
लाइव 'ला': UP Gangsters Act जैसे कठोर दंडात्मक कानूनों का इस्तेमाल उत्पीड़न के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली (लाइव 'ला'): सुप्रीम कोर्ट ने यूपी गैंगस्टर्स एक्ट (UP Gangsters Act) जैसे कठोर असाधारण कानूनों के नियमित इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसे कानूनों को उत्पीड़न के साधन के रूप में काम किए बिना प्रासंगिक विचारों के आधार पर विवेकपूर्ण तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
“व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी तब और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, जब यूपी गैंगस्टर्स एक्ट जैसे कठोर प्रावधानों वाले असाधारण कानून का इस्तेमाल किया जाता है। राज्य को दी गई शक्ति का इस्तेमाल उत्पीड़न या धमकी के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब राजनीतिक मंशा काम कर रही हो।”
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने 30 अप्रैल, 2023 को अधिनियम के तहत अपीलकर्ताओं के खिलाफ दर्ज FIR खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं। यह FIR 10 अक्टूबर, 2022 को हुई घटना के संबंध में दर्ज की गई। यह घटना अपीलकर्ता नंबर 1 की पुत्रवधू द्वारा 17 अप्रैल, 2023 को नगर पंचायत खरगूपुर के अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करने के तुरंत बाद हुई थी।
खंडपीठ ने FIR के समय पर सवाल उठाया और यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दर्ज की गई प्रारंभिक FIR के बाद से अपीलकर्ताओं की निरंतर संगठित आपराधिक गतिविधि में शामिल होने का कोई सबूत स्थापित करने में विफल रहा है।
चूंकि अपीलकर्ता भीड़ की झड़प की एक ही घटना में शामिल थे, इसलिए असामाजिक गतिविधियों में उनकी निरंतर भागीदारी का कोई सबूत नहीं है। इसलिए अदालत ने कहा कि अधिनियम को केवल असामाजिक गतिविधि की एक ही घटना में शामिल होने के लिए व्यक्तियों पर लागू नहीं किया जा सकता है, जब तक कि पूर्व या चल रहे समन्वित आपराधिक आचरण को इंगित करने वाले सबूत न हों।
न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की कठोर प्रकृति को देखते हुए कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए अधिनियम का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने आगे कहा,
“यह एक सामान्य कानून है कि कानून द्वारा निर्धारित कोई भी प्रक्रिया निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित होनी चाहिए, न कि मनमानी, अनुमान या दमनकारी। यह सिद्धांत, जो हमारे संवैधानिक न्यायशास्त्र में दृढ़ता से अंतर्निहित है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 की आधारशिला है, जो गारंटी देता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।”
न्यायालय ने कहा,
"आपराधिक न्यायशास्त्र का यह एक प्रमुख सिद्धांत है कि असाधारण दंडात्मक प्रावधानों, विशेष रूप से वे जो नियमित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को काफी हद तक कम करते हैं, उसको साक्ष्य के आधार पर लागू किया जाना चाहिए, जो विश्वसनीयता और सारभूतता की सीमा को पूरा करता हो। जिन सामग्रियों पर भरोसा किया जाता है, उन्हें अभियुक्त और कथित आपराधिक गतिविधि के बीच एक उचित संबंध स्थापित करना चाहिए, जो केवल सैद्धांतिक संभावना के बजाय संलिप्तता की वास्तविक संभावना को प्रदर्शित करता हो। जब कोई क़ानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर गंभीर बंधन बनाता है, तो उसके लागू होने का साक्ष्य आधार समान रूप से मजबूत होना चाहिए, जो अस्पष्ट दावों के बजाय ठोस, सत्यापन योग्य तथ्यों द्वारा समर्थित हो।"
गोरख नाथ मिश्रा के मामले के अनुपालन में यूपी सरकार द्वारा तैयार किए गए दिशा-निर्देश वर्तमान मामले में अधिनियम लागू करने के लिए पूरे नहीं किए गए। इसके अतिरिक्त, खंडपीठ ने कहा कि यूपी सरकार द्वारा तैयार किए गए दिशा-निर्देश।
गोरख नाथ मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले के अनुपालन में दिशा-निर्देश पूरे नहीं किए गए, क्योंकि दिशानिर्देशों में अधिनियम को लागू करने से पहले अंतर्निहित अपराधों की गंभीरता, आपराधिक गतिविधि के स्थापित पैटर्न और आपराधिक पूर्ववृत्त के उचित सत्यापन के कठोर आकलन की आवश्यकता पर जोर दिया गया, जो वर्तमान मामले में अनुपस्थित था।
Case Title: LAL MOHD. & ANR. VERSUS STATE OF U.P. & ORS.
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(समाचार & फोटो साभार: लाइव 'ला')
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