सीरिया में दबंगई से किस-किस पर निशाना साध रहे हैं अमरीका और रूस
सीरिया की लड़ाई दरअसल एक ख़ूनी गृहयुद्ध है, जहां संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के हिसाब से अब तक चार लाख के क़रीब लोग मारे जा चुके हैं और 50 लाख लोगों का विस्थापन हुआ है.
हालांकि सीरिया दूसरे शक्तिशाली देशों के लिए भी युद्ध का मैदान बन गया है जहां कभी-कभी दोस्त का दोस्त दुश्मन हो जाता है.
मध्य-पूर्व की जानकार लीना ख़ातिब ने बीबीसी को बताया, "अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सीरिया के युद्ध को काफ़ी नज़रअंदाज़ किया है."
वो कहती हैं कि अगर हम चुपचाप बैठकर इंतज़ार करते रहे तो ये लड़ाई हमें ऐसा नुक़सान पहुंचाएगी कि हमें पता भी नहीं चलेगा.
सीरिया में बहुत से देश अपने-अपने एजेंडा के साथ युद्ध का हिस्सा बन गए हैं
सात साल पहले सीरियाई गृहयुद्ध शुरू होने के बाद से ही दूसरे देश यहां दख़ल देते रहे हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि अब ये दख़ल ज़मीन पर बड़ी कार्रवाई का रूप लेगा.
हाल के दिनों में, सीरिया विवाद में शामिल इन तीन देशों ने चेतावनियां जारी की हैं- अमरीका, रूस और इसराइल.
ऐसे वक़्त में जब कूटनीतिक हल दूर की कौड़ी है, किन हालातों में सीरिया का युद्ध और बड़ा रूप ले सकता है?
अमरीका बनाम रूस
सीरिया के युद्ध ने एक बार फिर अमरीका और रूस के बीच शीत युद्ध के तनाव की यादें ताज़ा कर दी हैं.
रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज़ इंस्टिट्यूट के जानकार शशांक जोशी ने बीबीसी से कहा, "इन दोनों देशों में ही फ़िलहाल राष्ट्रवादी नेता हैं और इसलिए किसी देश के लिए संकट के दौर में क़दम पीछे हटाना मुश्किल है."
अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने रविवार को सार्वजनिक तौर पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद की आलोचना की.
ट्रंप ने सीरिया के विद्रोहियों के कब्ज़े वाले इलाके डूमा शहर पर कथित रासायनिक हमले के बाद रूस पर आरोप लगाए हैं.
हमले के बाद से ही ट्रंप सीरिया सरकार पर सैन्य कार्रवाई की धमकियां दे रहे थे और आख़िरकार अमरीका ने ब्रिटेन और फ़्रांस के साथ सीरिया पर मिसाइलें दाग ही दीं.
रूस सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद का समर्थन करता है और सीरिया की छावनियों पर रूस ने अपनी सैन्य टुकड़ियां तैनात कर रखी हैं.
सीरिया युद्ध में अमरीका रूस को पहले ही नुक़सान पहुंचा चुका है.
फ़रवरी में सीरिया के प्रांत दीर अल ज़ुअर में अमरीका के हमले के बाद दर्जनों रूसियों की मौत की ख़बर आई थी.
रूस की सरकार ने कहा था कि मारे गए लोग सैनिक नहीं थे बल्कि रूस के नागरिक थे जो अपनी मर्ज़ी से सीरिया गए थे.
रूस के रक्षा मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक़ उसकी सेना के 44 लोग 2015 के बाद से सीरिया में मारे जा चुके हैं.
भूराजनीतिक सवाल
रूस सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद का सहयोगी है
भूराजनीतिक नज़रिए से सीरिया इन दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है. रूस के लिए सीरिया भूमध्यसागर के लिए एक रास्ता है.
हालांकि एक अनुमान ये भी है कि सीरियाई गृहयुद्ध के ऐसे नाज़ुक दौर में बशर-अल-असद का समर्थन करना रूस की मध्य पूर्व में अपनी शक्ति दिखाने की एक रणनीति है क्योंकि इस क्षेत्र को अभी तक अमरीका के प्रभाव में माना जाता है.
अमरीका ने शुरू में तो सीरिया के विपक्षी दलों को समर्थन दिया और बाद में खुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथी संगठन पर ध्यान देना शुरू किया.
ट्रंप सरकार आने के बाद से अब कोशिश है, क्षेत्र में ईरान के प्रभाव को कम करने की.
जनवरी में अमरीका के तत्कालीन विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने कहा था,"ईरान ने लेबनान में हिजबुल्लाह को समर्थन देते हुए सीरिया में अपने सुरक्षाबलों की टुकड़ियां तैनात करके अपनी मौजूदगी काफ़ी बढ़ा ली है और इराक़, अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और बाकी जगहों से भी सैन्य मदद ले रहा है."
इसराइल ने सीरिया में ईरान के सैन्य ठिकाने पर मिसाइल दागी थी लेकिन वह सीमा के पास लेबनान के लोगों वाले इलाके में गिरी
इसराइल बनाम ईरान
ईरान बशर-अल-असद की सरकार को समर्थन देता है और उसने अपनी सेना की टुकड़ियां भी मदद के लिए दी हैं. इसके अलावा वह एक और अप्रत्यक्ष सेना को समर्थन देता है और वो है लेबनान में हिजबुल्लाह की सेना.
इसराइल ने सीरिया में कई सैन्य हमले किए हैं, लेकिन कभी युद्ध में अपना हाथ होने को स्वीकार नहीं किया.
ईरान बशर-अल-असद की सरकार को समर्थन देता है और अपनी सेना की टुकड़ियां भी मदद के लिए दी हैं
हालांकि इसराइल और ईरान के बीच फ़रवरी में तनाव तब बढ़ गया था जब इसराइल को अपनी हवाई सीमा में ईरान के ड्रोन का पता चला.
सीरिया की वायु सेना ने भी प्रतिक्रिया में इसराइल और सीरिया में हमले किए जिसमें इसराइल का एफ़-16 लड़ाकू विमान भी गिरा दिया गया.
माना जाता है कि 1982 में लेबनान के साथ युद्ध के बाद पहली बार इसराइल ने अपना कोई युद्ध विमान गंवाया.
2006 में इसराइल और हिजबुल्लाह के टकराव के बाद से पहली बार इसराइल और ईरान टकराव की स्थिति में हैं.
दोनों देशों ने ही सीरिया में एक-दूसरे की भूमिका को लेकर सख़्त चेतावनियां जारी की हैं.
पिछले नवंबर लंदन में एक भाषण के दौरान इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा था कि उनका देश ईरान को सीरिया में दबंगई नहीं करने देगा.
पिछले हफ़्ते ईरानी धार्मिक नेता अयातुल्लाह अहमद ने कहा था कि हिज़बुल्लाह इसराइल के शहरों को बर्बाद कर सकता है.
ईरान को सीरिया की ज़रूरत है ताकि वो लेबनान में हिज़़बुल्लाह को हथियार पहुंचा सके और इसराइल से उसकी लड़ाई में मदद कर सके.
ईरान के लिए सीरिया की भूमिका ना सिर्फ़ इसराइल बल्कि सऊदी अरब के ख़िलाफ़ लड़ाई में एक सहयोगी की है.
अमरीका बनाम तुर्की
सीरियाई युद्ध में अमरीका की मौजूदगी ने अमरीका के लिए मध्य-पूर्व क्षेत्र में उसके सहयोगी और नेटो सदस्य तुर्की के साथ एक मुश्किल खड़ी कर दी है.
तुर्की सेना ने सीरिया में कुर्द के कब्ज़े वाला इलाका अपने कब़्जे में किया
हालांकि वहां दो हज़ार अमरीकी सैन्य टुकड़ियों के होने की ख़बर है. सीरिया में हज़ारों हवाई हमले और विद्रोहियों को ट्रेनिंग और हथियार देने का श्रेय अमरीका को जाता है.
इन विद्रोहियों में कुर्द भी शामिल हैं. अमरीका कुर्द लोगों को समर्थन देता है और कुर्द तुर्की को नापसंद करते हैं. तुर्की में कुर्दों का अलगाव आंदोलन दशकों तक रहा. यहां तक कि हिंसक घटनाएं भी हुईं जिसमें 40 हज़ार जानें गईं.
जनवरी में अमरीका ने घोषणा की थी कि सीरिया के उत्तर पूर्व में सीमा बल बनाने में वह मदद करेगा जिसमें कुर्द लड़ाके शामिल होंगे जिससे तुर्की में नाराज़़गी पैदा हुई.
इस वजह से नेटो के ये दो सहयोगी अब एक युद्ध में अलग-अलग पक्ष के साथ खड़े हैं.
(साभार: बीबीसी )
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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