विशेष: सामाजिक कुरीतियों का आधार है 'तनाव'
'तनाव' शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। 'तन' + 'आव' तन का तात्पर्य शरीर से है और 'आव' का तात्पर्य घाव से है। अर्थात वह शरीर, जिसमे घाव हैं।
कहने का तात्पर्य 'तनाव' एक मानसिक बीमारी है जो दिखाई नहीं देती है। शरीर का ऐसा घाव जो दिखाई न दे, तनाव कहलाता है।
तनाव से ग्रसित इंसान को सारा समाज पागल दिखाई देता है। 'तनाव' वो बीमारी है, जिसमे इंसान हीन भावना से ग्रसित होता है। तनाव मूल रूप से विघर्सन है। घिसने की क्रिया ही 'विघर्सन' कहलाती है। घिसना अर्थात विचारों का नकारात्मक होना या मन का घिस जाना।
अतएव 'तनाव' मनोविकार है। तनाव नकारात्मकता का पर्यायवाची है।
एक कहावत है।
'भूखे भजन न हो, गोपाला। पहले अपनी कंठी माला---, भूखे पेट तो ईश्वर का भजन भी नहीं होता है।
कहने का तात्पर्य जब हम स्वयं का आदर व सम्मान करते हैं, तभी हम देश और समाज की सेवा कर सकते हैं। तनाव से ग्रसित इंसान जो खुद बीमार है वो दूसरों को भी बीमार करता है। तनाव से ग्रसित इंसान दूसरों को भी तनाव में डालता है। ऐसे नकारात्मक लोगों से दूर रहना चाहिए।
नकारात्मकता के विशेष लक्षण:-
1. अपने स्वार्थ के लिए दूसरों पर आरोप लगाना।
2. अपने को सही और दूसरों को गलत समझना। हमेशा नकारात्मक चीजों पर बात करना।
3. सकारात्मक विचार और सकारात्मक लोगों से दूरी बनाना।
4. दूसरे की सफलता से ईर्ष्या करना, ऊपर दिए गए लक्षणों से बचना ही तनाव से मुक्ति का कारण है।
5. तनाव में ही मानव अपराध करता है। तनाव अंधकार का कारक है।
समाज की अवनति का कारण है तनाव- सकारात्मकता से तनाव पर विजय पाई जा सकती है।
अतएव 'असतो मा सद्गमय - तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय ॥ [बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28 ।]
अर्थ:-
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो । मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥
यही अवधारणा समाज को चिंतामुक्त और तनाव मुक्त बनाती है।
[लेखक हैं, डॉ. शंकर सुवन सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, वार्नर कॉलेज ऑफ़ डेयरी टेक्नोलॉजी, सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, नैनी, प्रयागराज के (इलाहाबाद) - 211007].
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