लहू बोलता भी है. - अब्दुल मजीद ख़्वाजा - जंगे- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार
आइये आज जंगे- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार अब्दुल मजीद ख़्वाजा को जानते हैं:
अब्दुल मजीद ख़्वाजा, अलीगढ़ के ज़मींदार खानदान में सन् 1885 मंे पैदा हुए अब्दुल मजीद ख्वाजा के वालिद ख़्वाजा मोहम्मद युसुफ मशहूर वकील थे और वालिदा का नाम बेग़म अख़्तर सरबुलंद जंग था।
आपके घर का माहौल मज़हबी होते हुए भी ऊंची तालीम का हामी था, इसलिए आपने मज़हबी तालीम तो घर में ही हासिल की लेकिन दुनियावी तालीम अच्छे अंग्रेज़ी स्कूल और काॅलेजों से हासिल करके आप कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी गये, जहां आपने वकालत की डिग्र्री हासिल की।
सन् 1906 में जब गांधीजी साऊथ अफ्रीका में आंदोलन कर रहे थे, तब आपकी मुलाक़ात उनसे हुई, जिनसे असरअंदाज़ होकर आपका मिज़ाज हिन्दुस्तान की जंगे-आज़ादी की तरफ़ झुका और वहां रहते हुए ही आप गांधीजी के हर प्रोग्राम में हिस्सा लेते रहे।
सन् 1910 में आपने अलीगढ़ वापस आकर वकालत शुरू कर दी और कम वक़्त में ही अच्छे वकीलों में शुमार होने लगे।
मजीद साहब की शादी उस ज़माने में जंगे-आज़ादी मंे एक्टिव वुमेन लीडर बेगम खुर्शीद से हुई थी।
शादी के बाद दोनों लोगों ने पूरी मुस्तैदी से जंगे-आज़ादी के प्रोग्रामों में हिस्सा लेना जारी रखा।
सन् 1919 के खि़लाफत और अदमताऊन आंदोलनों में आप जेल गये। जेल से छूट के आने के बाद आपने जामिया मिल्लिया इस्लामिक नेशनल काॅलेज को क़ायम करने में बहुत मदद की।
आपका मानना था कि मुसलमानों मंे ऊंची व अच्छी तालीम भी जंगे-आज़ादी का एक अहम हिस्सा है।
जंगे-आज़ादी के मूवमेंट मंे काॅलेज के लोगों द्वारा पूरा साथ न देने की वजह से आपने कुछ वक़्त के लिए काॅलेज की इंतज़ामिया से अपने-आपको अलग करके फिर से वक़ालत शुरू कर दी। इन्हीं दिनों मजीद साहब एक्टिव पाॅलिटिक्स से भी अलग हो गयेऋ वैसे तो बीमारी की वजह बताते थे, लेकिन उन्हें मुस्लिम लीग की उस वक़्त की सियासत से नाराज़गी थी।
सन् 1943 में डाॅक्टर ज़ाकिर हुसैन के इसरार पर आप जामिया नेशनल काॅलेज के वाइस-चांसलर बनने के लिये राज़ी हुए। बाद में आप उसके चांसलर बने जो कि ता-हयात बने रहे। ख्वाजा साहब शुरू से ही गांधीजी के बताये रास्ते पर आंदोलन के हामी थे। आपका मानना था कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच आपसी मेल-मोहब्बत क़ायम रहना ज़रूरी है। इसी में मुल्क की तरक्की का रास्ता हैं।
आपने इस्लाम के लिबरल पहलू पर ज़ोर देते हुए मज़हबी इत्तहाद के लिए कोशिशंे कीं।
आप हमेशा सादा जिंदगी और सादे लिबास के हामी थे।
मुल्क के बंटवारे के बाद मुसलमानों में मायूसी और तालीम के लिए बेदिली का जो माहौल था, उसे आपने अपनी कोशिशांे से बहुत हद तक दूर किया। 2 दिसम्बर सन् 1962 को अब्दुल मजीद ख्वाजा साहब का इंतकाल हो गया।
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