देश में प्राथमिक षिक्षा को अभी मीलों चलना है। रघु ठाकुर
भोपाल, 16 जून: महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रिय संरक्षक- रघुठाकुर ने समूचे देश में प्राथमिक शिक्षा के निरंतर महंगे होते जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए अपने प्रसारित किये गए लेख में लिखा है कि,
प्राथमिक शिक्षा का निरन्तर मॅहगा होते जाना समूचे देश के लिये चिंता का विषय है। स्कूलो से छात्रों की पढ़ाई को छोड़कर अलग होने की समस्या यानि ड्राप-आऊट का एक बड़ा कारण मॅहगी शिक्षा भी है।
महानगरों में तो एक बच्चे की एक वर्ष की पढ़ाई, वस्त्र, पुस्तकें और कोचिंग लगभग अनिवार्य पढ़ाई का हिस्सा ही बन गई है और औसतन ड़ेढ से दो लाख रुपया प्रति वर्ष का खर्चा इन सब में हो जाता है।
जिस देश में किसानों की वार्षिक आय लगभग 72 हजार रुपया प्रति वर्ष हो। असंगठित क्षेत्र के मजदूरो की आय और भी कम हो तो देश में करोड़ो बच्चो का अशिक्षित रह जाना एक अनिवार्यता है।
इसके लिये राजनीति और व्यवस्था ही जिम्मेदार है। सरकारो की नीतियाॅ सबको समान शिक्षा देने के बजाय श्रेष्ठ शिक्षा के कुछ बड़े-बड़े टापू खड़े करना है ताकि इन द्वीपो पर बसे सत्ता और साधन सम्पन्न लोग ही अपने बच्चो को आधुनिक और श्रेष्ठ शिक्षा दे सके। बकाया सारा अशिक्षित गरीबो का समुद्र सदैव नीचे रहेगा और टापूओं पर रह रहे शासन और शासक वर्ग के लोग ही शिक्षित हो सकेगे।
यह एक प्रकार से शिक्षा का आरक्षण है जो कुछ जन्मना और कुछ कर्मणा हथियाई हुई सत्ता और सम्पत्ति के मालिको के लिये है।
सरकारी प्राथमिक षिक्षा की स्थिति कितनी दयनीय है इसके कुछ उदाहरण दे रहा हूॅ:-
1. छ.ग. प्रवास के समय मुझे एक पत्रकार मित्र ने बताया कि एक प्राइमरी स्कूल के शिक्षक कलेक्टर के पास अपने तबादले के लिये मिलने पहॅुचे थे। कलेक्टर ने उनसे एक शब्द लिखने को कहा। उन्हें लगा होगा कि कलेक्टर अंग्रेजी में लिखाना चाहते है तो उन्होंने कहा कि मुझे अंग्रेजी कम आती है। तब कलेक्टर ने उनसे कहा कि आप हिन्दी में, उर्दू में या जिस भाषा में चाहे उसमें लिख दीजिये परन्तु वे हिन्दी में या अन्य भाषा में नही लिख सके। हमारे स्कूलो की शिक्षा का हाल क्या है यह इस घटना से जाना जा सकता है।
2. अभी हाल में कैग की रिर्पोट में जिसे 28मई 2018 को ’’दैनिक जागरण’’ ने छापा था उसमें बताया गया है कि राज्य षिक्षा केन्द्र ने पहली से आठवीं तक की शिक्षा पर 6साल में 48 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर दिये और जब बाद में विभाग ने बेस लाइन टेस्ट (आधार जाॅच) लिया तो बच्चे शब्द लिखना तो दूर उनको पहचान भी नही सके।
3. निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम अप्रैल 2011 में लागू किया गया था और जिसके बावजूद भी बच्चों का ये हाल है। इन बच्चो का कोई अपराध नही है ना ही इन बच्चो में कोई कमी है सिवाय इसके कि शिक्षा की व्यवस्था इसकी जिम्मेदार है।
प्रदेश के 18 हजार से अधिक स्कूलो में केवल एक ही शिक्षक है।
डायस रिर्पोट 2016 के अनुसार 17874 स्कूलो में एक ही शिक्षक नियुक्त है तथा 4111 स्कूलो में तो एक भी शिक्षक नही है। 41000 शिक्षकों के पद खाली है।
इतना ही नही इनमें से भी 6320 शिक्षक वर्ष 2015-16 में गैर-शिक्षक कार्य में लगाये गये, यानि लगभग 35 प्रतिषत शिक्षक साल में औसतन 2 से 3 माह गैर-शैक्षणिक कार्य में लगाये गये।
एक वर्ष में साप्ताहिक और शासकीय अवकाश लगभग ढाई माह छुट्टी के होते है साथ ही ग्रीष्मकालीन, शीतकालीन और अन्य अवकाशों को शामिल करे तो लगभग 4 माह की छुट्टियाॅ रहती है।
यानि स्कूल में साल में 4 माह छुट्टियाॅ होगी, 3 माह शिक्षक अन्य कार्यो में लगाये जाने की वजह से पढ़ाई का कार्य नही करेगे और शेष अवधि में उन्हीं शिक्षकों के द्वारा पढाया जायेगा, जिन्हें खुद अक्षर लिखना नही आता। इसके अलावा डायस रपट में एक और पक्ष अध्ययन के बगैर छूट गया जो हमारे समाज का जमीनी सच है।
वह यह कि जो शिक्षक पढ़ाने के लिये नियुक्त हेै उनमें से अच्छा खासा हिस्सा ऐसे दबंग शिक्षकों का है जो साहूकारी, खेती अन्य व्यवसाय करते है।
वे किसी गाॅव के थोड़े पढ़े-लिखे बच्चे को 2 या 3 हजार रुपये देकर उससे पढ़वाने का काम करवाते है।
इन हालात में शिक्षा का स्तर कैसे सुधर सकता है।
मुख्यमंत्री, मुख्यसचिव, प्रधानमंत्री, या शिक्षकों की समीक्षाओं में इन बातो की चर्चा तो दूर उल्लेख तक भी नही होता।
अगर शिक्षा व्यवस्था को सही करना है तो उसका एक ही श्रेष्ठ उपाय है जो डा.राममनोहर लोहिया कहते थे ’’राष्ट्रपति की हो या चपरासी की संतान, सबको शिक्षा एक समान’’ अगर हाई स्कूल तक निजी षिक्षण संस्थाओं पर रोक लगाकर केवल सरकारी शिक्षा संस्थाये हो और सभी को सांसदों , विधायको, मंत्री या अफसरो, पैसे वालो या गरीबो के अपने बच्चो को उन्ही सरकारी संस्थाओं में पढ़ाने की अनिवार्यता हो तो देश की शिक्षा का स्तर सुधर जायेगा।
जिस दिन मंत्री के बेटे को शब्द पहचानना नही आयेगा, अफसर के बेटे को नही आयेगा उस दिन यही लोग जो अमीरो की अमीर षिक्षा के टापू खड़े कर रहे है अपने आप सामान्य शिक्षा को सुधारने का काम प्रारम्भ कर देगे।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीष श्री अग्रवाल को में साधुवाद देता हॅू कि, जिन्होंने उ.प्र. सरकार को आदेष दिया था कि मंत्रियो, अफसरो आदि के बच्चों की पढ़ाई अनिवार्य रुप से सरकारी स्कूलो में हो परन्तु यह दुःखद भी था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री जिनकी पार्टी का नाम समाजवाद से जुड़ा है और जो अपने आप को पिछड़ी जाति का बताते है तथा राजनीति और वोट के लिये पिछड़ो का इस्तेमाल करते है ने इस क्रान्तिकारी फैसले पर अमल करने की बजाय उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में शासन की ओर से अपील दायर कर स्थगन आदेश ले लिया तथा व्यवस्था के बदलाव के उस बहुमूल्य क्षण को गवा दिया।
भारतीय राजनीति इतनी बदलाव विरोधी है उसका भी प्रमाण सामने आया जब बसपा, कांग्रेस ,भाजपा और किसी भी संसदीय राजनीति दल ने इस फैसलो को क्रियान्वयन करने के लिये आवाज नही उठाई।
अब समय है कि इन बुनियादी सवालो को सोचा जाना चाहिये और व्यवस्था की जड़ पर चोट करने के लिये जनता को स्वतः आगेे आकर राजनैतिक दलो पर दबाव बनाना चाहिये।
मैं क्राइप की अध्यक्ष श्रीमति निर्मला बुच और उनके सहयोगियों को साधुवाद देना चाहता हॅू कि उन्होंने इस विषय पर एक अच्छी रपट तैयार की तथा 23 मई 2018 को भोपाल में राजनैतिक दलो को बुलाकर ना केवल तथ्यों से अवगत् कराया बल्कि अपने-अपने घोषणा पत्रो में इन महत्वपूर्ण मुद्दों को शामिल करने के लिये प्रेरित भी किया।
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