राज्या सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मूल पाठ भाग- 2
नई-दिल्ली (PIB): प्रधानमंत्री कार्यालय ने सोमवार 08 फ़रवरी को राज्य सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मूल पाठ जारी किया है जिसे तीन भागों में प्रकाशित किया जा रहा है।
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भाग- 2
राज्या सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मूल पाठ:
आदरणीय सभापति जी,
2014 में पहली बार जब मैं इस सदन में आया था, इस परिसर में आया था और जब मुझे नेता के रूप में चुना गया था तो मेरे पहले भाषण में मैंने कहा था कि मेरी सरकार गरीबों को समर्पित है। मैं आज दोबारा आने के बाद भी यही बात दोहरा रहा हूं। और हम न हमारी direction बदली है न हमने dilute किया है न divert किया है उसी मिजाज के साथ हम काम कर रहे हैं क्योंकि इस देश में आगे बढ़ने के लिए हमें गरीबी से मुक्त होना ही होगा। हमें प्रयासों को जोड़ते ही जाना होगा। पहले के प्रयास हुए होंगे तो उसमें और जोड़ना ही पड़ेगा हम रूक नहीं सकते। जितना कर लिया बहुत है... नहीं रूक सकते, हमें और करना ही होगा। आज मुझे खुशी है कि जो मूलभूत आवश्यकता है ease of living के लिए है और जिसमें से आत्मविश्वास पैदा होता है और एक बार गरीब के मन में आत्मविश्वास भर गया तो गरीब खुद गरीबी की चुनौती को ताकत देने के साथ खड़ा हो जाएगा, गरीब किसी की मदद का मोहताज नहीं रहेगा। ये मेरा अनुभव है। मुझे खुशी है 10 करोड़ से ज्यादा शौचालय बने हैं, 41 करोड़ से ज्यादा लोगों के खाते खुल गए हैं। 2 करोड़ से अधिक गरीबों के घर बने हैं। 8 करोड़ से अधिक मुफ्त गैस के कनेक्शन दिए गए हैं। पांच लाख रुपये तक मुफ्त इलाज गरीब के जिंदगी में बहुत बड़ी ताकत बनकर आया है। ऐसी अनेक योजनाएं जो गरीबों के जीवन में बदलाव ला रही हैं। नया विश्वास पैदा कर रही हैं।
आदरणीय सभापति जी,
चुनौतियां है, अगर चुनौतियां न होती ऐसा कहीं कुछ नजर नहीं आएगा, दुनिया समृद्ध से भी समृद्ध देश हो उसमें भी चुनौतियां होती है, उसकी चुनौतियां अलग प्रकार की होती है, हमारी अलग प्रकार की हैं। लेकिन तय हमें ये करना है कि हम समस्या का हिस्सा बनना चाहते हैं या हम समाधान का हिस्सा बनना चाहते हैं। बस ये पतली सी रेखा है अगर हम समस्या का हिस्सा बने तो राजनीति तो चल जाएगी लेकिन अगर हम समाधान का माध्यम बनते हैं तो राष्ट्रनीति को चार चांद लग जाते हैं। हमारा दायित्व है हमें वर्तमान पीढ़ी के लिए भी सोचना है, हमें भावी पीढ़ी के लिए भी सोचना है। समस्याएं हैं लेकिन मुझे विश्वास है कि हम साथ मिलकर के काम करेंगे, आत्मविश्वास से काम करेंगे तो हम स्थितियों से भी बदलेंगेऔर हम इच्छित परिणाम भी प्राप्त कर सकेंगे.. ये मेरा पक्का विश्वास है।
आदरणीय सभापति जी,
सदन में किसान आंदोलन की भरपूर चर्चा हुई है, ज्यादा से ज्यादा समय जो बाते बताई गईं वो आंदोलन के संबंध में बताई गईं। किस बात को लेकर आंदोलन है उस बात पर सब मौन रहे। आंदोलन कैसा है, आंदोलन के साथ क्या हो रहा है। ये सारी बाते बहुत बताई गई उसका भी महत्व है लेकिन जो मूलभूत बात है... अच्छा होता कि उसकी विस्तार से चर्चा होती। जैसे हमारे माननीय कृषि मंत्री जी ने बहुत ही अच्छे ढंग से सवाल जो पूछे हैं उन सवालों के जवाब तो नहीं मिलेंगे मुझे पता है लेकिन उन्होंने बहुत ही अच्छे ढंग से इस विषय की चर्चा की है। मैं आदरणीय देवगोड़ा जी का बहुत आभारी हूं उन्होंने इस पूरी चर्चा को एक गांभीर्य दिया और उन्होंने सरकार के जो अच्छे प्रयास हैं उसकी सराहना भी की है क्योंकि वो किसानों के लिए समर्पित रहे हैं जीवन भर और उन्होंने सरकार के प्रयासों के साथ सराहना भी किया और उन्होंने अच्छे सुझाव भी दिए। मैं आदरणीय देवगोड़ा जी का ह्दय से आभार व्यक्त करता हूं।
आदरणीय सभापति जी,
खेती की मूलभूत समस्या क्या है? उसकी जड़े कंहा हैं? मैं आज पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी ने जो विस्तार से जो बताया था उसी का जिक्र करना चाहता हूं... बहुत लोग हैं जो चौधरी चरण सिंह ही की विरासत संभालने का गर्व करते हैं वो जरूर इस बात का समझने का शायद प्रयास करेंगे। वो अक्सर 1971 जो एग्रीकल्चर से सेंसस हुआ था उसका जिक्र उनकी भाषा में जरूर आता था। चौधरी चरण सिंह जी ने क्या कहा था... उनका Quote है किसानों का सेंससलिया गया तो 33 प्रतिशत किसान ऐसे हैं जिनके पास जमीन 2 बीघे से कम है, 2 बीघे नहीं है, 2 बीघे तक है, 2 बीघे से कम है। 18 फीसदी जो किसान कहलाते हैं उनके पास 2 बीघे से 4 बीघे जमीन है यानी आधा हेक्टेयर से एक हेक्टेयर... ये 51 फीसदी किसान है ये चाहे कितनी मेहनत करे...अपनी थोड़ी सी जमीन पर इनकी गुजर ईमानदारी से हो नहीं सकती। ये चौधरी चरण सिंह जी का quoteहै। छोटे किसानों की दयनीय स्थिति चौधरी चरण सिंह जी के लिए हमेशा बहुत ही पीढ़ा देती थी। वह हमेशा उसकी चिंता करते थे। अब हम आगे देखेगें... ऐसा किसान जिनके पास एक हेक्टेयर से भी कम जमीन होती है। 1971 में वे 51 प्रतिशत थे आज 68 प्रतिशत हो चुके हैं। यानी देश में ऐसे किसानों की संख्या बढ़ रही है जिनके पास बहुत थोड़ी सी जमीन है आज लघु और सीमांत किसानों को मिलाएं तो 86 प्रतिशत से भी ज्यादा किसान के पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। और ऐसे किसानों की संख्या 12 करोड़ है। क्या इन 12 करोड़ किसानों के प्रति हमारी कोई जिम्मेवारी नहीं है, क्या देश की कोई जिम्मेवारी नहीं है। क्या हमने कभी हमारी योजनाओं के केंद्र में इन 12 करोड़ किसानों को रखना पड़ेगा कि नहीं रखना पड़ेगा। ये सवाल का जवाब चौधरी चरण सिंह जी हमारे लिए छोड़कर गए हैं... हमें जवाब को ढूंढना होगा हमें चौधरी चरण सिंह जी को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए भी इस काम के लिए जिसको जो सूझे.. जिसको जो मौका मिले सबको करना होगा तब जाकर हम कर सकते हैं।
अब पहले की सरकारों की सोच में छोटा किसान था क्या?अगर एक बार हम सोचेंगे तो ध्यान आएगा मैं आलोचना के लिए नहीं कह रहा हूं लेकिन हमनें सचमुच में.... हम सबको सोचने की आवश्यकता है। जब हम चुनाव आते ही एक कार्यक्रम करते हैं कर्जमाफी वो किसान का कार्यक्रम है... वोट का कार्यक्रम है वो तो हिन्दुस्तान हर कोई भली-भांति जानता है। लेकिन जब कर्जमाफी करते हैं...जब छोटा किसान उससे वंचित रहता है। उसके नसीब में कुछ नहीं आता है। क्योंकि कर्जमाफी... जो बैंक से लोन लेता है उसके लिए होता है.. छोटा किसान का बेचारे का बैंक में खाता नहीं... वो कहां लोन लेने जाएगा। हमनें छोटे किसान के लिए नहीं किया है... भले ही हमने राजनीति कर ली हो। एक दो एकड़ जमीन वाले किसान जिसके पास बैंक का खाता भी नहीं है ना वो कर्ज लेता है न कर्जमाफी का फायदा उसको मिलता है। उसी प्रकार से पहले की फसल बीमा योजना क्या थी... एक प्रकार से वो बीमा जो बैंक गारंटी के रूप में काम करता था। और वो भी छोटे किसान के लिए तो नसीब भी नहीं होता था। वो भी उन्हीं किसानों के लिए होता था जो बैंक से लोन होता था उसका इंश्योरेंस होता था बैंक वालों को भी विश्वास हो जाता था, काम चल जाता था।
आज 2 हेक्टेयर से कम कितने किसान होंगे जो बैंक से लोन लेंगे... सिंचाई की सुविधा भी छोटे किसान के नसीब में नहीं है, बड़े किसान तो बड़ा-बड़ा पंप लगा देते थे, ट्यूबवेल कर देते थे, बिजली भी ले लेते थे, और बिजली मुफ्त मिल जाती थी, उनका काम चल जाता था। छोटे किसान के लिए तो सिंचाई के लिए भी दिक्कत थी। वो तो ट्यूबवेल लगा ही नहीं सकता था कभी-कभी तो उसको बड़े किसान से पानी खरीदना पड़ता था और जो दाम मांगे वो दाम देना पड़ता था। यूरिया.... बड़े किसान को यूरिया प्राप्त करने में कोई प्राबल्म नहीं था। छोटा किसान को रात-रात लाइन में खड़ा रहना पड़ता था। उसमें डंडे चलते थे और कभी-कभी तो बेचारा यूरिया के बिना घर वापस लौट जाता था। हम छोटे किसानों के हाल जानते हैं... 2014 के बाद हमनें कुछ परिवर्तन किए, हमनें फसल बीमा योजना का दायरा बढ़ा दिया ताकि किसान...छोटा किसान भी उसका फायदा ले सके और बहुत मामली रकम से ये काम शुरू किया और पिछले 4-5 साल में फसल बीमा योजना के तहत 90 हजार करोड़ रुपये उसके क्लेम किसानों को मिले हैं। कर्जमाफी से भी आंकड़ा बड़ा हो जाता है जी।
फिर किसान क्रेडिट कार्ड देखिए। कार्ड हमारे यहां किसान क्रेडिट कार्ड हुए लेकिन बड़े किसानों तक गए और वो बैंक से बहुत ही काम ब्याज पर कुछ राज्यों में तो जीरो परसेंट ब्याज पर उनको मिल जाते थे पैसे और उनका कोई कोई धंधा व्यापार होता था पैसा वहां भी लग जाते थे। छोटे किसान के नसीब में ये नहीं था हमने तय किया हिन्दुस्तान के हर किसान को क्रेडिट कार्ड देंगें इतना ही नहीं हमने उनका दायरा fisherman तक भी बढ़ा दिया ताकि वो भी इसका फायदा उठा सके। और पौने दो करोड़ से ज्यादा किसानों तक ये किसान क्रेडिट कार्ड का फ़ायदा पहुंच चुका है और बाकी भी राज्यों से आग्रह कर रहे हैं कि लगातार उसको आगे बढ़ाए ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इसका लाभ उठा सके। और राज्यों की मदद जितनी ज्यादा मिलेगी उतना ज्यादा ही काम हो जाएगा। उसी प्रकार से हम एक योजना ले आए... प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना। इसके माध्यम से रक़म सीधे किसान के खाते में. जाती है। और ये गरीब किसान के पास जिसके पास कभी इस प्रकार की मदद नहीं पहुंची है। दस करोड़ ऐसे परिवार हैं जिनको इसका लाभ मिल चुका है।
अगर बंगाल में राजनीति आड़े न आती तो बंगाल के किसान भी अगर जुड़ गए होते तो ये आंकड़ा उससे भी ज्यादा होता और अब तक 1 लाख 15 हजार करोड़ रुपया इन किसानों के खाते में गया होता। ये गरीब छोटे किसान है उनके पास गया। हमारी सभी योजनाओं के केंद्र बिंदु soil health card हमनें 100 प्रतिशत soil health card की बात कहीताकि हमारे छोटे किसान को उसकी जमीन कैसी है, कौन सी उपज के लिए है। हमनें 100 प्रतिशत soil health card के लिए काम किया उसी प्रकार से हमने यूरिया का neem coated urea 100 प्रतिशत दिया।100 प्रतिशत के पीछे इरादा हमारा यही था किगरीब से गरीब किसान तक भी यूरिया पहुंचने में रूकावट न हो यूरिया divert होता बंद हो और उसमें हम समझते हुए छोटे और सीमांत किसानों के लिए पहली बार पेंशन की सुविधा की योजना लेकर के आए और मैं देख रहा हूं कि धीरे-धीरे हमारे छोटे किसान भी आ रहे हैं। उसी प्रकार से प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना.... प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ये सिर्फ एक रोड नहीं है ये किसानों कीगांव की जिंदगी को बदलने का एक बहुत बड़ा यश रेखा होती है। और हमने उस पर भी बल दिया पहली बार हमनें किसान रेल की कल्पना की छोटा किसान का माल बिकता नहीं था आज किसान रेल के कारण गांव का किसान रेलवे के माध्यम से मुबंई के बाजार में अपना माल बेचने लगा, फल और सब्जी बेचने लगा है। उसका लाभ हो रहा है। छोटे किसान को फायदा हो रहा है। किसान उड़ान योजना.... किसान उड़ान योजना के द्वारा हवाई जहाज से जैसे हमारे north east इतनी बढि़या-बढि़या चीजें लेकिन ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम के अभाव में वहां का किसान हमारा benefit नहीं ले पाता था। आज उसको किसान उड़ान योजना का लाभ मिल रहा है। छोटे किसानों की परेशानियों से हर कोई परिचित है... समय-समय पर उनके सशक्तिकरण की मांग भी उठी है।
हमारे आदरणीय शरद पवार जी और कांग्रेस के भी हर किसी ने... हर सरकार ने कृषि सुधारों की वकालत की है। कोई पीछे नहीं है क्योंकि हर एक को लगता है कि कर पाए न पाए ये अलग बात है। लेकिन ये होना चाहिए, ये बात हर एक की निकली हुई है और ये आज नहीं जब भी जो जहां थे सबने की हुई है। और शरद पवार जी ने तो एक बयान भी दिया कि मैं सुधारों के पक्ष में हूं ठीक है पद्धति के संबंध में उनके मन में सवाल है लेकिन सुधारों का विरोध नहीं किया है। और इसलिए मैं समझता हूं कि हमें इस विषय में हमारे साथी श्रीमान सिंधिया जी ने बहुत ही अच्छे ढंग से कई पहलुओं पर इस कानून को लेकर यहां पर....ये सारी बाते पिछले दो दशक से लगातार चल रही हैं ऐसा नहीं है कि कोई हमारे आने के बाद ही चली। हर ने कहा है और हर एक ने कहा है कि अब समय आ गया है हो जाएगा। अब समय आ गया है ये ठीक है. कि कोई कॉमा फुलस्टोप अलग हो सकते लेकिन कोई ये दावा नहीं कर सकता है कि भई हमारे समय की बहुत ही बढि़या थी, मैं भी दावा नहीं कर सकता हूं कि हमारी समय की सोच ही बहुत बढि़या है दस साल के बाद कोई सोच आ ही नहीं सकती। ऐसा नहीं होता है ये समाज जीवन परिवर्तनशील होता है।
आज के समय जो हमे ठीक लगा चलो चले वहां भी सुधार करगें... नई चीजों को जोड़ेगें ये तो प्रगति का रास्ता होता है जी... रूकावटें डालने से प्रगति कहां होती है जी... और इसलिए लेकिन मैं हैरान हूं अचानक यूटर्न ले लिया ऐसा क्या हो गया ठीक है अब आंदोलन के मुद्दे को लेकर के इस सरकार को घेर लेते हैं लेकिन साथ-साथ किसानों को भी कहते हैं कि भाई बदलाव बहुत जरूरी है बहुत साल हो गए अब नई चीजों को लेना पड़ेगा। तो देश आगे बढ़ता है लेकिन अब मुझे लगता है कि राजनीति इतनी हावी हो जाती है कि अपने ही विचार छूट जाते हैं। लेकिन ये जो सब कर रहे हैं अच्छा है आदरणीय डॉक्टर मनमोहन सिंह जी यहां मौजूद हैं मैं उन्ही का एक quote आज पढ़ना चाहता हूं। हो सकता है जो यूटर्न कर रहे हैं मेरी बात माने या न माने मनमोहन सिंह जी की बात तो जरूरत मानेंगे there are other rigidities because of the whole marketing regime setup in the 1930’s which prevent our farmers from selling their produce where they get the highest rate of return. It is our intention to remove.... It is our intention to remove all those handicaps which come in the way of India realizingits vast potential as one large common market. ये आदरणीय मनमोहन सिंह जी का कोट है। आदरणीय मनमोहन सिंह जी ने किसान को उपज बेचने की आजादी दिलाने, भारत को एक कृषि बाजार दिलाने के संबंध में अपना इरादा व्यक्त किया था। और वो काम हम कर रहे हैं। और आप लोगों को गर्व होना चाहिए... देखिए... आदरणीय मनमोहन सिंह जी ने कहा था... वो मोदी को करना पड़ रहा है। अरे गर्व कीजिए.... और मजा ये है कि जो लोग political बयानबाजी करते हैं उछल-उछलकरके उनके राज्यों में भी जब उनको मौका मिला है इसी में से आधा-अधूरा कुछ न कुछ किया ही किया है। हर किसी ने यहां जो विरोध में दल है उनकी भी जहां सरकारें हैं वहां आधा-अधूरा कुछ न कुछ तो किया ही है। कि उनको भी ये मालूम है कि रास्ता तो यही है। और मैंने देखा इस चर्चा में लॉ का जो स्पिरिट है उसपर चर्चा नहीं हुई है शिकायत यही है तरीका ठीक नहीं था, इसको जल्दी कर दिया वो तो जब परिवार में शादी होती है तो भी फूफी नाराज होकर कहती है कि मुझे कहां बुलाया था, वो तो रहता है। इतना बड़ा परिवार है तो रहता ही है।
हम कुछ बातों की और भी ध्यान दें अब देखिए... दूध उत्पादन... किन्हीं बंधनों में बंधा हुआ नहीं है। ना पशुपालक बंधनों में बंध हुआ है ना दूध बंधनों में बंधा हुआ है लेकिन मजा देखिए.. दूध के क्षेत्र में या तो प्राइवेट या को-ऑपरेटिव दोनों ने एक ऐसी मिलकर मजबूत चेन बनाई है दोनों मिलकर के इस काम को कर रहे हैं। और एक बेहतरीन सप्लाई चेन हमारे देश में बनी है। इसको हमने और जो अच्छा है उसकों हमने.....और ये मेरे काल में नहीं बना है। आप इस पर गर्व कर सकते हैं मेरे काम से पहले बना हुआ है। हमें गर्व करना चाहिए। फल सब्जी से जुड़े व्यवसाय में ज्यादातर बाजारों को सीधा संपर्क रहता है बाजारों में दखल हट गई है, इसका लाभ मिल रहा है। क्या डेयरी वाले सफल सब्जी खरीदने वाले उद्यमी, पशुपालको या किसान की जमीन पर कब्जा हो जाता है उन के पशुओं पर कब्जा हो जाता है, नहीं होता है। दूध बिकता है, पशु नहीं बिकता है जी, हमारे देश में डेयरी उद्योग का योगदान है, कृषि अर्थव्यवस्था के कुल मूल्य में 28 प्रतिशत से भी ज्यादा है। यानी इतना बड़ा हम एग्रीकल्चर की चर्चाएं करते हैं, इस पहलू को हम भूल जाते हैं। 28 प्रतिशत contribution है। और करीब-करीब आठ लाख करोड़ों रुपयों का कारोबार है। जितने रुपये का दूध होता है उसका मूल्य अनाज और दाल दोनों मिला दें तो उसका ज्यादा है। हम कभी इस subject पर देखते ही नहीं हैं। पशुपालकों को पूरी आजादी, अनाज और दाल पैदा करने वाले छोटे और सीमांत किसानों को.... जैसे पशुपालक को आजादी मिली है, इनको आजादी क्यों नहीं मिलनी चाहिए? अब इन सवालों के जवाब हम ढूंढेगे तो हम सही रास्ते पर चलेगें।
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