयार है और अगर उसे बेचा न गया तो उनकी उपज विशेषतः हरी सब्जियां जैसे टमाटर गोभी, पालक खेत में ही सड़ जाएंगे।
तीसरी तरफ जो लोग चोरी छुपे सब्जी बेच रहे हैं, उन्हें वह बहुत महंगा बेचने को लाचार हैं। मसलन एक सब्जी वाला आटों पर सब्जी रख कर बेचने को लाया है वह छुप कर गलियों में खड़ा होकर बेचता है। उसे दिनभर का ऑटो का किराया कम से कम रू 1000/= तो देना ही होगा ।
इसका परिणाम यह हुआ है कि, चार-पांच अप्रैल तक जो ठेले वाले गलियों में रू 10/= प्रति किलो टमाटर रू10/= प्रति किलो गोभी, प्याज आदि बेच रहे थे वह टमाटर, रू 60/= गोभी, रू 50/= आलू रू 40/= के भाव से बेच रहे थे।
यानी एक तरफ किसान लुट गया वहीं दूसरी तरफ आम गरीब उपभोक्ता लुट गया।
दूसरी तरफ लॅाक-डाउन से पैदा होने वाली बेरोजगारी का हाल बेहाल है। अभी तो कारखानों से लेकर निर्माण कार्य तक सब बन्द हैं। ग्रामीण मजदूर भी बेरोजगार हैं और भुखमरी की हालत में हैं।
लॉक-डाउन समाप्त होने के बाद भी जो छोटी यूनिट बंद हो चुकी हैं या बगैर ऑटोमेशन वाले कारखाने हैं, उन्हें चालू करना आसान नहीं होगा। इंडियन एक्सपोर्ट एशोसियेसन अध्यक्ष के अनुसार लॅाकडाउन के खुलने के बाद डेढ़करोड़ मजदूर केवल निर्यात के क्षेत्र के बेरोजगार होंगे।
कुछ बड़े उद्योग पतियों को छोड़ दें तो छोटे उद्योगों में मजदूर मालिक में लाॅक-डाउन की अवधि की बकाया मजदूरी को लेकर बहुत झगड़े सम्भावित हैं। मजदूर सरकार की अखबारी घोषणा के अनुसार अपनी मजदूरी का पैसा मांगेगा और मालिक बन्दी और अपना घाटा बताकर इससे इनकार करेंगे। उत्पादन के केंद्र, तनाव व टकराव के केंद्र बन जाएंगे।
परंतु सरकारों ने अभी तक इस पर कोई विचार नहीं किया। आर।बी।आई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने एक अच्छा सुझाव दिया है कि लॅाक-डाउन और बंदी के नाम पर सरकारें जो पैकेज घोषित करें वह कारखानों के मालिक की बजाए मजदूरों या उपभोक्ताओं को सीधे दिया जाना चाहिए वरना देश की जनता का जमा पैसा भी चला जाएगा और उद्योग जगत अपने घाटा-पूर्ति के नाम पर उसे हड़प कर लेगा। वह मजदूरों को नहीं मिलेगा।
क्या उम्मीद करें की सरकार अभी से इन सम्भावित समस्याओं के निदान की तैयारी सुरु करेगी? और लोक-डाउन के समान बगैर पूर्व विचार के निर्णय नहीं करेगी।
(रघु ठाकुर)
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