बिजली गुल,पानी गुल और मुख्य मंत्री भी गुल !
लखनऊ, 23 मई: गर्मी का कहर 45 डिग्री से ऊपर की सीढ़ी चढ़ने को बेताब है और आसमान से पानी की जगह आग बरस रही है| नीचे गजब की तपन से धरती की छाती जगह-जगह से फट रही है| चारो ओर हवा और पानी की नामौजूदगी से हाहाकार मचा है| आदमी की जात से लेकर परिंदे, चरिंदे, चींटी,पतंगे और चौपाये हलकान हैं| ऐसे में सूबे में बिजली, पानी की बदइन्तजामी का आलम ये है कि ‘बिजली दो, पानी दो वरना गद्दी छोड़ दो’ के नारों के साथ लोगों को धरना-प्रदर्शन करके पुलिस की लाठियों का शिकार होना पड़ रहा है| मजे की बात है कि बिजली-पानी की आवाजाही की तरह सूबे के मुख्यमंत्री भी चुनाव प्रचार करने की व्यस्तता के बीच सूबे में आते-जाते रहते हैं|
मुख्यमंत्री आज भी महाराष्ट्र के पालघर लोकसभा उप चुनाव प्रचार में गये हैं, वहां शाम 5.30 बजे एक सभा को सम्बोधित करेंगे|
दूर-दराज के इलाकों की बात दरकिनार करिये राजधानी लखनऊ में बिजली गई तो गई| आई तो ट्रिपिंग चालू हो जाती है जिससे बिजली के महंगे उपकरण फुंक जाते हैं| आमतौर पर बिजली की आना-जाना करीबी मेहमानों की तर्ज पर या मुख्यमंत्री,मंत्रियों के चुनाव अभियानों के बीच से सूबे में वापसी जैसा ही है|
बतादें राजधानी के कई इलाके तीन-चार दिन बगैर बिजली के भीषण गर्मी में पीड़ित हैं और इनकी गुहार भी कोई नहीं सुनने वाला| रमजान में भरपूर बिजली देने का दावा भी हवा हो गया, रोजेदार पसीने से तरबतर हांफ रहा है|
हां, बिजली मंत्री जरूर बिजली आपूर्ति के रिकार्ड बनाने का बयान देकर अपनी पीठ अपने ही हाथों ठोक रहे हैं|
बिजली नही तो पानी नहीं, लेकिन जहां कहीं पानी की सप्लाई हो रही है वहां भी अधिकांश गन्दा और न पीने लायक ही पानी मिल रहा है| राजधानी के किसी इलाके में नंगी आंखों से देखा जा सकता है, लोगों के हाथों में लटकी प्लास्टिक की बाल्टियां,बोतलें या कंटेनर , जिन्हें वे जलकल की भूजल से जुड़ी टंकी से या किसी के निजी समरसेबल पंप से भरने जा रहे होते हैं|
आज दोपहर तक कठौता झील में पानी नहीं आया था| कई इलाकों में पानी को लेकर मार-पीट के साथ जलकल कर्मियों, आला अधिकारियों को बंधक बनाये जाने की ख़बरें भी आ रही हैं| इन सबके बीच पानी बेचने का धंधा बखूबी परवान चढ़ रहा है|
इस बार जेठ के चार मंगल बीत गये लेकिन पीने के पानी की पौशालाएं सड़कों से नदारद हैं|
रमजान में रोजेदारों को नमाज के वक्त वज़ू करने के लिए मस्जिदों में दूर-दराज से पानी का इंतजाम करना पड़ रहा है|
यही नहीं लोगों के बीमार होने और अस्पतालों के बिस्तर से लेके इमरजेंसी तक में जगह न होने की भी ख़बरें हैं|
ऐसे हालातों को सूबे के मुख्यमंत्री कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं?
मुख्यमंत्री केवल भाजपा के चुनावी भोंपू साबित होने की कसरत क्यों कर रहे हैं ? उनके लिए सूबा उत्तर प्रदेश की जनता महज कीड़े-मकोड़े की श्रेणी में है?
(साभार- प्रियंका)
सम्पादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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