14 साल में 61,000 करोड़पतियों ने छोड़ा भारत, विदेशों में बसने के ये हैं कारण...
न्यूज़ 18 पर पसारित खबरों में क्या कहा गया है, आईये देखते हैं ________
"हम एक्सपर्ट के हवाले से बता रहे हैं कि आखिर अमीरों के भारत छोड़ने के क्या हैं कारण? वे किन देशों का कर रहे हैं रुख? और उनके जाने से भारत को क्या हो रहा है नुकसान?
गौरतलब है कि कुछ समय पहले ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भारतीयों को हर साल 2.5 लाख डॉलर विदेश ले जाने की अनुमति दी थी. इससे बिजनेसमैन के लिए भारत में कमाए पैसे को विदेश ले जाना और आसान हो गया है.
भारत में अल्ट्रा अमीरों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से वे देश छोड़कर बाहर जा रहे हैं. ग्लोबल इन्फॉर्मेशन कंसल्टिंग सविर्सेज फर्म ‘न्यू वर्ल्ड वेल्थ’ के अनुसार, देश छोड़ने वाले हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (एचएनआई) की संख्या के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. पिछले 14 वर्षों में 61,000 एचएनआई और मोदी सरकार के आने के बाद से 21 हजार से अधिक ऐसे लोगों ने भारत छोड़ा है. एचएनआई ऐसे लोगों को कहते हैं जिनके पास 10 लाख डॉलर से अधिक यानी लगभग 7 करोड़ रुपए या उससे अधिक की सम्पत्ति है. ऐसे में आज हम एक्सपर्ट के हवाले से आपको बता रहे हैं कि आखिर उनके भारत छोड़ने के क्या हैं कारण? वे किन देशों का कर रहे हैं रुख? और उनके जाने से भारत को क्या हो रहा है नुकसान?
भारत छोड़ने के ये हैं कारण: एचएनआई के भारत छोड़ने की कई वजहें हैं. सामान्य तौर पर इनमें भारत में ऊंची टैक्स रेट, विदेशों में टैक्स सेविंग, बेहतर सुविधाएं, बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर और पर्यावरण शामिल हैं. हालांकि ब्लैकमनी मामलों के एक्सपर्ट और इकोनॉमिस्ट प्रोफेसर अरुण कुमार ने न्यूज18 हिंदी को बताया कि इनके भारत छोड़ने की सबसे बड़ी वजह ब्लैकमनी से जुड़े रिस्क को कवर करना है. सरकार से मिलीभगत के जरिए बड़ी संख्या में लोग खूब पैसे कमा रहे हैं. ऐसे में उन्हें कानून का खौफ भी सताता रहता है, इसलिए उन्हें सेफ टैक्स हेवन की तलाश रहती है, जहां रिस्क और टैक्स दोनों कम हैं. दुनिया में 90 से अधिक टैक्स हेवंस हैं, जिनमें ब्रिटेन भी शामिल है.
कुमार के अनुसार, 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद आप भारत से बिजनेस कर रहे हैं या फिर विदेशों से, इससे आपके बिजनेस या प्रॉफिट पर अधिक फर्क नहीं पड़ता है. विदेशियों को भी बिजनेस के मामले में लगभग उतने ही फायदेे मिल रहे हैं, जितने की भारतीयों को मिलते हैं. वैसे भी पीआईओ कार्ड लेकर बाहर रह रहे भारतीयों के लिए भारत में सभी लाभ लेना और आसान हो गया है.
भारत छोड़ने वाले इस ट्रेंड की शुरुआत आज से लगभग 25 साल पहले हो गई थी और लगातार यह मजबूत होता गया. कुमार के अनुसार, बदलते माहौल के कारण यहां के बिजनेसमैन अब अपना एक कदम विदेशों में रखना चाहते हैं, ताकि पकड़े जाने से पहले भारत छोड़ना और विदेशों में ठिकाना बनाना उनके लिए आसान हो जाए.
कुमार के अनुसार, वैसे भी ग्लोबलाइजेशन एकतरफा प्रोसेस है, जिसमें अमीरों के ही और अमीर बनने की संभावना रहती है. इस प्रोसेस में देश के प्रति इमोशनल लगाव कम होता जाता है. भारत के मामले में यह कुछ अधिक सच है. कोई शक नहीं कि भारत से अधिक संख्या में चीन के एचएनआई विदेश जाते हैं, लेकिन अपने मुल्क के प्रति भावना अक्सर बनी रहती है. इसीलिए विदेशों में बसने के बाद भी वे चीन में पूंजी लगाते या भेजते रहते हैं. सिंगापुर, मकाओ जैसी जगहों पर उनके वर्चस्व का फायदा चीन को ही मिलता है, जो भारत के मामले में सच नहीं है.
गौरतलब है कि कुछ समय पहले ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भारतीयों को हर साल 2.5 लाख डॉलर विदेश ले जाने की अनुमति दी थी. इससे बिजनेसमैन के लिए भारत में कमाए पैसे को विदेश ले जाना और आसान हो गया है.
अलबत्ता कई टैक्स हेवंस एक मिलियन डॉलर या उससे भी कम रकम में अपनी नागरिकता भी ऑफर करते हैं. इससे भी एचएनआई के लिए वहां बसना आसान हो गया है. चूंकि तमाम तरीकों से पैसे कमाने का लालच बढ़ता जा रहा है, ऐसे में इस ट्रेंड को मजबूती ही मिल रही है. नाइट फ्रेंक की रिपोर्ट तो और भी चौंकाने वाली है. उसके अनुसार हर चार में एक मिलिनेअर भारत छोड़कर विदेश जा रहे हैं.
एचएनआई के विदेश जाकर बसने से बड़ी मात्रा में पैसे भारत से चले जाते हैं. अगर इन पैसों का निवेश भारत में होता तो यहां की इकोनॉमी को मजबूती मिलती. नए निवेश से रोजगार के अवसर निकलते. जबकि भारत विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए विदेशों की खाक छानता रहता है. पैसे बाहर जाने से बैलेंस ऑफ पेमेंट की स्थिति भी खराब होती है.
न्यू वर्ल्ड वेल्थ के प्रमुख एंड्र्यू अमोल्स के अनुसार, भारत के अधिकांश मिलिनेअर्स अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, यूएई और सिंगापुर जा रहे हैं. यूएस, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया इसीलिए पसंद किए जा रहे हैं, क्योंकि इन मुल्कों की भाषा अंग्रेजी है और यहां स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग, सोशल-पॉलिटिकल स्टैबिलिटी, बेहतर एजुकेशन और टैक्स सेविंग्स के बेहतर उपाय हैं.
वैसे देश में इनकी संख्या में तेजी से बढ़ रही है. उदाहरण के लिए, 2017 में भारतीय मिलिनेअर्स की संख्या 196,000 से बढ़कर 250,000 हो गई. सबसे अधिक इजाफा मुंबई में होता है. मुंबई की तुलना में दिल्ली में पैदा होने वाले मिलिनेअर्स लगभग एक तिहाई हैं. नाइट फ्रेंक के अनुसार, 2017 में मुंबई में जहां 619 अल्ट्रा-एचएनआई थे, जिनके पास कम से कम 3 करोड़ डॉलर की सम्पत्ति थी. 157 की संख्या के साथ दिल्ली इस मामले में दूसरे नंबर पर है. वैसे देश में इनकी संख्या में तेजी से बढ़ रही है. उदाहरण के लिए, 2017 में भारतीय मिलिनेअर्स की संख्या 196,000 से बढ़कर 250,000 हो गई. सबसे अधिक इजाफा मुंबई में होता है. मुंबई की तुलना में दिल्ली में पैदा होने वाले मिलिनेअर्स लगभग एक तिहाई हैं. नाइट फ्रेंक के अनुसार, 2017 में मुंबई में जहां 619 अल्ट्रा-एचएनआई थे, जिनके पास कम से कम 3 करोड़ डॉलर की सम्पत्ति थी. 157 की संख्या के साथ दिल्ली इस मामले में दूसरे नंबर पर है.
वैसे देश में इनकी संख्या में तेजी से बढ़ रही है. उदाहरण के लिए, 2017 में भारतीय मिलिनेअर्स की संख्या 196,000 से बढ़कर 250,000 हो गई. सबसे अधिक इजाफा मुंबई में होता है. मुंबई की तुलना में दिल्ली में पैदा होने वाले मिलिनेअर्स लगभग एक तिहाई हैं. नाइट फ्रेंक के अनुसार, 2017 में मुंबई में जहां 619 अल्ट्रा-एचएनआई थे, जिनके पास कम से कम 3 करोड़ डॉलर की सम्पत्ति थी. 157 की संख्या के साथ दिल्ली इस मामले में दूसरे नंबर पर है.
यहां यह बताना मौजूं होगा कि चीन से पिछले 14 वर्षों के दौरान 91,000 मिलिनेअर यानी एचएनआई ने विदेशों में शरण ली.
यहां यह बताना मौजूं होगा कि चीन से पिछले 14 वर्षों के दौरान 91,000 मिलिनेअर यानी एचएनआई ने विदेशों में शरण ली.
यहां यह बताना मौजूं होगा कि चीन से पिछले 14 वर्षों के दौरान 91,000 मिलिनेअर यानी एचएनआई ने विदेशों में शरण ली.
(साभार: न्यूज़-18 )
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
swatantrabharatnews.com