नजरिया: आरक्षण बनाम विकास या राष्ट्रीय विकास पर हावी होता आरक्षण!
आरक्षण का अर्थ है सुरक्षित करना। हर स्थान पर अपनी जगह सुरक्षित करने या रखने की इच्छा प्रत्येक व्यक्ति को होती है, चाहे वह रेल के डिब्बे में यात्रा करने के लिए हो या किसी अस्पताल में अपनी चिकित्सा कराने के लिए विधानसभा या लोकसभा का चुनाव लड़ने की बात हो तो या किसी सरकारी विभाग में नौकरी पाने की । लोग अनेक तरह की दलीलें देकर अपनी जगह सुनिश्चित करवाने और सामान्य प्रतियोगिता से अलग रहना चाहते हैं । केवल जाति, धर्म और धन के आधार पर आरक्षण से, गुणी व्यक्तियों को पीछे धकेल कर, हम देश को नुकसान ही पहुँचा रहे हैं । यह देश जाति-धर्म, धनी-गरीब आदि आधारों पर और अधिक विभाजित होता जा रहा है। संविधान में आरक्षण की व्यवस्था समाज में सामाजिक न्याय स्थापित करते हुए विधायिका, नौकरशाही एवं न्यायपालिका में सभी प्रकार के जाति-समूहों की समान सहभागिता बढ़ाने के उदेश्य से की गई थी परंतु वोटों के लालच में कोई भी राजनीतिक दल जातिगत सोच से ऊपर नहीं उठ सका तथा सामाजिक समानता प्राप्त करने का अस्त्र आरक्षण सामाजिक वैमनस्य का माध्यम बन गया।
आरक्षण व्यवस्था के लागू करने में जो मुख्य कमियाँ रही हैं, वे इस प्रकार हैं:-
संविधान में आरक्षण के साथ-साथ समाज-सुधारकों, राजनेताओं एवं सरकारों को जातिगत सोच से ऊपर उठकर अस्पृश्यता, जातिगत भेद-भाव को समाप्त करने का सामाजिक आंदोलन चलाने की आवश्यकता थी।
किंतु ऐसा न होकर राजनीतिक दलों ने जातिगत समीकरणों के आधार पर संसद, विधान सभा एवं पंचायतीराज संस्थाओं के लिए उम्मीदवार खड़े किए और वोट माँगे, राजनेताओं द्वारा जातिगत आधार पर खड़े किए गए संगठनों, शिक्षा संस्थाओं, होस्टलों, पूजास्थलों आदि को प्रश्रय दिया । लोगों को जातिगत आधार पर नाम रखने के लिए हतोत्साह एवं वर्जित नहीं किया गया, परिणामस्वरूप जातिगत भेदभाव जिस तीव्र गति से कम होना चाहिए था वह कम नहीं हुआ और इस जातिगत भेदभाव की विद्यमानता को बताकर सभी राजनीतिक दलों ने एक स्वर से आरक्षण की अवधि बढ़ाने के लिए संशोधन अधिनियम पारित किए। सत्य और अहिंसा विरोधी रथ पर सवार हो सत्ता के चरम शिखर पर पहुँचने वाले सुधारकों की मनोदशा ठीक नहीं है। सुधारकों की प्रवृत्ति ठीक होती तो देश में आरक्षण को लेकर राजनीति न होती।
शिक्षा समाज का दर्पण है। इस परिपेक्ष्य में शिक्षा का बहुजन हिताय स्वरुप प्रधान होकर गरीब तथा वंचित वर्ग का नेतृत्व करता दिखाई देता है। भारत में शैक्षिक प्रबंधन अच्छा नहीं है। आजादी के बाद देश को चलाने के लिए डॉ• भीमराव अम्बेडकर के नेतृत्व में हमारे देश का संविधान लिखा गया। जिसे लिखने में पूरे 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे। 26 जनवरी 1950ई• को सुबह 10:18 मिनट पर भारत का संविधान लागू किया गया। इसी उपलक्ष्य में हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाने लगे। गणतंत्र दो शब्दों से मिलकर बना है। गण और तंत्र। गण का शाब्दिक अर्थ है दल/समूह/लोक और तंत्र का शाब्दिक अर्थ है डोरा/ सूत (रस्सी) अर्थात ऐसी रस्सी/ डोरा, जो लोगों के समूह को जोड़े, लोकतंत्र कहलाता है। भारत में लोकतंत्र है और राजनेताओं ने लोकतंत्र का आधार, आरक्षण को बना दिया है। भ्रष्ट प्रशासन, शिक्षा से लेकर न्याय तक का राजनैतिककरण होना, लोकतंत्रात्मक प्रणाली का जुगाड़ तंत्रात्मक हो जाना आदि अन्य सामाजिक कुरीतियों ने जन्म ले लिया। 25.08.1949 ई• में संविधान सभा में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आरक्षण को मात्र 10 वर्ष तक सिमित रखने के प्रस्ताव पर एस• नागप्पा व बी• आई• मुनिस्वामी पिल्लई आदि की आपत्तियां आयीं। डॉक्टर अम्बेडकर ने कहा मैं नहीं समझता कि हमे इस विषय में किसी परिवर्तन की अनुमति देनी चाहिए। यदि 10 वर्ष में अनुसूचित जातियों की स्थिति नहीं सुधरती तो इसी संरक्षण को प्राप्त करने के लिए उपाय ढूढ़ना उनकी बुद्धि शक्ति से परे न होगा। आरक्षण वादी लोग, डॉ अम्बेडकर की राष्ट्र सर्वोपरिता की क़द्र नहीं करता। आरक्षण वादी लोगों ने राष्ट्र का संतुलन ख़राब कर दिया है। आरक्षण वादी लोग वोट की राजनीति करने लगे हैं न कि डॉ• अम्बेडकर के सिद्धांत का अनुपालन कर रहे हैं। आरक्षण देने की समय सीमा तय होनी चाहिए जिससे दबे कुचले लोग उभर सकें। जब आरक्षण देने की तय सीमा के अंतर्गत दबे कुचले लोग उभर जाएं तो आरक्षण का लागू होना सफल माना जाए। आरक्षण कोटे से चयनित न्यायाधीश, आई.ए.एस., आई.ई.एस., पी. सी. एस. , इंजीनियर, डॉक्टर आदि अपने कार्य का संचालन ठीक ढंग से नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें कोटे के तहत उभरा गया | इस प्रकार के आरक्षण से मानवता पर कुठारा घात हो रहा है | अतएव शिक्षित व योग्य व्यक्ति को शोषण का शिकार होना पड़ रहा है | इस प्रकार की आरक्षित कोटे कि शिक्षा विकास कि उपलब्धि नहीं है। यह विकास के नाम पर अयोग्य लोगों को शरण देने वाली बात है। किसी भी देश के विकास में आरक्षण अभिशाप है |आज यदि हम देश को उन्नति की ओर ले जाना चाहते हैं और देश की एकता बनाये रखना चाहते हैं, तो जरूरी है कि आरक्षणों को हटाकर हम सबको एक समान रूप से शिक्षा दें और अपनी उन्नति का अवसर पाने का मौका दें ।
अतः राष्ट्र के विकास को जीवित रखने के लिए , आरक्षण को वोट कि राजनीति से दूर रखना होगा। आरक्षण, विकास का आधार नहीं हो सकता। आरक्षण लोकतंत्र का आधार नहीं हो सकता। आरक्षण समुदाय को अलग करने का काम करता है न कि जोड़ने का। ऐसी डोर जो समुदाय या लोगों को जोड़े वह है लोकतंत्र। लोकतंत्र का आधार सिर्फ और सिर्फ विकास हो सकता है क्योंकि डोर या रस्सी रूपी विकास ही समूह को जोड़ने का आधार है। लोकतंत्र का आधार विकास होना चाहिए न कि आरक्षण। ताजा स्थिति यह है कि आरक्षण राष्ट्रीय विकास पर हावी है।
जिस तरह देश में फर्जी स्कूलों कि बाढ़ आ चुकी है और हजार हज़ार में डिग्रियाँ बिक रही है जिससे वो लोग डिग्री तो पा लेते है किन्तु अपने दायित्वों का निर्वाह नही कर पाते क्योंकि योग्यता तो होती नही ! परिश्रम किए बिना ही पद मिल गया ! वही स्थिति जाति प्रमाण पत्र की है कि बिना परिश्रम के जाति प्रमाण पत्र के सहारे पद मिल जाता है। फिर देश का नाश हो या सत्यानाश इन्हे कोई फर्क नही पड़ता। जातिवाद देश को तोड़ने का काम करता है जोड़ने का नही ! ये बात इन लोगो कि समझ में नही आएगी क्योंकि समझने लायक क्षमता ही नही है। देश के विषय से इन्हे प्यारा है आरक्षण। दूसरों कि गलतियां निकाल कर ख़ुद को दोषमुक्त और दया का पात्र बनाना। आरक्षण जिसे ख़ुद अंबेडकर ने 10 साल से ज्यादा नही चाहा और जिसे ये लोग मसीहा मानते है उसके बनाए हुए नियम को ख़ुद तोड़ते है सिर्फ़ अपनी आरक्षण नाम कि लत को पूरा करने के लिए ! वैसे भी जब किसी को बिना किए सब कुछ मिलने लगता है तो मेहनत करने से हर कोई जी चुराने लगता है और वह आधार तलाश करने लगता है जिसके सहारे उसे वो सब ऐसे ही मिलता रहे। यही आधार आज के आरक्षण भोगी तलाश रहे है। कोई मनु को गाली दे रहा है तो कोई ब्राह्मणों को। कोई हिंदू धर्म को, तो कोई पुराणों को। कुछ लोग वेदो को तो कुछ लोग भगवान को भी। परन्तु ख़ुद के अन्दर झाँकने का ना तो सामर्थ्य है और ना ही इच्छाशक्ति। जब तक अयोग्य लोग आरक्षण का सहारा लेकर देश से खेलते रहेंगे, तब तक ना तो देश का भला होगा और ना समाज का और ना ही इनकी जाति का। देश के विनाश का कारण है आरक्षण। आज हर जाति में अमीर है हर जाति में गरीब। हर जाति में ज्ञानी लोग है और हर जाति में अज्ञानी। हर जाति में मेहनत कश लोग है और हर जाति में नकारा, हर जाति में नेता है और हर जाति में उद्द्योगपति। देश को तोड़ रहा है सिर्फ़ जातिवाद वो भी कुछ लोगो की लालसा, वोट बैंक की राजनीति के माध्यम से। जिस दिन हर जाति के लोग जात पात भुलाकर योग्यता के बल पर आगे जायेंगे और योग्यता के आधार पर देश का भविष्य सुनिश्चित करेंगे देश ख़ुद प्रगति के रास्ते पर बढ़ चलेगा।
लेखक: डॉ शंकर सुवन असिस्टेंट प्रोफ़ेसर एंड प्रॉक्टर, वार्नर कॉलेज ऑफ़ डेरी टेक्नोलॉजी, सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, नैनी, प्रयागराज (इलाहाबाद)।
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