आइये मिलते हैं, जंगे - आज़ादी - ए - हिन्द के मुस्लिम किरदार - कर्नल निज़ामुद्दीन शेख
लहू बोलता भी है: जंगे - आज़ादी - ए - हिन्द के मुस्लिम किरदार ___
कर्नल निज़ामुद्दीन शेख:
अगर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आज ज़िंदा होते, तो हिन्दुस्तान का बंटवारा नहीं होता। मैं आज यह नहीं पता कर पा रहा हूं कि मैंने क्या खो दिया और क्या पा लिया; यह कहना था कर्नल शेख निज़ामुद्दीन का, जो 1 जनवरी सन् 1900 को आज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश) के मुबारकपुर के पास एक गांव ढकवा में पैदा हुए थे। आपका असली नाम सैफुद्दीन शेख था, मगर उन्होंने इण्डियन नेशनल आर्मी में अपना नाम निज़ामुद्दीन शेख लिखवा रखा था। सन् 1926 में आप सिंगापुर चले गये, जहां आपके वालिद इमाम अली कैन्टीन चलाते थे। जब नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने आज़ाद हिन्द फौज को दोबारा ज़िंदा किया और चलो दिल्ली का नारा दिया, तब निज़ामुद्दीन शेख भी इण्डियन नेशनल आर्मी मंे शामिल हो गये। उनके जज़्बे और काम करने के तरीक़े को देखते हुए नेताजी ने पहले उन्हें अपना ड्राइवर और फिर बाद में बाॅडी-गार्ड और निजी मुलाज़िम बनाया। दूसरी जंगे-अज़ीम में जापान की हार के बाद जब इण्डियन नेशनल आर्मी पीछे हटी तो 16 अगस्त सन् 1945 को निज़ामुद्दीन नेताजी के साथ सिंगापुर तक गये। उनको ज़रा भी यक़ीन नहीं था कि इसके बाद उनकी नेताजी से कभी मुलाकात नहीं होगी। नेताजी 19 अगस्त सन् 1945 को एक हवाईजहाज-दुर्घटना में शहीद हो गये थे। निज़ामुद्दीन शेख ने इस हवाई-दुर्घटना पर भी सवाल उठाया और कहा कि मैंने नेताजी को सिंगापुर नदी के किनारे बर्मा-थाइलैण्ड के बार्डर के पास हवाई दुर्घटना के चार महीने पहले छोड़ा था। निज़ामुद्दीन ने सन् 1950 तक अपनी ज़िन्दगी बर्मा में गुज़ारी और हबीबुन्निसा से शादी की, जो कि एक हिन्दुस्तानी थीं।
सन् 1969 मंे आप हिन्दुस्तान लौटकर अपने गांव ढकवा (आज़मगढ़) में एक आम शहरी की तरह ज़िन्दगी गुज़ारने लगे। सन् 2001 में जब एक तारीख़नवीस (जो कि इण्डियन नेशनल आर्मी के बारे में रिसर्च कर रहा था) सिंगापुर से जानकारी लेकर आपसे मिलने पहंुचा तो उसे यह जानकर ताज्जुब हुआ कि कर्नल निज़ामुद्दीन को भारत सरकार ने स्वतंत्रता-संग्राम-सेनानी की लिस्ट मंे भी नहीं शामिल किया है। उस तारीख़नवीस के ख़बर शाया कराने के बाद भारत सरकार ने 12 साल बाद सन् 2013 में उन्हंे स्वतंत्रता-सेनानी मानने के हक़ मंे फैसला सुनाया। उन्हें सेनानी की उपाधि तो मिल गयी लेकिन बक़ाया पेंशन और दूसरी सहूलियतें अभी सरकारी फाइलों में हैं। इसी बीच भारत के नये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2016 में बनारस की एक सभा में निज़ामुद्दीन साहब का सार्वजनिक अभिनन्दन करके सम्मानित किया।
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