तर्क - लूट और आस्था के आईने में प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल: केवल कृष्ण पनगोत्रा
कश्मीर स्थित श्री अमरनाथ गुफा में प्राकृतिक शिवलिंग को देखने हेतु साल 2019 के लिए पंजिकरण शुरु हो गया है।
इसी प्रकार विश्व प्रसिद्ध स्थान वैष्णों देवी गुफा को देखने के लिए साल भर यात्रा चलती है।
गंगा में स्नान का सिलसिला तो कभी थमा ही नहीं। ऐसे ही देश में कई दूसरे स्थान भी हैं, जहां आस्था के नाम पर लूट का धंधा भी चलता है। आस्था के शोर में तर्क और वैज्ञानिक खोज की प्रवृत्ति कमजोर पड़ती है।
श्री अमरनाथ गुफा से दो भाव जुड़े हैं। एक भाव तर्क की दृष्टि से देखने का है और दूसरा श्रद्धापूर्वक दर्शन करने का है। देखने के भाव का अभिप्राय प्राकृतिक दृश्यों का स्वाभाविक अवलोकन है, जहां प्राकृतिक रूप से घटी घटनाओं और वस्तुओं को देखकर अचंभित होने के साथ तर्क और वैज्ञानिक दृष्टि के समावेश का पुट भी रहता है। दर्शन के भाव में अचंभा तो होता है मगर श्रद्धा के वशीभूत तर्क और वैज्ञानिक दृष्टि का समावेश नहीं रहता।
प्राकृतिक नजारों और चमत्कारों का अवलोकन एक सनातन यानि प्राचीन परंपरा है। समय-असमय प्राकृतिक परिवर्तनों को श्रद्धा से भी जोड़ा जाता है और शोधादि गतिविधियों और क्रियाकलापों की दृष्टि से भी देखा परखा जाता है। प्राकृतिक दृश्यों के प्रति मनुष्य के इसी आकर्षण ने वर्तमान में पर्यटन उद्योग के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया है। लेकिन आस्था के नाम पर लूट का सिलसिला भी चल पड़ता है।
व्यापारीकरण और औद्योगीकरण बेशक एक दूसरे के पूरक हैं। व्यापारीकरण में वस्तुओं और सुविधाओं आदि को खरीदा-बेचा जाता है जबकि औद्योगीकरण में वस्तुओं और सुविधाओं आदि को पैदा किया जाता है। प्रकृति आकर्षण के बेजोड़ नमूने स्वयं पैदा करती है, जिससे स्वाभाविक व्यापार की संभावना पैदा होती है। और जब प्रकृति से स्वार्थवश छेड़छाड़ करके कृत्रिम विधि से औद्योगीकरण अमल में लाया जाता है तो विवादों और समस्याओं का भी उद्भव होता है।
पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक अजूबों से छेड़छाड़ एक प्रकार का उद्योगीकरण है। मगर व्यापारीकरण स्वाभाविक है। अगर मनुष्य किसी दर्शनीय स्थल को देखने जाता है तो वहां परिवहन स्वाभाविक है, लेकिन जब श्रद्धा के नाम पर जनता का शोषण शुरु हो जाए तो सब कुछ व्यवस्थित नहीं लगता। कहने का भाव है कि मनुष्य की अचंभित करने वाले स्थलों को देखने की स्वाभाविक लालसा को अगर भ्रमित करके स्वाभाविक व्यापार को लूट उद्योग बनाया जाएगा तो श्रद्धा और शोध की स्वाभाविक भावना को ठेस जरूर लगेगी।
जम्मू-कश्मीर स्थित हिमालय पर्वत श्रंखला के प्राकृतिक निर्माण के भौगोलिक परिवर्तन से कुछ ऐसे स्थलों का उद्भव हुआ, जो आरम्भ से ही मनुष्य के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं। जब से मनुष्य ने प्रकृति से संघर्ष के क्रम में इन स्थलों की खोज की तो भौतिक विकास क्रम और आध्यात्मिक विकास क्रम के साथ-साथ चलने से कहीं ये स्थल श्रद्धा से अनुचयित हुए और कहीं वैज्ञानिक खोजों का कारण भी बने। परन्तु मनुष्य के स्वाभाविक आकर्षण का मूल सिद्धांत अपनी जगह अटल रहा।
जम्मू-कश्मीर की हिमालय पर्वत श्रंखला में कई ऐसे प्रकृति प्रदत्त दृश्य हैं जो प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा अद्भुत भी हैं। कश्मीर स्थित विश्वप्रसिद्ध अमरनाथ गुफा में प्रत्येक वर्ष अद्भुत हिमलिंग का बनना और कुछ समय बाद लुप्त हो जाने की प्राकृतिक घटना को आस्था से जोड़ दिया गया है। इसके साथ शिव और पार्वती के एक पौराणिक प्रसंग को भी जोड़ दिया गया है। दूसरी ओर पिछले कुछ सालों से हिमलिंग में आ रहे परिवर्तन इस बात को स्पष्ट करते हैं कि हर अचंभित करने वाली चीज और चमत्कार के पीछे कुछ वैज्ञानिक सिद्धांत क्रियाशील होते हैं। बात साफ है। आस्था में तर्क और विज्ञान के लिए स्थान नहीं होता और विज्ञान आस्था पर काम नहीं करता। विज्ञान खोज और शोध की मांग करता है।
शिवपुराण के अनुसार अमरनाथ गुफा वही स्थान है जहां शिवजी ने पार्वती को अमरकथा सुनाई थी। हर साल बनने वाले हिमलिंग को लोग श्रद्धा और आस्था के वशीभूत शिव का प्रतीक मानते हैं।
प्रकृति के वैज्ञानिक नियम किसी श्रद्धा के मोहताज नहीं। अमरनाथ स्थित हिमलिंग को लेकर वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्तमान में पृथ्वी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव में है। पिछले करीब तीन दशकों से अमरनाथ गुफा स्थित बनने वाले हिमलिंग में परिवर्तन देखे जा रहे हैं। इसे यूं भी कह सकते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की तपिश लोगों की आस्था को भी डावांडोल कर रही है।
चूंकि अमरनाथ यात्रा का मुख्य आकर्षण प्राकृतिक हिमलिंग का निर्माण है और जब इस प्राकृतिक परिघटना को पौराणिक मान्यताओं से जोड़ कर देखा जाता है तो श्रद्धा का पुट भी इसमें शामिल हो जाता है। विश्व भर से श्रद्धालुओं के आवागमन से जम्मू और श्रीनगर में व्यापार की स्वाभाविक वृद्धि होती है।
किन्हीं धार्मिक कारणों से 2004 में अमरनाथ यात्रा की अवधि वैदिक और सनातन परम्पराओं से हटकर एक महीने के बजाए दो महीने कर दी गई।
अब श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के मद्देनजर यात्रा का पिलग्रिमेज टूरिज्म के नाम पर व्यापारीकरण और औद्योगीकरण हो रहा है।
पिलग्रिमेज टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए 2006 में एक विवाद खड़ा हो गया। सनातन और वैदिक परंपरा से जुड़े लोगों ने कृत्रिम विधि से बनाए जाने वाले हिमलिंग पर रोष प्रकट किया था। लोगों का कहना था कि हिमलिंग से छेड़छाड़ गलत है और लोगों की आस्था की औद्योगिक लूट है।
वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार पृथ्वी ग्लोबल वार्मिंग से ग्रस्त है। हिमलिंग का समय से पहले विलुप्त या कम हो जाना अतिरिक्त ताप के कारण था न कि किसी अवैज्ञानिक कारण से। एक महीने की यात्रा को दो महीने तक बढ़ा देना श्रद्धा का व्यापारीकरण नहीं, लूट आधारित औद्योगीकरण ही है।
वर्तमान में तीर्थ और पर्यटन दो अलग-अलग भाव हैं। मौजूदा समय में श्रद्धा का लूट आधारित औद्योगीकरण खूब हो रहा है। वैसे भी इस देश में श्रद्धा का उपयोग धन एकत्र करने के लिए किया जा रहा है।
विश्व प्रसिद्ध वैष्णों देवी गुफा में स्थित प्राकृतिक पिंडियों को लेकर भी 2006 में दबी जुबान में एक अफवाह फैली थी कि अब वैष्णो देवी पवित्र गुफा छोड़कर कहीं और जा रही है। इस अफवाह का उद्गम एक सपना था। अफवाह सिरे नहीं चढ़ सकी।
जहां तक अमरनाथ गुफा का संबंध है, 2005 में भी हिमलिंग समय से पहले पिघलना शुरु हो गया था। तब भी कोशिश की गई थी कि एक वातानुकूलित प्रोजेक्ट लगा कर हिमलिंग कायम रखा जाए। यह जानकारी भी मिली थी कि आई आई टी मुम्बई एक वातानुकूलित प्रोजेक्ट तैयार कर रहा हैं।
भारत में कई स्थान हैं जो श्रद्धा और वैज्ञानिक दृष्टि से लोगों को आकर्षित करते हैं। इन स्थानों का उल्लेख अक्सर पौराणिक ग्रंथों में मिलता है जिससे ये पुरातन इतिहास बनते हैं। मिसाल के तौर पर विज्ञान और श्रद्धा के संयोग ने गंगा नदी को विश्व प्रसिद्ध बनाया है। गंगा नदी के विषय में वैज्ञानिक तर्क यह है कि इसका जल उद्गम स्थान गंगोत्री से ही ऐसे स्थानों से होकर गुजरता है जहां की मिट्टी और वनस्पति के चिकित्सक.रासायनिक गुणों से गंगा का जल ज्यादा देर तक साफ रहता है।
जम्मू-कश्मीर की सांबा तहसील में भारत-पाक सीमा के पास बाबा चमलियाल नामक स्थान है। इस स्थान की मिट्टी में चरम रोगों से लड़ने की रासायनिक क्षमता है। देश-विदेश से लोग यहां चरम रोगों के इलाज के लिए आते हैं। अब अगर चमलियाल की मिट्टी को कोई बेचना शुरु कर दे तो इसे श्रद्धा के नाम पर लूट ही कहा जाएगा। ऐसे कृत्यों को एक तो श्रद्धा का बेजा लाभ कहा जाएगा और दूसरे वैज्ञानिक तर्क और खोज की जमीन भी बंजर पड़ जाएगी।
[प्रस्तुत रचना अप्रकाशित-अप्रसारित है। तथ्यों एवं आंकड़ों की जांच कर ली गई है।
केवल कृष्ण पनगोत्रा (लेखक)]
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