
राज्या सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मूल पाठ भाग- 1
नई-दिल्ली (PIB): प्रधानमंत्री कार्यालय ने सोमवार 08 फ़रवरी को राज्य सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मूल पाठ जारी किया है जिसे दो भाग में प्रकाशित किया जा रहा है।
भाग- 1
राज्या सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मूल पाठ:
आदरणीय सभापति जी,
पूरा विश्व अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि मानव जाति को ऐसे कठिन दौर से गुजरना पड़ेगा। ऐसी चुनौतियों के बीच इस दशक के प्रारंभ में ही हमारे आदरणीय राष्ट्रपति जी ने जो संयुक्त सदन में अपना उद्बोधन दिया, वह अपने आप में इस चुनौतियों भरे विश्व में एक नई आशा जगाने वाला, नया उमंग पैदा करने वाला और नया आत्मविश्वास पैदा करने वाला राष्ट्रपति जी का उद्बोधन रहा, आत्मनिर्भर भारत की राह दिखाने वाला और इस दशक के लिए एक मार्ग प्रशस्त करने वाला राष्ट्रपति जी का उद्बोधन रहा।
आदरणीय सभापति जी,
मैं राष्ट्रपति जी का तहे दिल से आभार व्यक्त करने के लिए आज आप सबके बीच खड़ा हूं। राज्यसभा में करीब 13-14 घंटे तक 50 से अधिक माननीय सदस्यों ने अपने विचार रखे, बहुमूल्य विचार रखे, अनेक पहलुओं पर विचार रखे। और इसलिए मैं सभी आदरणीय सदस्योंका हृदयपूर्वक आभार भी व्यक्त करता हूं इस चर्चा को समृद्ध बनाने के लिए। अच्छा होता कि राष्ट्रपति जी का भाषण सुनने के लिए भी सब होते तो लोकतंत्र की गरिमा और बढ़ जाती और हम सबको कभी गिला-शिकवा न रहता कि हमने राष्ट्रपति जी का भाषण सुना नहीं था। लेकिन राष्ट्रपति जी के भाषण की ताकत इतनी थी कि न सुनने के बावजूद भी बहुत कुछ बोल पाए। ये अपने-आप में उस भाषण की ताकत थी, उन विचारों की ताकत थी, उन आदर्शों की ताकत थी कि जिसके कारण न सुनने के बाद भी बात पहुंच गई। और इसलिए मैं समझता हूं इस भाषण का मूल्य अनेक गुना हो जाता है।
आदरणीय सभापति जी,
जैसा मैंने कहा, अनेक चुनौतियों के बीच राष्ट्रपति जी का ये दशक का प्रथम भाषण हुआ। लेकिन ये भी सही है कि जब हम पूरे विश्व पटल की तरफ देखते हैं, भारत के युवा मन को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि आज भारत सच्चे अर्थ में एक अवसरों की भूमि है। अनेक अवसर हमारा इंतजार कर रहे हैं। और इसलिए जो देश युवा हो, जो देश उत्साह से भरा हुआ हो, जो देश अनेक सपनों को ले करके संकल्प के साथ सिद्धि को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हो, वो देश इन अवसरों को कभी जाने नहीं दे सकता। हम सबके लिए ये भी एक अवसर है कि हम आजादी के 75 वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। ये अपने-आप में एक प्रेरक अवसर है। हम जहां भी हों, जिस रूप में हों, मां भारती की संतान के रूप में इस आजादी के 75वें पर्व को हमने प्रेरणा का पर्व बनाना चाहिए। देश को आने वाले वर्षों के लिए तैयार करने के लिए कुछ न कुछ कर गुजरने का होना चाहिएऔर 2047 में देश जब आजादी की शताब्दी मनाए तो हम देश को कहां तक ले जाएंगे, इन सपनों को हमें बार-बार हमें देखते रहना चाहिए। आज पूरे विश्व की नजर भारत पर है, भारत से अपेक्षाएं भी हैं और लोगों में एक विश्वास भी है कि अगर भारत ये कर लेगा, दुनिया की बहुत सी समस्याओं का समाधान वहीं से हो जाएगा, ये विश्वास आज दुनिया में भारत के लिए बढ़ा है।
आदरणीय सभापति जी,
जब मैं अवसरों की चर्चा कर रहा हूं, तब महाकवि मैथलीशरण गुप्त जी की कविता को मैं उद्घोषित करना चाहूंगा। गुप्तजी ने कहा था-
अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है।
तेरा कर्म क्षेत्र बड़ा है पल-पल है अनमोल,अरे भारत उठ, आखें खोल।।
ये मैथिलीशरण गुप्त जी ने लिखा है। लेकिन मैं सोच रहा था इस कालखंड में, 21वीं सदी के आरंभ में अगर उनको लिखना होता तो क्या लिखते- मैं कल्पना करता था कि वो लिखते-
अवसर तेरे लिए खड़ा है,तू आत्मविश्वास से भरा पड़ा है।
हर बाधा, हर बंदिश को तोड़, अरे भारत, आत्मनिर्भरता के पथ पर दौड़।
आदरणीय सभापति जी,
कोरोना के दौरान किस प्रकार की वैश्विक परिस्थितियां बनीं, कोई किसी की मदद कर सके ये असंभव हो गया। एक देश दूसरे देश को मदद न कर सके। एक राज्य दूसरे राज्य को मदद न कर सके, यहां तक कि परिवार का एक सदस्य दूसरे परिवार के सदस्य की मदद न कर सके; वैसा माहौल कोरोना के कारण पैदा हुआ। भारत के लिए तो दुनिया ने बहुत आशंकाएं जताई थीं। विश्व बहुत चिंतित था कि अगर कोरोना की इस महामारी में अगर भारत अपने-आप को संभाल नहीं पाया तो न सिर्फ भारत, लेकिन पूरी मानव जाति के लिए इतना बड़ा संकट आ जाएगा ये आशंकाएं सबने जताईं। कोरोड़ों लोग फंस जाएंगे, लाखों लोग मर जाएंगे।हमारे यहां भी डराने के लिए भरपूर बातें भी हुईं। और ये क्यों हुआ ये हमारा सवाल नहीं है, क्योंकि एक unknown enemy क्या कर सकता है, किसी को अंदाज नहीं था। हरेक ने अपने-अपने तरीके से आकलन किया था। लेकिन भारत ने अपने देश के नागरिकों की रक्षा करने के लिए एक unknown enemy से और जिसकी कोई पूर्व परम्परा नहीं थी कि ऐसी चीज को ऐसे डील किया जा सकता है, इसके लिए ये प्रोटोकॉल हो सकता है, कुछ पता नहीं था।
एक नए तरीके से, नई सोच के साथ हर किसी को चलना था। हो सकता है कुछ विद्वान, सामर्थ्यवान लोगों के कुछ और विचार हो सकता है लेकिन था कि unknown enemy था। और हमें रास्तेभी खोजने थे। रास्ते बनाने भी थे और लोगों को बचाना भी था। उस समय जो भी ईश्वर ने बुद्धि, शक्ति, सामर्थ्य दिया इस देश ने उसको करते हुए देश को बचाने में भरसक काम किया। और अब दुनिया इस बात का गौरव करती है कि वाकई भारत ने दुनिया की मानवजाति को बचाने में बहुत बड़ी अहम भूमिका निभाई है। ये लड़ाई जीतने का यश किसी सरकार को नहीं जाता है, न किसी व्यक्ति को जाता है, लेकिन हिन्दुस्तान को तो जाता है। गौरव करने में क्या जाता है? विश्व के सामने आत्मविश्वास के साथ बोलने में क्या जाता है? इस देश ने किया है। गरीब से गरीब व्यक्ति ने इस बात को किया है। उस समय सोशल मीडिया में देखा होगा फुटपाथ पर एक छोटी झोंपड़ी लगा करके बैठी हुई बूढ़ी मां, वो भी घर के बाहर, झोंपड़ी के बाहर दिया जला करके भारत के शुभ के लिए कामना करती थी, हम उसका मजाक उड़ा रहे हैं? उसकी भावनाओं का मखौल उड़ा रहे हैं? समय है, जिसने कभी स्कूल का दरवाजा नहीं देखा था उसके मन में भी देश के लिए जो भी देश के लिए दिया जला करके अपने देश की सेवा कर सकता है उसने किया, इस भाव से किया था। और उसने देश में एक सामूहिक शक्ति का जागरण किया था। अपनी शक्ति का, सामर्थ्य का परिचय करवाया था। लेकिन उसका भी मजाक उड़ाने में मजा आ रहा है। विरोध करने के लिए कितने मुद्दे हैं जी और करना भी चाहिए। लेकिन ऐसी बातों में न उलझें जो देश के मनोबल को तोड़ती हैं, जो देश के सामर्थ्य को नीचा आंकती हैं, उससे कभी लाभ नहीं होता।
हमारे कोरोना वॉरियर्स, हमारे front line workers, आप कल्पना कर सकते हैं जी जब चारों तरफ भय है कि किसी से कोरोना हो जाएगा तो ऐसे समय ड्यूटी करना, अपनी जिम्मेदारियों को निभाना ये छोटी चीज नहीं है, इस पर गर्व करना चाहिए, उनका आदर करना चाहिए और इन सबके प्रयासों का परिणाम है ये कि देश ने आज वो करके दिखाया। हम जरा भूतकाल की तरफ देखें, ये आलोचना के लिए नहीं है, उन स्थितियों को हमने जिया है। कभी चेचक की बात होती थी, कितना भय बढ़ जाता था। पोलियो कितना डरावना लगता था, उसकी वैक्सीन पाने के लिए क्या-क्या मेहनत करनी पड़ती थी, कितनी तकलीफें उठानी पड़ती थीं। मिलेगा, कब मिलेगा, कितना मिलेगा, कैसे मिलेगा, कैसे लगाएं, ये दिन हमने बिताएं हैं। ऐसी स्थिति में उन दिनों को अगर याद करें तो पता चलेगा कि आज जिनको Third World Countries में गिना जाता है वो देश मानव जाति के कल्याण के लिए वैक्सीन ले करके आ जाएं। इतने कम समय में मिशन मोड में हमारे वैज्ञानिक भी जुटे रहे हैं, ये मानव जाति के इतिहास में भारत के योगदान की एक गौरवपूर्ण गाथा है। इसका हम गौरव करें और उसी में से नए आत्मविश्वास की प्रेरणा भी जगती है। हमने उस नए आत्मविश्वास की प्रेरणा को जगाने के ऐसे प्रयासों को आज देश गर्व कर सकता है कि दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान इसी मेरे देश में चल रहा है। विश्व में तीव्र गति से टीकाकरण आज कहीं हो रहा है तो इसी हम सबकी मां भारत की गोद में हो रहा है। और भारत का ये सामर्थ्य कहां नहीं पहुंचा है।
आज कोरोना ने भारत को दुनिया के साथ रिश्तों में एक नई ताकत दी है। जब शुरूआत में कौन सी दवाई काम करेगी, वैक्सीन नहीं थी तो सारे विश्व का ध्यान भारत की दवाइयों पर गया। विश्व में फार्मेसी के हब के रूप में भारत उभर करके आया। 150 देशों में दवाई पहुंचाने का काम उस सकंटकाल में भी इस देश ने किया है। मानव जाति की रक्षा के लिए हम पीछे नहीं हटे। इतना ही नहीं, इस समय वैक्सीन के संबंध में भी विश्व बड़े गर्व के साथ कहता है कि हमारे पास भारत की वैक्सीन आ गई है। हम सबको मालूम है कि दुनिया के बड़े-बड़े अस्पताल में भी बड़े-बड़े लोग भी जब ऑपरेशन कराने जाते हैं कोई बड़े major operation, और ऑपरेशन थिएटरों में जाने के बाद प्रक्रिया शुरू होने से पहले उसकी आंखें ढूंढती कि कोई हिन्दुस्तानी डॉक्टर है कि नहीं है। और जैसे ही टीम के अंदर एकाध भी हिन्दुस्तानी डॉक्टर दिखता है, उसको विश्वास हो जाता है कि अब ऑपरेशन ठीक होगा। यही देश ने कमाया है। इसका हमें गौरव होना चाहिए। और इसलिए इसी गौरव को ले करके हमें आगे बढ़ना है।
इस कोरोना में जैसे वैश्विक संबंधों में भारत ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है, अपना स्थान बनाया है, वैसे ही भारत ने हमारे federal structure को इस कोरोना के कालखंड में हमारी अंतर्भूत ताकत क्या है, संकट के समय हम कैसे मिल करके काम कर सकते हैं, एक ही दिशा में सब शक्तियां लगा करके हम कैसे प्रयास कर सकते हैं; ये केंद्र और राज्य ने मिलकर करके दिखाया है। मैं राज्यों को भी, क्योंकि सदन में राज्यों की अपनी फ्लेवर होती है और इसलिए इस सदन में तो मैं विशेष रूप से राज्यों का भी अभिनंदन करता हूं और cooperative Federalism को ताकत देने का काम, इस कोरोना के संकट को अवसर में बदलने का काम हमारे सभी ने किया है। इसलिए सब कोई अभिनंदन के अधिकारी हैं। यहां पर लोकतंत्र को ले करके काफी उपदेश दिए गए हैं। बहुत कुछ कहा गया है। लेकिन मैं नहीं मानता हूं जो बातें बताई गई हैं, देश को कोई भी नागरिक इस पर भरोसा करेगा। भारत का लोकतंत्र ऐसा नहीं है कि जिसकी खाल हम इस तरह से उधेड़ सकते हैं। ऐसी गलती हम न करें और मैं श्रीमान देरेक़ जी की बात सुन रहा था, बढ़िया-बढ़िया शब्दों का प्रयोग हो रहा था।freedom of speech, intimidation, hounding, जब शब्द सुन रहा था तो लग रहा कि ये बंगाल की बात बता रहे हैं कि देश की बता रहे हैं? स्वाभाविक है चौबीसों घंटे वही देखते हैं, वही सुनते हैं तो वही बात शायद गलती से यहां बता दी होगी। कांग्रेस के हमारे बाजवा साहब भी काफी अच्छा बता रहे थे इस बार और इतना लंबा खींच करके बता रहे थे कि मुझे लग रहा था बस अब थोड़ी देर में ये इमरजेंसी तक पहुंच जाएंगे। मुझे लग रहा था थोड़ी देर में, एक कदम बाकी है, वो 84 तक पहुंच जाएंगे, लेकिन वो वहां नहीं गए। खैर, कांग्रेस देश को बहुत निराश करती है, आपने भी निराशकर दिया।
माननीय सभापति जी,
मैं एक कोटइस सदन के सामने रखना चाहता हूं और खास करके लोकतंत्र पर जो शक उठाते हैं, भारत की मूलभूत शक्ति पर जो शक उठाते हैं, उनको तो मैं विशेष आग्रह से कहूंगा कि इसको समझने का प्रयास करें। ‘’हमारा लोकतंत्र किसी भी मायने में western institution नहीं है। ये एक human institution है। भारत का इतिहास लोकतांत्रिक संस्थानों के उदाहरणों से भरा पड़ा है। प्राचीन भारत में 81 गणतंत्रों का वर्णन हमें मिलता है। आज देशवासियों को भारत के राष्ट्रवाद पर चौरतफा हो रहे हमले से आगाह करना जरूरी है। भारत का राष्ट्रवाद न तो संकीर्ण है, न स्वार्थी है और न ही आक्रमक है। ये ‘’सत्यम शिवम सुंदरम’’के मूल्यों से प्रेरित है’’।
आदरणीय सभापति जी,
ये कोटेशन आजाद हिंद फौज की प्रथम सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस की है। और संयोग है कि 125वीं जयंती आज हम मना रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि जाने-अनजाने में हमने नेताजी की इस भावना को, नेताजी के इन विचारों को, नेताजी के इन आदर्शों को भुला दिया है। और उसका परिणाम है कि आज हम ही हमको कोसने लग गए हैं। मैं तो कभी-कभी हैरान हो जाता हूं दुनिया जो कोई हमें शब्द पकड़ा देती है, हम उसको पकड़ करके चल पड़ते हैं। दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी, सुनते हुए हमको भी अच्छा लगता है, हां यार भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लेकिन हमने अपनी युवा पीढ़ी को ये सिखाया नहीं कि भारत, ये mother of democracy है। ये लोकतंत्र की जननी है। हम सिर्फ बड़ा लोकतंत्र हैंऐसा नहीं है,ये देश लोकतंत्र की जननी है। ये बात हमें हमारी आने वाली पीढ़ियों को सिखानी होगी और हमें गर्व से ये बात को बोलना होगा क्योंकि हमारे पूर्वजों ने विरासत हमें दी है। भारत की शासन व्यवस्था democratic है, सिर्फ इसी वजह से हम लोकतंत्र देश नहीं हैं। भारत की संस्कृति, भारत के संस्कार, भारत की परम्परा, भारत का मन लोकतांत्रिक है और इसलिए हमारी व्यवस्था लोकतांत्रिक है। ये हैं, इसलिए ये हैं, ऐसा नहीं है। मूलत: हम लोकतांत्रिक हैं इसलिए हैं। और ये कसौटी भी हो चुकी है देश की।
आपातकाल के उन दिनों को याद कीजिए, न्यायपालिका का हाल क्या था, मीडिया का क्या हाल था, शासन का क्या हाल था। सब कुछ जेलखानें में परिवर्तित हो चुका था लेकिन इस देश का संस्कारी, देश का जनमन, जो लोकतंत्र की रगो से रंगा हुआ था उसको कोई हिला नहीं पाया था। मौका मिलते ही उसने लोकतंत्र का प्रभावित कर दिया। ये लोगों की ताकत, ये हमारे संस्कारों की ताकत है, ये लोकतांत्रिक मूल्यों की ताकत है मुद्दा ये नहीं है कि कौन सरकार, कौन सरकार ने बनाई उसकी चर्चा नहीं कर रहा मैं, और न ही मैं ऐसी चीजों में समय लगाने के लिए यहां आपने मुझे बिठाया है। हमें लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए आगे बढ़ना है। आत्मनिर्भर भारत के संबंध में भी चर्चा हुई। मैं हमारे साथी धर्मेंद्र प्रधान जी के बहुत ही अभ्यासपूर्ण और आत्मनिर्भर भारत की हमारी दिशा क्या है उसका विख्यात, विस्तृत रूप से उन्होंने बयान किया है। लेकिन एक बात सही है कि आर्थिक क्षेत्र में भी आज भारत की जो एक पहुंच बन रही है। कोरोना काल में दुनिया के लोग निवेश के लिए तरस रहे हैं। सारी बातें बाहर आ गई हैं। लेकिन भारत है जहां रिकार्ड निवेश हो रहा है। सारे तथ्य बता रहे है कि अनेक देशों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है। जबकि दुनिया भारत में डबल डिजिटल ग्रोथ का अनुमान लगा रही है। एक तरफ निराशा का माहौल है, तो हिन्दुस्तान में आशा की किरण नजर आ रही है, ये दुनिया की तरफ से आवाज उठ रही है।
आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार रिकार्ड स्तर पर है। आज भारत में अन्न उत्पादन रिकार्ड स्तर पर है। भारत आज दुनिया में दूसरा बड़ा देश है जहां पर इंटरनेट यूजर है। भारत में आज हर महीने 4 लाख करोड़ रुपये का लेनदेन डिजिटल हो रहा है, यूपीआई के माध्यम से हो रहा है। याद कीजिए, इसी सदन के भाषण में सुन रहा था... दो साल, तीन साल पहले... लोगों के पास मोबाइल कहां है, ठिकना कहां है, लोग डिजिटल कैसे करेंगे, ये देश की ताकत देखिए... हर महीने 4 लाख करोड़ रुपये भारत मोबाइल फोन के निर्माता के रूप में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बना है। भारत में रिकार्ड संख्या में स्टार्टअपस, यूनीकॉर्न और जिसका विश्व में जय-जयकार होने लगा है। इसी धरती पर हमारी युवा पीढ़ी कर रही है। Renewal Energy के क्षेत्र में विश्व के पहले पांच देशों में हमनें अपनी जगह बना ली है और आने वाले दिनों में हम ऊपर ही चढ़ के जाने वाले हैं। जल हो, थल हो, नभ हो, अंतरिक्ष हो....भारत हर क्षेत्र में अपनी रक्षा के लिए, अपने सामर्थ्य के साथ खड़ा है। सर्जिक्ल स्ट्राइक हो या air स्ट्राइक भारत की capability को दुनिया ने देखा है।
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