COVID-19: (सोशल मीडिया से): ऐसी मन की बात किस काम की जो देश को ले डूबे!
"सरकार" के जो भी अतिसुन्दर और मनभावन दावे हों लेकिन उनकी पोल खोलती ये "बोलती तश्वीरें", "गरीबों और मजबूरों के मन की बात" कह रही हैं जिसे अगर सत्ता और सत्ता में बैठे लोग महसूस कर लेते तो भारत की तश्वीर अवश्य बदल जाती।
परमादरणीय रघु ठाकुर और बाबूलाल दहिया का मैं दिल से आभारी हूँ जिन्होंने सोशल मीडिया का सदुपयोग कर गरीबों के मन की बात सत्ताधीशों तक पहुंचाने का कार्य किया है।
ये बोलती तश्वीरें कह रही हैं कि जो सत्ताधीश प्रतिदिन आंकड़ों के खेल से गरीबों और मजबूरों के आंसू पोछने का भद्दा ड्रामा करते प्रतीत हो रहे हैं, उनसे आग्रह है कि, हमारे भी "मन कि बात" सुनो, भारत बदल जाएगा।
आज़ सोशल मीडिया के इस पोस्ट को मूल में निचे प्रस्तुत करते हुए आशा करता हूँ कि, गरीबों और मजबूरों के "मन की बात" सत्ता और सत्ताधीश अवश्य महसूस कर उचित कदम उठाने का प्रयास करेंगे।
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-:संपादक:-
मित्रो,
फौज या किसी भी सैनिक बल का एक फार्मूला होता है कि, युद्ध / मोर्चे में अगर कोई एक ब्यक्ति गलती करता है तो अपनी जान से हाथ धो बैठता है।
यदि प्लाटून कमांडर गलती कर जाय तो 25 सैनिको की जान जा सकती है।
किन्तु अगर कम्पनी कमांडर ही अनुभव हीन हो और दूर तक परिणाम समझने की क्षमता न रखता हो तो उसका खामियाजा 1000 जवानों को भुगतना पड़ता है।
लेकिन, कमो-बेस यही सिद्धांत देश के शीर्ष में बैठे ब्यक्ति पर भी लागू होता है जिसे आज देश भोग ही रहा है कि, एक शीर्ष ब्यक्ति का बिना पूर्व योजना के लिया गया निर्णय और सिर्फ 4 घण्टे बाद सब कुछ बन्द कितना घातक सिद्ध हुआ है।
भला बताइए कि, जो श्रम शक्ति देश के निर्माण में लगी थी, वह अब हजारो किलो मीटर सड़क नापने में लग रही है।
उधर साथ मे जो कोरोना की खेप गाँव मे ला रही है, वह अलग।
पर अगर लॉक डाउन के 10 दिन पहले देश को विश्वास में लेकर यह बता दिया जाता कि, आगामी 24 मार्च से रेल और बस-सेवा ठप्प हो जाएगी, तो आने वाले श्रमिक 10 दिन पहले ही ट्रेन और बस से अपने-अपने घर पहुँच जाते। तब शायद यह कोरोना भी गाँव न आता जो, आज 45 दिन बाद पैदल लोगो के साथ आ रहा है।
आज एक ब्यक्ति की अदूरदर्शिता गाँव के लिए कितनी घातक हो रही है कि, एक तरफ तो भूखे प्यासे हजारो किलो मीटर की यात्राएं पुलिस का डंडा और साथ मे कोरोना महराज भी।
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