आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार कर्नल एहसान क़ादरी
लहू बोलता भी है.
आइये जानते हैं, आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार - कर्नल एहसान क़ादरी जी को___
कर्नल एहसान क़ादरी की पैदाइश सन् 1916 में लाहौर में हुई थी।
इनके वालिद का नाम सर अब्दुल क़ादरी था।
कर्नल एहसान सन् 1935 में नेशनल डिफेंस एकेडमी, देहरादूनद्ध से ट्रेनिंग लेकर ब्रिटिश भारतीय सेना के पंजाब रेज़ीमेंट में कैप्टन बने। सन् 1939 में दूसरी जंगे.अज़ीम के वक़्त आप सिंगापुर भेजे गये।
जंग के पहले दौर में जब ब्रिटिश सेना ने जापानी सेना के सामने सरेंडर कर दियाए तब जापानी फौज ने कर्नल क़ादरी की पूरी बटालियन को कुआलालंपुर में रोक लिया।
यहीं इनकी मुलाक़ात कैप्टन मोहन सिंह से हुईए जो उस वक़्त इण्डियन नेशनल आर्मी बना रहे थे। मोहन सिंह ने कर्नल क़ादरी को आईण्एनण्एण् में शामिल कर रेडियो प्रोपगंडा के ज़रिये अवाम को भारत की आज़ादी के लिए तैयार करने और ब्रिटिश भारतीय सेना के लोगों को इण्डियन नेशनल आर्मी में शामिल करने का काम सौंपा। उन्होंने यह काम सैगन में हेडक्र्वाटर बनाकर किया और बहुत कामयाब हुए।
जब नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय सेना को रिआर्गेनाईज़ करना शुरू किया तो कर्नल क़ादरी को सैगन से वापस बुलाकर फौज़ में भर्ती की ज़िम्मेदारी का काम सौंपा। बाद में जब नेताजी ने आज़ाद हिन्द सरकार बनायी तो उसमें कर्नल क़ादरी को एचण्आरण्डी और वॉर कौंसिल की ज़िम्मेदारी दी गयी।
नेताजी सिंगापुर से रंगून जाते वक़्त कर्नल क़ादरी को अपने साथ लेकर गये। वहां कर्नल क़ादरी साहब को आज़ाद हिन्द दल के नौजवानों को ट्रेनिंग देने की ज़िम्मेदारी दी गयी।
सन् 1944 में दूसरी जंगे.अज़ीम के दूसरे दौर में आप जापान की तरफ़ से जंग लड़ने गयेए जहां जापान की हार के बाद एनण्आईण्ए के फौजियों को ब्रिटिश फौज ने पकड़ लिया। कर्नल क़ादरी को लालक़िला यदिल्लीद्ध लाया गयाए जहां उनका ट्रायल हुआ।
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