विशेष: विश्व शांति के लिए बमों की बजाय समन्वयक विचारों पर बल देने की ज्यादा जरूरत
विशेष में प्रस्तुत है,
प्रियंका सौरभ, रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस तथा कवित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार द्वारा प्रस्तुत लेख_
विश्व शांति के लिए बमों की बजाय समन्वयक विचारों पर बल देने की ज्यादा जरूरत:
(क्षेत्रीय परमाणु चुनौतियों के साथ-साथ साइबर सुरक्षा, आर्टिफ़िशियल इंटैलीजेंस और अगली पीढ़ी के हाइपरसोनिक हथियारों से पैदा हो रहे ख़तरों को भी समझा जाय।)
विश्व शांति के लिए बमों की बजाय समन्वयक विचारों पर बल देने की ज्यादा जरूरत है। पूरी दुनिया में आज आज ऐसे-ऐसे हथियार मौजूद है जो पालक झपकते ही इनको खत्म कर सकते है। यही नहीं दुनिया को भी सैंकड़ों बार खत्म कर सकते है। आज अधिकांश सदस्य देश इनजनसंहार के हथियारों का ख़ात्मा चाहते हैं लेकिन फिर भी निरस्त्रीकरण सम्मेलनों में पिछले दो दशकों से इस पर बातचीत नहीं हुई है। इसके चलते हथियारों पर नियंत्रण के मुद्दों पर वार्ता हो रही है। इसके अलावा हथियारों के क्षेत्र में नई तकनीकें इन जोखिमों को ऐसे बढ़ा रही हैं, जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
परमाणु हथियारों ने मानव सृष्टि को जितना नुकसान पहुँचाया है, शायद उतना किसी अन्य ने नहीं। इसके बावजूद आज भी दुनिया में अपने वजूद को मजबूत करने और अस्तित्व को बनाये रखने के लिए इस विनाशक हथियार को अपनी ढाल बांये हुए है। कहीं ऐसा न हो कि ये वजूद ही दुनिया के वजूद को जमींदोज न कर दे। अमेरिका ने जापानी शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर 6 और 9 अगस्त, 1945 को दो परमाणु हथियारों का विस्फोट किया। 1945 के बाद से, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ / रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, चीन, इजरायल, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया ने खुद को परमाणु हथियारों से लैस किया है, जिनके पास अतीत में हिरोशिमा और नागासाकी को नष्ट करने वालों की तुलना में बहुत अधिक विनाशकारी शक्ति है।
ग्लोबल एंड ह्यूमन सिक्योरिटी इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल इश्यूज, ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के निदेशक ऍम वी रमन के अनुसार दुनिया भर में परमाणु युग की शुरुआत के बाद से 1,26,000 से अधिक परमाणु हथियार बनाए गए हैं। उनमें से 2,000 से अधिक का उपयोग केवल परमाणु परीक्षणों में किया गया है, जमीन के ऊपर और नीचे, अपनी विस्फोटक शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए, जिससे पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को गंभीर और लंबे समय तक नुकसान होता है। अगर कुछ मौजूदा हथियारों का उपयोग नागरिक आबादी के खिलाफ किया जाता है तो धरती पर कुछ नहीं बचेगा।
हथियारों पर नियंत्रण के लिए बने अंतरराष्ट्रीय मंचकमज़ोर हो रहे हैं। दुनिया में बिना सज़ा के डर के रासायनिक हथियारों का लगातार इस्तेमाल हो रहा है, जिससे उनका प्रसार भी तेज हो रहा है। अवैध छोटे हथियारों और विस्फोटकों का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे दुनिया भर में हज़ारों आम लोगों की जानें जा रही हैं।
हमें यह समझना शुरू करना चाहिए कि, परमाणु हथियारों के खिलाफ खुद को बचाने के लिए कोई वास्तविक तरीका नहीं है, चाहे वे जानबूझकर, अनजाने में, या गलती से उपयोग किए जाएं। 1950 के दशक के अंत में बैलिस्टिक मिसाइलों के आविष्कार ने उनकी शानदार गति के साथ, एक बार लॉन्च होने के बाद परमाणु हथियारों को रोकना असंभव बना दिया। इस भेद्यता को नकारने में न तो फॉलआउट शेल्टर और न ही बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम सफल हुए हैं।
परमाणु हथियार वाले राज्यों ने इस भेद्यता पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है जो एक तर्क है कि परमाणु हथियारों का उपयोग निरोध के कारण असंभव है। परमाणु हथियार इतने विनाशकारी हैं कि कोई भी देश उनका उपयोग नहीं करेगा, क्योंकि इस तरह के उपयोग से प्रतिशोध की भावना पैदा होगी, और कोई भी राजनीतिक नेता अपने लाखों नागरिकों की संभावित मौत का जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं होगा।
परमाणु हथियार केवल दूसरों द्वारा परमाणु हथियारों के उपयोग के खिलाफ देशों की रक्षा नहीं करते हैं, बल्कि युद्ध को भी रोकते हैं और स्थिरता को बढ़ावा देते हैं। ये दावे सबूत तक नहीं हैं। परमाणु खतरों ने हमेशा डर पैदा नहीं किया है और बदले में, डर ने हमेशा सावधानी नहीं बरती है। इसके विपरीत, कुछ मामलों में परमाणु खतरों ने क्रोध पैदा किया है, और क्रोध एक क्रोध को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकता है, जैसा कि क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान फिदेल कास्त्रो के साथ हुआ था।
न ही परमाणु निरोध को स्थिर माना जाना चाहिए। परमाणु हथियारों को प्राप्त करने के लिए नए देशों के लिए एक तर्क पेश करते हैं। स्पष्ट रूप से, हालांकि, सभी परमाणु हथियार राज्यों ने इस संभावना को स्वीकार किया है कि निरोध विफल हो सकता है: उन्होंने परमाणु हथियारों का उपयोग करने की योजना बनाई है, वास्तव में, वो परमाणु युद्ध लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। यह सोचना एक भ्रम है कि परमाणु युद्ध असंभव है।
परमाणु हथियारों की सही नियंत्रणीयता और सुरक्षा में विश्वास करने की इच्छा अति आत्मविश्वास पैदा करती है, जो खतरनाक है। अति आत्मविश्वास, क्योंकि सुरक्षा का अध्ययन करने वाले कई विद्वान गवाही देंगे, दुर्घटनाओं की संभावना और संभवतः परमाणु हथियारों के उपयोग की संभावना है।कई ऐतिहासिक उदाहरणों में, परमाणु हथियारों के उपयोग को रोकने वाली प्रथाओं पर नियंत्रण नहीं था, लेकिन संस्थागत नियंत्रण के बाहर उनकी विफलता या कारक थे। इन मामलों में सबसे प्रसिद्ध 1962 क्यूबा मिसाइल संकट है। ऐसे कई और मामले हैं, जिनके दौरान दुनिया परमाणु युद्ध के करीब आई।
वैसे परमाणु हथियारों की दौड़ नयी नहीं है। 1950 के दशक से ही परमाणु हथियारों की दौड़ दिखाई दे रही थी। नवीन परमाणु परीक्षण प्रतिद्वंद्विता नए परमाणु हथियारों की नवीन दौड़ की शुरुआतविष शांति की अप्रांसगिकता की ओर संकेत करता है। वर्तमान तनाव के समय में देशों को ठोस कदमों के बारे में जानकारी ,पारदर्शिता और विश्वास बढ़ाने वाले कदमों के माध्यम से आगे बढ़ना चाहिए. ऐसे कदम उठाते समय क्षेत्रीय परमाणु चुनौतियों के साथ-साथ साइबर सुरक्षा, आर्टिफ़िशियल इंटैलीजेंस और अगली पीढ़ी के हाइपरसोनिक हथियारों से पैदा हो रहे ख़तरों को भी समझा जाए।
----प्रियंका सौरभ
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