विशेष: पुनर्जागरण के अग्रदूत थे विवेकानंद
भारत में प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय युवा दिवस स्वामी विवेकानंद की जयंती पर मनाया जाता है।
यह विवेकानन्द जी की 157 वी जयंती है। 1984 में, भारत सरकार ने 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में घोषित किया।
1985 से भारत में, इस कार्यक्रम को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। यह भारत के युवाओं को प्रेरित करता है। राष्ट्रीय युवा दिवस 2020 की थीम है. 'चैनेलाइजिंग युथ पावर फॉर नेशन बिल्डिंग' (राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति को सही दिशा में लगाना) अर्थात युवाओं की ऊर्जा का सदुपयोग राष्ट्र के निर्माण में किया जाए।
स्वामी विवेकानन्द में अदम्य साहस था। भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 ई. को कलकत्ता में पवित्र मकर संक्रांति के दिन हुआ था।
भारत में प्रत्येक वर्ष के 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानन्द के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था। नरेंद्र नाथ विचारशील थे। 15 अगस्त 1886 ई. की मध्य रात्रि को श्री रामकृष्ण परमहंस समाधि में लीन हो गए।
रामकृष्ण परमहंस विवेकानन्द के गुरु थे। रामकृष्ण द्वारा सौंपे गए कार्य को निभाने का उत्तरदायित्व नरेंद्र नाथ पर आ पड़ा नरेंद्र नाथ 25 वर्ष की आयु में परिव्रज्या ग्रहण कर वह समग्र भारत की यात्रा पर निकल पड़े। नरेंद्र नाथ अब स्वामी विवेकानन्द के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
स्वामी विवेकानंद सदैव यही आग्रह किया करते थे कि यदि हमें इस देश की समस्या का सही निदान ढूढ़ना है तो सर्वप्रथम इस देश को देखना होगा। विवेकानंद ने भारत यात्रा में भारतीय जनता का वास्तविक रूप देखा। भारत माता के इस स्वरुप को देखकर उन्होंने भारतीय युवकों को सन्देश दिया- 'आगामी 50 वर्षो तक तुम लोग अपनी जननी जन्म भूमि की अराधना करो और इस समय तुम्हारा एक मात्रा देवता है- तुम्हारा राष्ट्र'।
किसी भी देश का युवा उस देश के विकास का सशक्त आधार होता है। जब यही युवा अपने सामाजिक और राजनैतिक जिम्मेदारियों को भूलकर विलासिता के कार्यों में अपना समय नष्ट करता है, तब देश बर्बादी की ओर अग्रसर होने लगता है। विशेषकर आज के युवा वर्ग को, जिसमें देश का भविष्य निहित है, और जिसमें जागरण के चिह्न दिखाई दे रहे हैं, अपने जीवन का एक उद्देश्य ढूँढ लेना चाहिए। हमें ऐसा प्रयास करना होगा ताकि उनके भीतर जगी हुई प्रेरणा तथा उत्साह ठीक पथ पर संचालित हो। अन्यथा शक्ति का ऐसा अपव्यय या दुरुपयोग हो सकता है कि जिससे मनुष्य की भलाई के स्थान पर बुराई ही होगी।
पूरे विश्व में भारत को युवाओं का देश कहा जाता है। अपने देश में 35 वर्ष की आयु तक के 80 करोड़ युवा हैं। अर्थात् हमारे देश में अथाह श्रमशक्ति उपलब्ध है। आवश्यकता है आज हमारे देश की युवा शक्ति को उचित मार्ग दर्शन देकर उन्हें देश की उन्नति में भागीदार बनाने की। उनमे अच्छे संस्कार, उचित शिक्षा एवं प्रोद्यौगिक विशेषज्ञ बनाने की, उन्हें बुरी आदतों जैसे- नशा, जुआ, हिंसा इत्यादि से बचाने की। देश के निर्माण के लिए, देश की उन्नति के लिए, देश को विश्व के विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा करने के लिए युवा वर्ग को ही मेधावी, श्रमशील, देश भक्त और समाज सेवा की भावना से ओत प्रोत होना होगा।
कठोपनिषद् में मंत्र है:
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत । क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।
(कठोपनिषद्- अध्याय 1, वल्ली 3, मंत्र 14)
जिसका अर्थ कुछ यूं हैः
उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो। विद्वान् मनीषी जनों का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम है जिस प्रकार छुरे के पैना किये गये धार पर चलना।
स्वामी विवेकानंद के उपदेशात्मक वचनों में एक सूत्रवाक्य विख्यात है- 'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।' इससे प्रतीत होता है की विवेकानंद जी का वैदिक चिंतन तथा अध्यात्म में उनकी श्रद्धा थी ।
इस वचन के माध्यम से उन्होंने देशवासियों को अज्ञानजन्य अंधकार से बाहर निकलकर ज्ञानार्जन की प्रेरणा दी थी। कदाचित् अंधकार से उनका तात्पर्य अंधविश्वासों, विकृत रूढ़ियों, अशिक्षा एवं अकर्मण्यता की अवस्था से था।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आध्यात्मिक शक्ति से ओतप्रोत स्वामी विवेकानंद जी राष्ट्र भक्त भी थे। अमेरिका के शिकागो नगर में 1893 ई. के सितम्बर में एक सर्व सर्व धर्म सम्मेलन होने वाला था, उसमे भाग लेने के लिए स्वामी विवेकानन्द 1893 ई. मई में जहाज से निकले। वैसे सम्मेलन समिति कि ओर से उन्हें प्रतिनिधि के रूप में निमंत्रण नहीं था किन्तु काफी असुविधाएं सहन करने के बाद उन्हें सम्मेलन में प्रवेश मिला। पहले ही दिन भाषण से उन्होंने सारे अमेरिका को जीत लिया।
ऐसे विशाल समूह के समक्ष भाषण देने का उनका यह पहला अवसर था। उन्होंने प्रारम्भ में अमेरिका वासियों को बहनों और भाइयों जैसे शब्दों से वहां के श्रोताओं को सम्बोधित किया। उनके इस सम्बोधन ने पाश्चात्य जगत को मंत्र मुग्ध कर डाला द्यस्वामी विवेकानन्द का सन्देश जनजीवन का सन्देश था।
स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय और पाश्चात्य सभ्यता को जोड़ने में सेतु का कार्य किया द्य स्वामी जी ने अपने जीवन में जो कार्य किया उसके दो पहलु हैं- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय।
इन दोनों क्षेत्रों में उन्होंने जो कार्य किया तथा जो शिक्षा दी वह सचमुच ही अलौकिक है। स्वामी विवेकानन्द वास्तव में अद्वितीय छवि के दूत थे। राष्ट्र के विकास की आधारशिला है- युवा शक्ति। विवेकानंद युवा शक्ति के प्रेरणास्रोत थे।
स्वामी विवेकानंद अत्यन्त विद्वान पुरुष थे। एक बार अमेरीकी प्रोफेसर राइट ने कहा था कि, 'हमारे यहाँ जितने भी विद्वान हैं, उन सबके ज्ञान को यदि एकत्र कर लिया जाए तो भी, स्वामी विवेकानंद के ज्ञान से कम होगा।'
स्वामी विवेकानंद भारत के महान सपूत, देशभक्त, समाज-सुधारक और तेजस्वी संन्यासी थे। स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षाओं को जीवन में अपनाने का प्रयास करते हुए, उनको शत-शत नमन करना हमारी सांस्कृतिक. गरिमा की पहचान है। अतः आइये, आज उनकी जयंती के इस शुभ अवसर पर हम पुनः उनका स्मरण एवं वंदन करें।
[लेखक हैं, डॉ. शंकर सुवन सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, वार्नर कॉलेज ऑफ़ डेयरी टेक्नोलॉजी, सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, नैनी, प्रयागराज के (इलाहाबाद) - 211007].
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