नज़रिया: 'उन्नाव रेप केस ने खोल दी योगी आदित्यनाथ की पोल' ____ शरत प्रधान, वरिष्ठ पत्रकार
पार्टी के एक नेता आईपी सिंह ने तो ख़ुद ये ट्वीट किया है कि योगी आदित्यनाथ तो एसआईटी रिपोर्ट से सहमत हो गए थे और सेंगर की गिरफ़्तारी के लिए रज़ामंद भी हो गए थे, लेकिन आख़िरी वक़्त पर किसी उच्चस्तरीय नेता ने वीटो लगाकर गिरफ़्तारी रुकवा दी और योगी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे.
उसके बाद सेंगर अपने रुतबे की नुमाइश करने के लिए लखनऊ के एसएसपी के दफ़्तर पर रात 12 बजे पहुंचे और मीडिया को बड़ी शान से यह बताया कि मैं यहां आया हूं सिर्फ़ यह बताने के लिए कि 'मैं भगौड़ा नहीं हूं.'
बीजेपी विधायक के ख़िलाफ़ बलात्कार का केस पर गिरफ़्तारी नहीं
'माननीय विधायक जी'
कुलदीप सिंह सेंगर
.सुबह होते ही 10 बजे प्रदेश के प्रधान सचिव (गृह) और पुलिस महानिदेशक ने एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ये बताया कि सरकार ने रात में फैसला लिया है कि सेंगर का यह पूरा मामला, जिसमें रेप और रेप पीड़िता के पिता की निर्मम हत्या भी शामिल है, सीबीआई को सौंपा जा रहा है.
ताज्जुब की बात तो ये हुई कि सवालों के जवाब में डीजीपी ने ये कहने में कोई हिचक नहीं की, "क्योंकि मामले को अब सीबीआई को भेजने का निर्णय लिया गया है, इसलिए विधायक को यूपी पुलिस गिरफ़्तार नहीं करेगी. ये अब सीबीआई पर है कि वो उन्हें गिरफ़्तार करती है या नहीं."
बात तो और बिगड़ी जब डीजीपी उस दोषी बलात्कारी विधायक को 'माननीय' कह-कहकर बुलाने लगे. इतना ही नहीं, मीडिया की ओर से पूछे जाने पर उन्होंने यह सफाई दी, "जब तक आरोपी को कोर्ट की ओर से दोषी नहीं ठहराया जाता, तब तक विधायक होने के नाते उन्हें माननीय कहना जायज़ है."
वैसे तो इस बात का शक़ होना लाज़मी था कि ऐसे हालात में जब तक सीबीआई केस को लेने के लिए रज़ामंद नहीं होती, सेंगर मज़े से खुलेआम घूम सकते हैं. पर इसी बीस इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ख़ुद मामले का संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया. चीफ़ जस्टिस ने प्रदेश के महाधिवक्ता को भी तलब करके पूछा कि वो बताएं कि दोषी विधायक को गिरफ़्तार किया जाएगा या नहीं.
हाईकोर्ट के सख़्त रवैये से घबराकर केंद्रीय सरकार ने रातों-रात मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया, जिसका अंजाम ये हुआ कि शुक्रवार की सुबह सीबीआई टीम ने 'माननीय' विधायक को हिरासत में ले लिया. इससे उत्तर प्रदेश सरकार की कमज़ोरी और खुलकर ज़ाहिर हो गई.
टूटा आत्मप्रचारित भ्रम
ज़ोर ज़ोर से रोज़ गुर्राने वाले मुख्यमंत्री जो यह कहते थकते नहीं कि उनके राज में आम आदमी और ख़ास तौर से महिलाएं पूरी तरह सुरक्षित हैं, शुक्रवार सुबह ही मध्य प्रदेश के किसी मंदिर में पूजा करते हुए टीवी चैनल पर दिख रहे थे.
उनके 'अपराधियों को बख़्शा नहीं जाएगा' वाले दावे की आज खिल्ली उड़ रही है. अभी तक वो बड़ी शान से ये बताते थे कि उनकी सरकार में हुए 1100 एनकाउंटरों के डर से अपराधी प्रदेश छोड़कर भाग रहे हैं. शायद वो ये भूल गए कि इस डर में उनकी पार्टी में बैठे अपराधी उसी तरह से शामिल नहीं हैं. यह वैसा ही है, जैसे अखिलेश यादव के कार्यकाल में सपा के दागियों को क़ानून से पूरी छूट मिली हुई थी.
योगी आदित्यनाथ के दावे इतने खोखले साबित होंगे, इसका अंदाज़ा उन वोटरों को शायद नहीं था जिन्होंने भाजपा को वोट देकर विधानसभा चुनावों में 403 में से 324 सीटें जितवाई थीं.
योगी को पहला झटका तब लगा था जब उनकी खाली की हुई गोरखपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव में खड़े हुए उन्हीं के नुमाइंदे को बुरी हार का सामना करना पड़ा. उनका अतिआत्मविश्वास जो उस सीट पर लगातार पांच बार क़ाबिज़ रहने के कारण था, उन्हें ही ले डूबा.
आज उन्नाव रेप कांड में जिस तरह उन्हें मुंह की खाने पड़ी है और उससे उन्हीं का आत्मप्रचारित भ्रम भी टूट गया कि ना तो वो ख़ुद कोई ग़लत काम करते हैं और ना ही किसी में दम है कि जो उनसे ग़लत काम करवा सके.
[शरत प्रधान, वरिष्ठ पत्रकार को शत-शत नमन.]
(साभार: बीबीसी न्यूज़ )
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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