खबरदार! बजट न बिगाड़ दे तेल की मोटी धार
नयी दिल्ली, 06 जून: ईंधन बेचने वाली कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की वेबसाइट पर पिछले बुधवार की सुबह जब पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 60 पैसे प्रति लीटर तक की कमी दिखाई दी तो लाखों लोगों ने राहत महसूस की होगी।
लेकिन राहत का यह अहसास देर तक नहीं रह पाया क्योंकि कंपनी ने कुछ देर में ही बताया कि दाम गलती से चढ़ गए थे और असल में पेट्रोल और डीजल केवल 1 पैसा सस्ते हुए हैं।
कर्नाटक चुनाव के दरम्यान दो हफ्ते का दौर छोड़ दें तो पेट्रोल और डीजल की कीमतें लगातार चढ़ती ही गई हैं।
पिछले 1 साल में पेट्रोल दिल्ली में 20 फीसदी और मुंबई में 16 फीसदी तक महंगा हुआ है। उसी दौरान डीजल दिल्ली में 20 और मुंबई में 24 फीसदी चढ़ा है। तेल की कीमतों में इस उबाल का सीधा असर आप पर ही पडऩे जा रहा है। कहीं आने-जाने में आपको अब ज्यादा खर्च करना पड़ेगा और आपका घरेलू बजट भी कई कारणों से बढऩे लगेगा।
ईंधन महंगा होने का असर फलों और सब्जियों की कीमतों पर पहले ही दिखने लगा है। मुंबई की ईश्वरी पटेल को यह इजाफा सताने लगा है। पिछले कुछ महीनों में ही उनका किराना का बिल करीब 8-10 फीसदी बढ़ गया है। पटेल इससे परेशान हैं। वह कहती हैं, 'दूध, सब्जियों और फलों पर पहले हर महीने करीब 5,300 से 5,500 रुपये खर्च होते थे। लेकिन अब यही खर्च बढ़कर 5,800 से 6,000 रुपये हो गया है।' अप्रैल में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी खुदरा महंगाई की सुई बढ़कर 4.58 फीसदी तक पहुंच गई। क्रिसिल के मुताबिक खाद्य तेल की कुल बिक्री में करीब 40 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले पाम ऑयल की कीमत इस साल 18 से 20 फीसदी तक बढऩे जा रही है।
तमाम घरेलू उपकरणों के दाम पहले से ही बढ़ चुके हैं। पिछले साल सितंबर से ही टेलीविजन, एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर 4-5 फीसदी महंगे हो गए हैं। इन उपकरणों का विनिर्माण करने वाली कंपनियों को लगता है कि जून से इनकी कीमतों में 2-3 फीसदी इजाफा और करना होगा। व्हर्लपूल ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक सुनील डिसूजा कहते हैं कि कीमतों में जल्द इजाफा करना पड़ सकता है कि कंप्रेसर जैसे अहम पुर्जों का आयात होता है और रुपये में गिरावट के कारण उनकी कीमतों में 5 से 6 फीसदी बढ़ोतरी पहले ही हो चुकी है।
उनका कहना है, 'देश में तैयार इस्पात की आपूर्ति कम हो रही है और कच्चे तेल में तेजी के कारण प्लास्टिक की कीमत बढ़ रही हैं। यह हमारे लिए बड़ी चुनौती है। ईंधन की कीमत बढऩे के कारण माल की आवाजाही पर खर्च भी बढ़ रहा है।' फलों के आयातित कंसेंट्रेट से तैयार होने वाले विभिन्न प्रकार के जूस की कीमतें भी 1-2 फीसदी चढ़ चुकी हैं। आइसक्रीम, दूध से बनने वाले पेय पदार्थों और शिशु आहार उत्पादों के दाम भी जल्द ही करीब 2 से 4 फीसदी बढ़ सकते हैं।
नेस्ले इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक सुरेश नारायणन कहते हैं, 'यदि रुपये में कमजोरी जारी रही और कच्चा तेल भी इसी तरह चढ़ता रहा तो हमें अपनी लागत और खर्चों को बेहतर ढंग से संभालना पड़ेगा।'
जिन किराना उत्पादों की पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाला सामान भी कच्चे तेल से निकले किसी पदार्थ से बनता है, उनकी कीमत में इजाफे का खटका भी जताया जा रहा है।
ऐसे उत्पाद 4 से 7 फीसदी महंगे हो सकते हैं। उत्पादन लागत बढऩे का असर आपके गाड़ी खरीदने के ख्वाब पर भी पड़ सकता है क्योंकि कार निर्माता भी लागत बढऩे के कारण कीमतें बढ़ा सकते हैं।
खबरों से पता चलता है कि मारुति सुजूकी और हुंडई जैसी दिग्गज कंपनियां कीमतों में इजाफा करने जा रही हैं। मारुति की गाडिय़ां जल्द ही 1.9 फीसदी तक और हुंडई की सभी गाडिय़ां (क्रेटा को छोड़कर) 2 फीसदी तक महंगी हो सकती हैं। उनके बाद दूसरे वाहन निर्माता भी कीमतों में वृद्घि कर सकते हैं। कार तो जब महंगी होंगी तब होंगी, हवाई यात्रा तो पहले ही आपकी जेब पर भारी पडऩे लगी है। विमानन कंपनी इंडिगो ने छोटी दूरी की उड़ानों के टिकट 200 रुपये तक और लंबी दूरी के टिकट 400 रुपये तक महंगे कर दिए हैं।
उबलता ही रहेगा तेल!
कच्चे तेल की कीमतों में अभी तक जो तेजी आई है, उसकी कई वजहें हैं। तेल का उत्पादन करने वाले प्रमुख देशों ने उत्पादन में कटौती कर दी है, ईरान पर प्रतिबंधों का ऐलान कर दिया गया है और वेनेजुएला में भी अनिश्चितता का माहौल है। लेकिन भारत में कीमतों की समस्या और भी गहराई है तो उसका कारण पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले भारीभरकम कर हैं। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि तेल की कीमतों में नरमी का दौर अब बीत चुका है। एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ कहते हैं, 'तेल की कीमतों में अभी अस्थिरता बरकरार रहने की आशंका है और अगर कीमतों ने ज्यादा उछाल मारी तो जोखिम बढ़ सकता है। ब्रेंट क्रूड की कीमत इस साल 70-72 डॉलर प्रति बैरल के औसत पर रह सकती है।' मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज के एवीपी (शोध) नवनीत दमानी को लगता है कि 22 जून को ओपेक (तेल उत्पादक एवं निर्यातक) देशों और रूस के बीच होने वाली बैठक से पता चलेगा कि कीमतें किस दिशा में जाएंगी। वह कहते हैं, 'यदि बैठक में उत्पादन बढ़ाने का निर्णय लिया जाता है तो कीमतों में तेजी पर अंकुश लग जाएगा।'
अपने खर्चों पर कसें लगाम
सबसे पहले अपने घरेलू खर्चों पर नजर रखकर उन पर लगाम कसना शुरू कर दें। ऐसा करने के बाद ही आपको पता चल पाएगा कि कौन-कौन से खर्च बेजा हैं और किनसे आपका बजट बढ़ रहा है। साथ ही अपने घरेलू बजट में तब्दीली भी करें। परिवहन और भोजन जैसे मदों पर अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत हो सकती है और रेस्तरां में खाने या महंगी कैब में जाने जैसे खर्चों पर अंकुश लगाया जा सकता है। आपको एक आकस्मिक फंड भी बनाना चाहिए, जिसका इस्तेमाल भविष्य में कीमतों में होने वाली वृद्घि से निपटने में हो सकता है। खर्च घटाने का एक और विकल्प है विभिन्न वस्तुओं पर मिलने वाली छूट पर नजर रखना और थोक में खरीदारी करना।जब मुद्रास्फीति में इजाफा होता है तो डेट और इक्विटी दोनों को ही चोट लगती है। ब्याज दरें जब ऊपर चढ़ती हैं तो स्थिर आय वाले निवेशकों को अच्छा लगता है, लेकिन हकीकत में उनका वास्तविक प्रतिफल बढऩे के बजाय कम हो सकता है। अलबत्ता डेट फंड में निवेश करने वालों पर तो सीधी चोट पड़ती है क्योंकि शुद्घ परिसंपत्ति मूल्य (एनएवी) में कमी से उन्हें नुकसान होता है। वित्तीय योजनाकार अर्णव पांड्या कहते हैं, 'इक्विटी पर मिलने वाला प्रतिफल भी प्रभावित होगा क्योंकि पूंजी की ऊंची लागत से आय (अर्निंग) को ही झटका लगता है।'
(तिनेश भसीन, संजय कुमार सिंह और अर्णव दत्ता)
साभार- बिजनेस स्टैण्डर्ड
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