लहू बोलता भी है: जंगे आज़ादी - ए हिन्द के मुस्लिम किरदार- हाजी शरीयतउल्लाह
आइये, मिलते है जंगे आज़ादी - ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार से____
हाजी शरीयतउल्लाह ने फराज़ी मूवमेंट की क़यादत की और बहुत-से मुजाहिदे-आज़ादी के रहनुमा भी रहे।
हाजीजी की पैदाइश सन् 1780 फ़रीदपुर ;बंगालद्ध के एक गांव बहादुर में हुई थी।
आपके वालिद अब्दुल ज़लिब एक बुनकर थे।
जब आप 18 साल की उम्र के हुए तो मक्का चले गये, जहां आगे की मज़हबी तालीम हासिल की और एक बड़े स्काॅलर बने। मक्का में हाजी शरीयतउल्लाह की मुलाक़ात सैय्यद अहमद रायबेरलवी से हुई, जिन्हांेने वहाबी मूवमेंट चलाया। वहीं आप मीर निसार अली से भी मिले, जिन्होंने वहाबी मूवमेंट में फौज को जोड़ा।
इन तीनों ने हिन्दुस्तान के लिए रवाना होने से पहले अपना रास्ता चुन लिया था।
इस मुलाकात का नतीजा यह हुआ कि सन् 1802 में हाजी शरीयतउल्लाह अपने मादरे-वतन पहुंचे तो नावाबारी गांव ;ढाकाद्ध में रिहाइश की और वहां के लोगों को दीनी तालीम देने का काम शुरू किया।
उन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ मुसलमानों को भड़काया और लड़ने के लिए जोश पैदा किया।
इस मूवमेंट को फराज़ी मूवमेंट कहा गया। उनके माननेवालों को इतिहास में फराज़ीज़ कहा जाता है।
जब आप बंगाल घूमे तो पाया कि किसान और कारीगरों पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी, ज़मींदार और महाजन ज़्ाुल्म कर रहे हैं।
हाजी शरीयतउल्लाह ने लोगों की मुसीबतों को सुना और उनकी लड़ाई लड़ने का मन बनाया।
इसमें किसानों, कारीगरों और सभी लोगों ने आपका भरपूर साथ दिया।
हाजी शरीयतउल्लाह ने कई लड़ाईयां अंग्रेज़ों, ज़मीदारों और महाजनों से लड़ीं और जीतीं।
हाजी शरीयतउल्लाह क़ानून के बहुत जानकार थे, इसलिए क़ानून की पकड़ से भी बाहर रहते थे। आपका इन्तक़ाल सन् 1839 में हुआ।
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