भारतीय संस्कृति के ध्वज वाहक हैं राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
नर हो न निराश करो मन को........
के रचयिता राष्ट्र कवि श्री मैथिली शरण गुप्त की रचनाओं में राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत तथा नारी की वेदनाओं की झलक दिखाई देती है। महात्मा गांधी ने इसलिए इन्हें राष्ट्र कवि की संज्ञा से नवाजा। राष्ट्र आज के दिन कवि दिवस के रूप में भी मनाता है।
उन्हें अपनी लेखनी से जीवन पर्यंत भारत-भारती को आरती उतारने वाला सच्चे अर्थो में राष्ट्रकवि कहा। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय संबंधों की रक्षा गुप्त के काव्य के प्रथम गुण है। समाज में उपेक्षित नारी की आवाज को भी उन्होंने अपने काव्य में प्रमुखता से रखा। उनका का जन्म 3 अगस्त 1886 में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद के चिरगांव में हुआ था। बाल्यकाल से ही साहित्य के प्रति लगाव को देखते हुये परिवार जनों ने उनकी शिक्षा.दीक्षा में कोई कसर नही छोडी। भारतीय संस्कृति ध्वजवाहक कवि मैथलीशरण ने 50 साल तक निरंतर साहित्य का सृजन किया।
पं0 महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से गुप्त जी ने खडी बोली के शब्दों को साहित्य का सफर बनाया।
राष्ट्रकवि गुप्त जी ने लगभग 40 ग्रंथों की रचना की है। खड़ी बोली के सरल प्रवाहमय भाषा के सशक्त माध्यम से भारत-भारतीए साकेत, यशोधरा, कृणाल, जयद्रथ वध, द्वापर, पंचवटी, जयभारत जैसी प्रसिद्ध रचनाओं से हिंदी-साहित्य जगत को नई उंचाईयां प्रदान की। "साकेत" उपन्यास पर उन्हे मंगला प्रसाद पारितोषिक मिला था। इसके साथ ही उन्हें पद्म विभूषण उपाधि से अलंकृत किया गया था। इसके अलावा राष्ट्र सेवा के समर्पित साहित्यकार होने के कारण बर्ष 1952 से 1964 तक राज्यसभा के मनोनीत सांसद रहे।
(नवनीत मिश्र, स्वतंत्र पत्रकार)
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