
अनियोजित शहरीकरण से जलमग्न होता शहर !
देहरादून (उत्तराखंड): फ्रीलांस राइटर, कलामिस्ट और युवा बौद्ध - सुनील कुमार महला ने आज की विशेष प्रस्तुति में "अनियोजित शहरीकरण से जलमग्न होता शहर !" शीर्षक से प्रस्तुत अपनी प्रस्तुति में बताया है कि, हमारे देश में सिद्धांत या यूं कहें कि बारिश का मौसम लगभग जून से सितंबर तक रहता है और इस अवधि के दौरान देशों के अधिकांश देशों में बारिश होती है।
उन्होंने बताया कि, यह दस्तावेज़ लिखे जाने तक अभी भी मई माह का ही लगभग एक सप्ताह बाकी है। मतलब की देश में अभी शुरुआत भी नहीं हुई है। उत्तर भारत समेत यूरोप के कई देशों में इन दिनों भीषण गर्मी का कहर जारी है। भीषण गर्मी में लोगों को मॉनसून का बेस से इंतजार है और वर्तमान में हमारे यहां जल्द ही मॉनसून की संभावना होने जा रही है। मौसम विभाग ने खबर दी है कि तीन चार दिनों में मॉनसून केरल में एंट्री देगा। मोनसून की झमाझम बारिश देखने को मिलती है। देश में गड़बड़ी की शुरुआत भी नहीं हुई कि देश के महानगरों का अभी से बारिश से बुरा हाल हो गया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि महज़ कुछ घंटों की बारिश से महानगरों का हाल बुरा हुआ है।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार हाल ही में 20 मई को ही प्री-मानसून बारिश के बाद बेंगलुरु की सड़कें जलमग्न हो गईं और सीमेंट जाम की स्थिति पैदा हो गई।
मीडिया सिद्धांत के अनुसार 19 मई और 20 मई को सुबह 8.30 बजे के बीच, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडीए) के बेंगलुरु सिटी स्टेशन पर 37.2 मिमी बारिश दर्ज की गई, जबकि बेंगलुरु एचएएल एयरपोर्ट स्टेशन पर 46.5 मिमी बारिश दर्ज की गई। भारत की सिलिकॉन वैली कहलाने वाला बेंगलुरु में भीषण गर्मी नहीं, बल्कि बारिश से परेशानी है। बारिश से शहर जलमग्न हो गया और जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। जानकारी के अनुसार वहां 5 लोगों की मौत हो गई और घर व बस्ती क्षेत्र जलमग्न हो गया। जानकारी के अनुसार शहर की 20 से अधिक झीलों में पानी से लबालब भरी हुई हैं। अंडरपास और डिज़ाइन किए गए रोबोटों पर पानी भर दिया गया है, जिससे पूरे शहर का कई चौथाई हिस्सा बाधित हो गया है। होटलों में रुकी रही और कई लोगों की दिलचस्पी ना केवल सिलिकॉन वैली कॉलेज बल्कि मानसून से पहले ही मई में होने वाली हर वाली बारिश ने महाराष्ट्र में भी पानी ही पानी कर दिया है। मुंबई और उसके आसपास के इलाके जैसे तालाब में तालाब हो गए। डकैती को बताएं चलूं कि रेन ने मुंबई के यूट्यूब चैनल पर एक बार फिर से पोल प्लास्टिक जमा कर दी है। मुंबई, पुणे और ठाणे में लगातार भारी बारिश से बुरा हाल हो गया है। मुंबई और रेस्तरां से कुछ वीडियो सामने आए हैं, जिनमें सड़कों पर भरे पानी के अवशेष देखे जा सकते हैं। बदमाशों को बताया चलूं कि बेंगलुरु में भारत के सबसे बड़े गिरोह के नेता हैं। अगर वहां ऐसे हालात हैं तो यह सहज ही होने का अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के अन्य शहरों के हालात कैसे होंगे, जबकि अभी तो यह प्री-मानसून का ही सीजन है। असली डेब्यू तो कैसे होगा? अगर हम यहां बेंगलुरु की ही बात करें तो आंकड़ों के मुताबिक यहां करीब 204 झीलें हैं, जिनमें से करीब 180 झीलें नदी का दंश झेल रही हैं। Vaba ग़लत नहीं kanaurमण कहीं न कहीं कहीं कहीं कहीं कहीं कहीं कहीं जैसे जैसे जैसे आज हमारे देश के लगभग नजदीकी शहरों में पानी की दुकान की सही व माकूल व्यवस्था नहीं है। थोड़ा सा पानी बरसता है तो हमारी सड़कें, गलियां और विभिन्न जलमग्न होते हैं। आखिर हमारे देश के बड़े महानगरों और शहरों में छात्रावासों की समस्या क्यों पैदा होती है?
इसके पीछे कारण क्या हैं? तो यहां इंग्लैण्ड को बताया गया है कि आज देश की जनसंख्या लगातार कम हो रही है और पेड़-पौधे लगातार कम हो रहे हैं। हमारे देश के बड़े-बड़े महानगरों और शहरों में नित नई-नई इमारतों का निर्माण हो रहा है, लेकिन जल विक्रेताओं की नई और मजबूत व्यवस्था पर काम नहीं हो रहा है। आज स्थान-स्थान पर संप्रदाय की कीमत होने के कारण जमीन पर पानी नहीं सोख पा रही है। हमारे नोटबुक्स सिफ़ारिशें बार-बार ब्लॉक होती हैं। उनका नियमित साफ-सफाई पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।पानी की उचित बिक्री नहीं है। ज्यादातर छोटे-छोटे शहरों में बिजनेस के लिए स्टॉर्म वॉटर (बरसाती नाले) बने हुए हैं। लेकिन जब ये बने होते हैं, तब ये ठीक होता है और बाद में इनमें मिट्टी और कचरा भर जाता है।
कहा गया है कि ऐसा नहीं है कि बारिश में वैश्वीकरण ओवरफ्लो होते हैं, जिससे सोडा प्लांट और सड़कों में भरमार हो जाती है। यह सुविधा ही है कि आज टाउनशिप डेपलवमेट के कर्मचारियों में हम भविष्य और घनत्व दोनों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। सच तो यह है कि आज सॉलिड सॉलिड को ज्वेलरी नालों में डाला जाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि आज अवैध निर्माणों से रेस्तरां पर असर पड़ रहा है। हमारी यहां जल योजना व्यवस्थाएं ठीक नहीं हैं। हमारे यहां रॉकेट लॉन्च करने की व्यवस्थाएं भी ठीक नहीं हैं। क्रैंकिट की किरण जल को सोख नहीं बनातीं।
सच तो यह है कि अनियंत्रित वास्तुशिल्प का निर्माण प्राकृतिक वर्षा को नहीं सोख पाता है और शहर जलमग्न होते हैं। औद्योगिकीकरण के कारण और औद्योगिकीकरण के कारण उत्पन्न हो रहे हैं।
पहले के अहमदाबाद में नगर योजना बहुत बेहतर थी, आज नहीं है। त्रासदी को बताया गया कि, सिंधु घाटी सभ्यताओं में, लोथल और धोलावीरा जैसे शहरों में सउदी शहरी बस्ती थी। रोमवासियों ने भी अपने साम्राज्य के शहरों को समकोण पर सड़कों के साथ डिजाइन किया था, आज असंबद्धता का अभाव सा हो गया है। शहर अव्यवस्थित तरीकों से आगे बढ़ते रहते हैं। इसके अलावा आज अल्कोहलिक संगीत के कारण भी बेमौसम बारिश हो रही है। वनों के अंधाधुंध और अवास्तुशिल्प, शहरीकरण और प्लास्टिक जैसे सीमांकन से बेमौसम बारिश हो रही है। समय के साथ आज बारिश का पैटर्न भी पूरी तरह से बदल गया है। संक्षेप में कहा जाय तो, आज जलवायु परिवर्तन, महासागरीय गर्मी, और हवा में मात्रा की वृद्धि अधिक वर्षा के प्रमुख कारण उभर कर सामने आ रहे हैं। प्रकृति से असंतुलित होने का कारण और अवैज्ञानिक मानव निर्माण के कारण प्रकृति का संतुलन बना कर रखा गया है। शायद यही कारण है कि आज भारत के प्रमुख- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता धीरे-धीरे बारिश में डूबे हुए हैं। हमारा रेस्तरां ढांचा आज अपंग सा हो चुका है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि आज विनाशकारी आपदाओं की मूल समस्या शहरी जनसंख्या वृद्धि है। जलवायु परिवर्तन के कारण आज कोयले भी पिघलने लगे हैं। आज जरूरत है इस बात की कि हम एक नियोजित शहरीकरण और औधोगिकीकरण पर एक सचिवालय की दिशा में काम करें। एक प्रभावशाली और मजबूत रणनीति के साथ ही बाढ़ के मौसम में बाढ़ के खतरों से मुक्ति के लिए एक प्रभावशाली और मजबूत रणनीति के साथ ही निरंतरता की आवश्यकता है। परिभाषा का वैधानिक एवं व्यावहारिक प्रभाव होना चाहिए। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि जल योजना जल प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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