लाल बहादुर शास्त्री की 54वीं पूण्य तिथि: उपराष्ट्रपति, लोसपा व विभिन्न संगठनों ने श्रद्धांजलि अर्पित की - शास्त्री जी को सुनियोजित ढंग से हो रहा है भुलाने का हो रहा प्रयास और मीडिया मौन !
लोगों को सच्चा लोकतंत्र या स्वराज कभी भी असत्य और हिंसा से प्राप्त नहीं हो सकता है: "लाल बहादुर शास्त्री"
लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूरि।
चींटी ले सक्कर चली, हाथी के सिर धूरि॥
[सच्चिदानन्द श्रीवास्तव, प्रदेश अध्यक्ष (उत्तर प्रदेश), लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी & महामंत्री-रेल सेवक संघ & प्रत्याशी- विधान सभा- 175 - लखनऊ कैंट]
लखनऊ: 11 जनवरी 2020 को भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी- "भारत रत्न"- लाल बहादुर शास्त्री जी के 54वीं पूण्य तिथि के अवसर पर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी केे मुख्यालय दिल्ली, प्रदेश कार्यालय- भोपाल व लखनऊ सहित पार्टी के सभी जिला कार्यालयों मे, रेल सेवक संघ के कार्यालयों में तथा उनके जन्मस्थली में विभिन्न संगठनों द्वारा गोष्ठी व सभा आयोजित कर शास्त्री जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला गया और श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
उपराष्ट्रपति - श्री एम्. वेंकैया नायडू ने भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की स्मृति को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ट्वीट किया कि, "आज देश के पूर्व प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्य तिथि के अवसर पर,जीवन में उच्च आदर्शों तथा सादगी की प्रतिमूर्ति, शास्त्री जी की राष्ट्रसेवा तथा कर्तव्य निष्ठा, समर्पण को सादर प्रणाम करता हूं।"
आज देश के पूर्व प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्य तिथि के अवसर पर,जीवन में उच्च आदर्शों तथा सादगी की प्रतिमूर्ति, शास्त्री जी की राष्ट्रसेवा तथा कर्तव्य निष्ठा, समर्पण को सादर प्रणाम करता हूं।#LalBahadurShastri pic.twitter.com/slvlWstSOh
— Vice President of India (@VPSecretariat) January 11, 2020
युद्ध और कृषि संकट के समय भी, देश की एकता, अखंडता सुरक्षित रखने और राष्ट्र की प्रगति में सैनिकों और किसानों के योगदान को सम्मान देने के लिए उन्होंने " जय जवान, जय किसान" का अमर मंत्र दिया।
— Vice President of India (@VPSecretariat) January 11, 2020
#LalBahadurShastri
उपराष्ट्रपति - श्री एम्. वेंकैया नायडू ने भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की स्मृति को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने तीसरे ट्वीट में कहा कि, "देश में कृषि और दुग्ध उत्पादन में क्रांति के लिए शास्त्री जी के प्रयासों को सदैव आदरपूर्वक स्मरण किया जाएगा। कृतज्ञ देश के साथ शास्त्री जी की स्मृति को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।"
देश में कृषि और दुग्ध उत्पादन में क्रांति के लिए शास्त्री जी के प्रयासों को सदैव आदरपूर्वक स्मरण किया जाएगा। कृतज्ञ देश के साथ शास्त्री जी की स्मृति को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
— Vice President of India (@VPSecretariat) January 11, 2020
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा ने भी सेंट्रल कालोनी स्थित शास्त्री जन्मस्थली में पुण्यतिथि मनाई। सदस्यों ने शास्त्री जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी।
लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक रघु ठाकुर, राष्ट्रीय महासचिव- राघवेन्द्र सिंह, रामशंकर पुरोहित, गणेश जी, सहित सभी पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं और देेेश- प्रदेश के नागरिकों ने शास्त्री जी को पुष्प अर्पित करते हुए शत् - शत् नमन वंदन किया और भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
इसी क्रम में उत्तर प्रदेश की राजधानी- लखनऊ स्थित लोसपा के प्रदेश कार्यालय में भी भारत रत्न- लाल बहादुर शास्त्री की 54वीं पुण्यतिथि पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया जहाँ स्ववतंत्र भारत न्यूज़ डाट काम के संपादक, रेल सेवक संघ के महामंत्री तथा लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी केे प्रदेश अध्यक्ष (उत्तर प्रदेश) और दो बार लखनऊ कैंट विधान सभा से चुनाव लड़ चुके तथा 2022 में होने वाले लखनऊ कैंट विधानसभा चुनाव के प्रत्यासी- एस एन श्रीवास्तव, प्रदेश सचिव- दयाशंकर जी और जिला अध्यक्ष- अरुण कुमार तिवारी, सतीश चन्द्र सहित सभी पदाधिकारी/ कार्यकर्ताओंं और नागरिकों ने शास्त्री जी की फोटो पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि अर्पित किये।
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के लखनऊ कार्यालय में आयोजित गोष्ठी में प्रदेश अध्यक्ष- एस एन आज श्रीवास्तव ने शास्त्री जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि, आज देश को लाल बहादुर शास्त्री ऐसे ही नेता और प्रधानमंत्री की आवश्यकता है जिनका दृढ विश्वास अपने जवानों और किसानों पर था। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को तथा मृत्यु 11 जनवरी 1966 को हुआ था। "मरो नहीं,मारो" तथा "जय जवान, जय किसान" का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु ताशकंद घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने के एक दिन बाद 11 जनवरी 1966 को हो गई थी, जिसका रहस्य आज तक नहीं खुला।
शास्त्री जी ने कहा था कि, "लोगों को सच्चा लोकतंत्र या स्वराज कभी भी असत्य और हिंसा से प्राप्त नहीं हो सकता है।"
श्रीवास्तव ने कहा कि, "भारत वर्ष के पूर्व प्रधानमंत्री- भारत रत्न- लाल बहादुर शास्त्री की आज 54वीं पुण्थतिथि है परन्तु अभी तक उपराष्ट्रपति के ट्वीट के अतिरिक्त सत्तापक्ष और विपक्ष के मुखिया और प्रधानमंत्री मोदी के, दिल्ली के विजय घाट पर स्थित शास्त्री मेमोरियल पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देने का समाचार नहीं मिला है। समाचार पत्र भी लगभग मौन हैं। यहां तक कि भारत सरकार के पात्र सूचना कार्यालय और उपराष्ट्रपति सचिवालय ने भी लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्य तिथि पर उपराष्ट्रपति द्वारा ट्वीट द्वारा दी गयी श्रद्धांजलि की प्रेस-विज्ञप्ति तक जारी नहीं की, क्यों?- यह तो सरकार ही बता सकती है।लग रहा है कि उन्हें फुर्सत नहीं मिली या सुनियोजित ढंग से शास्त्री जी को भुलाया जा रहा है, जबकि वर्ष 1966 में लाल बहादुर शास्त्री को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया था।"
"लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूरि।
चींटी ले सक्कर चली, हाथी के सिर धूरि॥"
श्रीवास्तव ने कहा कि, उपरोक्त दोहा हमारे देश भारत की महान विभूति लालबहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व पर चरितार्थ होता है। 2अक्टूबर1904 को मुगलसराय के एक निर्धन परिवार में शास्त्रीजी का जन्म हुआ था। उनके पिता मुंशी शारदा प्रसाद शिक्षक थे। जब लालबहादुर शास्त्री डेढ़ वर्ष के थे, तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। मां रामदुलारीजी ने कठिनाइयों से किंतु स्वाभिमान के साथ शास्त्रीजी और उनकी बहनों का लालन-पालन किया।
स्वाभिमान और साहस के गुणी शास्त्रीजी को अपने माता - पिता से विरासत में मिले थे। वास्तविकता तो यह है कि साहस और स्वाभिमान लालबहादुर शास्त्री का ओढ़ना-बिछौना था।
शास्त्रीजी को अपने अध्ययन में रुकावट बर्दाश्त नहीं थी। आर्थिक अभावों के बावजूद उन्होंने 1926 में काशी विद्यापीठ से "शास्त्री" की उपाधि प्राप्त की। इस उपाधि के कारण ही कायस्थ परिवार में जन्मे लालबहादुर को "शास्त्री" कहा जाने लगा।
शास्त्री जी महात्मा गांधी से प्रभावित थे। उनके नेतृत्व में संचालित स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण शास्त्रीजी को कई बार जेल की सजाएं भोगनी पड़ीं, परंतु कारावास की यातनाओं से शास्त्रीजी विचलित नहीं हुए।
शास्त्रीजी दरअसल महान कर्मयोगी थे।
नेहरू जी के प्रधानमंत्रित्व काल में जब वे रेलमंत्री थे, तब एक "रेल दुर्घटना" होने पर उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से तुरंत त्याग पत्र दे दिया था। यह शास्त्रीजी की नैतिकता और संवेदनशीलता का सबूत था।
नेहरूजी के प्रभावशाली व्यक्तित्व के मोहपाश से बंधी भारतीय जनता, जो उनके निधन से स्तब्ध रह गई थी, लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने से वही जनता आश्चर्यचकित रह गई।
राजनीति के संतुलित समीक्षक भी तब अपनी टिप्पणियों में संतुलन नहीं रख सके थे। कतिपय समीक्षकों को लगा था कि प्रधानमंत्री के पद पर शास्त्रीजी का चयन स्वभाव से सुसंस्कारी किंतु कमजोर आदमी का चयन है। शीघ्र ही समीक्षकों की शंकाएं निर्मूल साबित हुईं।
अपनी स्वभाविक सहिष्णुता और सराहनीय सूझबूझ से समस्याओं को सुलझाने की जो शैली शास्त्रीजी ने अपनाई, उससे सबको पता चल गया कि जिस आदमी के कंधों पर भारत का भार रखा गया है, वह अडिग, आत्मविश्वास और हिमालयी व्यक्तित्व का स्वामी है।
शास्त्रीजी प्राणपण से राष्ट्रोत्थान के लिए प्रयासशील रहे। वे राष्ट्रीय प्रगति के पर्वतारोही थे, इसलिए राष्ट्र को उन्होंने उपलब्धियों के उत्तुंग शिखर पर पहुंचाया। उनकी प्रशासन पर पैनी पकड़ थी। राष्ट्रीय समस्याओं के समुद्र में आत्मविश्वासपूर्वक अवगाहन करके उन्होंने समाधान के रत्न खोजे।
उदाहरणार्थ- भाषावाद की भभकती भट्टी में भारत की दक्षिण और उत्तर भुजाएं झुलस गईं तो शास्त्रीजी ने राष्ट्रभाषा विधेयक के विटामिन से दोनों की प्रभावशाली चिकित्सा की। असम के भाषाई दंगों के दावानल के लिए "शास्त्री फार्मूला" अग्नि-शामक सिद्ध हुआ। पंजाब में अकालियों के आंदोलन के विस्फोट को रोकने में शास्त्रीजी की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
शास्त्रीजी ने अपने प्रधानमंत्रित्व के दौर में देश को परावलंबन की पगडंडी से हटाकर स्वावलंबन की सड़क पर गतिशील किया। उन्होंने "जय जवान - जय किसान" के नारे के साथ हर क्षेत्र में स्वावलंबी, स्वाभिमानी और स्वयंपूर्ण भारत के सपने को साकार करने के लिए उसे योजना के ढांचे और युक्ति के सांचे में ढाला।
सन् 1965 में भारत-पाक युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर विजय, शास्त्रीजी के कार्यकाल में राष्ट्र की उच्चतम उपलब्धि थी। वे अहिंसा के पुजारी थे, किंतु राष्ट्र के सम्मान की कीमत पर नहीं। उनका आदेश होते ही शक्ति से श्रृंगारित एवं आत्मबल से भरपूर भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को परास्त करके विजयश्री का वरण कर लिया था।
ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि लालबहादुर शास्त्री आपदाओं में आकुल और विपत्तियों में व्याकुल नहीं हुए। उस समय जबकि सारा देश ही अनिश्चय के अंधकार में अचेत था, वे चेतना के चिराग की तरह रोशन हुए। उनका व्यक्तित्व तानाशाही के ताड़ण्तरु की श्रेणी में नहीं, प्रजातंत्र की तुलसी के बिरवे के वर्ग में आता है।
भारतीय संस्कृति में तुलसी का बिरवा उल्लेखनीय तो है ही, सम्माननीय भी है।
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