विशेष: राष्ट्र के विकास की आधारशिला है नारी सशक्तिकरण
"राष्ट्र का गौरव है नारी सशक्तिकरण"
विशेष में प्रस्तुत है:
नारी सशक्तिकरण पर विशेष प्रस्तुति - "राष्ट्र के विकास की आधारशिला है नारी सशक्तिकरण"
लेखिका हैं- "अमिता सिंह, 'शोध छात्रा (एजुकेशन)', प्रथम सेमेस्टर, एजुकेशन डिपार्टमेंट (शुएट्स), नैनी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)"
राष्ट्र का अभिमान है - "नारी" , राष्ट्र की शान है- "नारी"
भारतीय परिवेश व परिधान की शोभा है- "नारी" , नर से नारायण की कहावत को चरितार्थ करती है- "नारी"
मानवता की मिशाल है- "नारी"
महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य है समाज में महिलाओं के वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना अर्थात महिलाओं का शक्तिशाली होना। महिलाएं शक्तिशाली होंगी तो वह अपने जीवन से जुड़े प्रत्येक फैसले स्वयं ले सकती है। ऐसी महिलाएं परिवार और समाज को विकास की राह पर ले जाती हैं। महिलाओं को दिए गए अधिकार महिला सशक्तिकरण का आधार है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार महिलाओं के विकास में निरंतर अग्रसर है।
महिलाओं को दिए गए अधिकार जो प्रत्येक महिला को शक्तिशाली बनाते हैं, वे इस प्रकार हैं:
समान वेतन का अधिकार। समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता।
कार्य-स्थल में उत्पीड़न के खिलाफ कानून - यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत, महिलाओं को वर्किंग प्लेस पर हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का पूरा हक है।
केंद्र सरकार ने भी महिला कर्मचारियों के लिए नए नियम लागू किए हैं, जिसके तहत वर्किंग प्लेस पर यौन शोषण के शिकायत दर्ज होने पर महिलाओं को जांच लंबित रहने तक 90 दिन का पेड लीव दी जाएगी।
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार - भारत के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह एक महिला को उसके मूल अधिकार "जीने के अधिकार" का अनुभव करने दें। गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पी सी पी एन डी टी) अधिनियम, 1994 भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिएmभारत की संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है।
इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक "सी पी एन डी टी" एक्ट 1996, के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है।ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले डाक्टर, लैब कर्मी को तीन से पांच साल सजा और 10 से 50 हजार जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
संपत्ति पर अधिकार, हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है। गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार - किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है तो उस पर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की उपस्थिति में ही की जानी चाहिए।
संस्कृत में एक श्लोक है- "यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता" अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। अधिकतर धर्मों में नारी सशक्तिकरण का उदाहरण देखने को मिलता है जैसे हिन्दू धर्म में वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान करते हैं। वेदों में स्त्रियों की शिक्षा-दीक्षा, शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का सुन्दर वर्णन पाया जाता है। वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं और देश की शासक, पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं। वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय।
वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली, सुख - समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली, देवी, विदुषी, सरस्वती, इन्द्राणी, उषा, जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं। वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है। उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है। वैदिक काल में नारी अध्यन, अध्यापन से लेकर रण-क्षेत्र में भी जाती थी। जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी। कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं।अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं। अपाला, घोषा, सरस्वती, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति। दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी आदि।
वेदों में नारी के स्वरुप की झलक इन मंत्रों में देखें जा सकते हैं:
यजुर्वेद 20:09 (स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है)। यजुर्वेद 17:45 (स्त्रियों की भी सेना हो। स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें)। यजुर्वेद 10:26 (शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें। जैसे राजा, लोगों का न्याय करते हैं, वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों)।
अथर्ववेद 11:05:18 9ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है। यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है)। कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से
पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें। अथर्ववेद 14:01:06 (माता - पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और विद्याबल का उपहार दें। वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें)।
जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने/ कराने वाली हो, तब सुयोग्य पति से विवाह करे।
ऋग्वेद 10.85.7 (माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और विद्याबल उपहार में दें। माता- पिता को चाहिए कि वे अपनी कन्या को दहेज़ भी दें तो वह ज्ञान का दहेज़ हो)। ऋग्वेद ३ण्३१ण्१ (पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है)।
बाइबिल में भी महिलाओं के सम्मान का विवरण मिलता है। (कुलुस्सियों 1:15) यीशु जब इस धरती पर थे तब वह स्त्रियों के साथ जिस तरह पेश आए, उससे पता चलता है कि यहोवा और यीशु दोनों, स्त्रियों की बहुत इज़्ज़त करते हैं। साथ ही, उन्हें यह कतई पसंद नहीं कि स्त्रियों पर ज़ुल्म ढाए जाएँ, जैसे कि आज बहुत से देशों में किया जाता है।
बाइबिल में एक और वर्णन मिलता है जो स्त्रियों के सम्मान को दर्शाता है। एक ऐसी स्त्री यीशु के पास आयी, जिसे 12 साल से लहू बहने की बीमारी थी। इस बीमारी की वजह से वह न सिर्फ धीरे-धीरे कमज़ोर होती जा रही थी, बल्कि उसे काफी शर्मिंदगी से भी गुज़रना पड़ रहा था। जब उस स्त्री ने यीशु को छुआ, तब वह फौरन ठीक हो गयी। 'यीशु ने फिरकर उसे देखा, और कहा- पुत्री ढाढ़स बान्ध, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।। (मत्ती 9:22)। दरअसल मूसा की कानून-व्यवस्था के मुताबिक, इस हालत में एक स्त्री का दूसरों को छूना तो दूर, उसे उस भीड़ में होना भी नहीं चाहिए था। फिर भी, यीशु उस पर झल्ला, नहीं बल्कि उसे करुणा दिखायी, उसे दिलासा दिया और प्यार से उसे 'पुत्री' कहा। यह शब्द सुनकर उस स्त्री को कितनी राहत मिली होगी! यही नहीं, उसे चंगा करने में यीशु को भी कितनी खुशी हुई होगी! जब यीशु को मरे हुओं में से जिलाया गया, तो वह सबसे पहले मरियम मगदलीनी और उस स्त्री के सामने प्रकट हुआ, जिसे बाइबल 'दूसरी मरियम' कहती है।
यीशु अगर चाहता तो पहले पतरस, यूहन्ना या किसी और पुरुष, चेले के सामने प्रकट हो सकते थे । मगर नहीं, उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने अपने जिलाए जाने का पहला चश्मदीद गवाह होने का सम्मान स्त्रियों को दिया। एक स्वर्गदूत ने उन स्त्रियों को हिदायत दी कि वे यीशु के पुरुष- चेलों के पास जाकर उन्हें इस हैरतअँगेज़ घटना के बारे में बताएँ। यीशु ने भी उन स्त्रियों से कहा: 'जाओ', मेरे भाइयों को खबर दो। (किताब।ए।मुकद्दस) ; मत्ती 28:1, 5-10), इससे साफ ज़ाहिर होता है कि यीशु अपने ज़माने के यहूदियों की तरह, स्त्रियों के साथ भेदभाव नहीं करते थे और ना ही वह उनकी तरह सोचते थे कि स्त्रियाँ, कानूनी गवाह नहीं बन सकतीं।
देवी अहिल्याबाई होलकर, मदर टेरेसा, इला भट्ट, महादेवी वर्मा, राजकुमारी अमृत कौर, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन।वचन व कर्म से सारे जग।संसार में अपना नाम रोशन किया था । कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़ संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया था। उन्हें लौह महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता, पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें 'चतुर महिला' तक कहते थे, क्योंकि इंदिरा जी राजनीति के साथ वाक्चातुर्य में भी माहिर थीं।
किसी ने क्या खूब कहा है। हर सफल इंसान के पीछे एक महिला का हाथ होता है, इसी प्रकार राष्ट्र निर्माण में एक नहीं बल्कि सैकड़ों महिला वैज्ञानिकों का सहयोग होता है। महिलाएं सशक्त होंगी तभी देश बनेगा महाशक्ति।
अंत में हमे यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलना, भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले कम बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए, कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है। अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।
अतएव हम कह सकते हैं की राष्ट्र के विकास की आधारशिला है नारी सशक्तिकरण- "राष्ट्र का गौरव है नारी सशक्तिकरण"।
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