ओजोन परत है पर्यावरण संरक्षण का मूल
प्रयागराज: पृथ्वी की रक्षा के लिए वायुमंडलीय सतह पर एक परत होती है। यह परत पराबैंगनी किरणों से हमारी व हमारे पर्यावरण की रक्षा करती है, जिसे ओजोन परत कहते हैं। वायुमंडल के ऊपरी सतह पर पराबैंगनी किरणों के प्रभाव में ऑक्सीजन विभाजन एटमो में होने लगा। तत्पश्चात एटमो ने मिलकर ओजोन का रूप धारण कर समताप मंडल में सांद्रित होकर ओजोन परत का निर्माण किया।
पृथ्वी की बाहरी सतह मुख्यतः चार वर्गो में विभक्त है:
1. लिथोस्फीयर (पृथ्वी का आवरण)
2. हाइड्रो स्फीयर (समुद्र, नदियाँ और झीलें)
3. एटमास्फीयर (पृथ्वी का आवरण)
4. बायोस्फियर (यह तीनों का समावेश है)।
आरम्भ में जब पृथ्वी का उदभव हुआ तो ऑक्सीजन गैस नहीं थी। ज्वालामुखियों के निरंतर टूटते -फूटते रहने से सम्पूर्ण वायुमंडल कार्बन डाई ऑक्साइड व मीथेन से भरपूर था। कुछ समय बाद समुद्रों के भीतर जीवन का उदभव हुआ जो कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित कर ऑक्सीजन का प्रजनन करने लगे। इस ऑक्सीजन ने पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल की ओर एकत्र होना शुरू कर दिया जहां पराबैगनी किरणों के प्रभाव में ऑक्सीजन का विभाजन एटमो में होने लगा। तत्पश्चात एटमो ने मिलकर ओजोन का रूप धारण कर समताप मंडल में सांद्रित होकर ओजोन परत का निर्माण किया। ओजोन परत, पृथ्वी को पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों से बचाने में एक छलनी समान, सुरक्षा कवच का काम करती है। ओजोन में ऑक्सीजन के तीन एटम बाउंड होते हैं। ओजोन एक रंग विहीन तथा तीखी गंध वाली गैस होती है।
ओजोन परत पृथ्वी के ऊपर सोलह से पचास किलोमीटर (अर्थात 34 किलोमीटर मोती परत) ऊंचाई पर स्थित है। ओजोन का निर्माण सौर विकिरण द्वारा लगातार होता रहता है, जिसका स्तर 300 मिलियन टन प्रतिदिन है। और इतनी ही मात्रा में यह प्राकृतिक रूप से नष्ट भी होती रहती है। ओजोन परत के कारण समताप मंडल (स्ट्रैटोस्फियर) का तापमान ट्रोपोस्फियर (क्षोभ मंडल) की अपेक्षाकृत अत्यधिक होता है। ओजोन परत पराबैंगनी किरणों को शोषित करता है और विकिरण के हानिकारक प्रभाव से पृथ्वी के सम्पूर्ण जीवन की रक्षा करता है।
पराबैंगनी किरणों के अवशोषण के कारण ओजोन परत समताप मंडल को गर्म करता है। ओजोन की मोती परत (34 किलोमीटर) से पराबैंगनी किरणें छन कर ट्रोपोस्फियर (क्षोभ मंडल) में प्रवेश करती हैं। ओजोन परत सबस्क्रीन की भांति काम करती है और खतरनाक पराबैंगनी बी सौर तरंगों के बड़े भाग को क्षोभ मंडल में प्रवेश करने से रोकती है। पराबैंगनी बी का वह क्षीण प्रवाह जो भू सतह के वायुमंडल तक पंहुचता है, त्वचा कैंसर एमोतियाबिंद आदि बीमारियां फैलाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं यदि समताप मंडल में ओजोन का निर्माण न हुआ होता तो आधुनिक समय में जीवन स्वरूपों का उदभव शायद ही संभव होता। ओजोन की कमी से पराबैंगनी बी का क्षोभ मंडल में अत्यधिक मात्रा में होना मानव पर ही नहीं अपितु पेड़ -पौधों पर भी प्रभाव डालते हैं। पौधों में स्टोमेटा के द्वारा ओजोन प्रवेश कर जाती है। यह पत्तियों को हानि पंहुचाती है जिससे पौधों की उत्पादन क्षमता में कमी और उनकी गुणवत्ता घटती है। कैलिफोर्निआ (USA) में फ्रूट और वेजिटेबल की उत्पादन क्षमता में ओजोन प्रदुषण के कारण कमी आ चुकी है। ऑक्सीकारक प्रदूषण के कारण अंगूर का भी अधिक उत्पादन नहीं हो पा रहा है। ओजोन और अन्य ऑक्सीकारक जैसे ऑक्सी एसीटाइल नाइट्रेट और हाइड्रोजन पर ऑक्साइड का निर्माण एनाइट्रस ऑक्साइड व हाइड्रोकार्बन के बीच हलकी स्वतंत्र क्रिया द्धारा होता है। ओजोन में कमी का मुख्य कारक है "क्लोरीन गैस"। क्लोरीन भारी होने के कारण स्ट्रैटोस्फियर की ऊंचाई तक नहीं पंहुच पाती जहां ओजोन परत विद्यमान है। घरेलु एवं सामूहिक रसायनों से उत्पन्न क्लोरीन गैस निचले वायुमंडल में विघटित हो वर्षा में बह जाती है। कई ऐसे स्थाई और हलके रसायन भी हैं जो वाष्पशील स्वभाव के होते हैं एवं विघटित होकर क्लोरीन का निर्माण करते हैं।
इन्हे ओजोन डिप्लीटिंग सब्स्टेंस (ओ• डी• एस•) कहते हैं। क्लोरो फ्लोरो कार्बन, कार्बन टेट्रा क्लोराइड आदि कुछ ऐसे ओजोन डिप्लीटिंग सब्स्टेंस हैं जिनमे क्लोरीन होती है। क्लोरो फ्लोरो कार्बन सर्वाधिक विनाशकारी सिद्ध हुई। एक क्लोरीन एटम लगभग 100,000 ओजोन मॉलिक्यूल्स को तोड़ कर वहां से हटा देता है। ग्रीन हाउस गैस के लगातार वृद्धि से भी ओजोन मात्रा घटती है। ग्रीन हाउस गैस प्रजनन के लिए उत्तरदायी स्रोत . लकड़ी के दहन से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन, पशु, मानव विष्टा एवं जैव सड़ाव से मीथेन उत्सर्जन और हाइड्रोकार्बन एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड के प्रभाव में ट्रोपोस्फियर के भीतर मीथेन गैस का निर्माण। यदि ग्रीन हाउस गैस विद्यमान न होती तो पृथ्वी का वर्तमान तापमान 330 डिग्री सेल्सियस काम होता। अतएव पृथ्वी पर जीवन लायक तापमान बनाने में इन गैसों की उपस्थिति आवश्यक है। लम्बी तरंग धैर्य विकिरण का कुछ भाग वायुमंडल के ऊपरी ठन्डे भाग में उपस्थित ट्रेस गैसों द्धारा अवशोषित हो जाता है। इन्ही ट्रेस गैसों को ग्रीन हाउस गैस कहते हैं।
(लेखक- डॉ शंकर सुवन सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर एंड प्रॉक्टर, वार्नर कॉलेज ऑफ़ डेयरी टेक्नोलॉजी, सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, नैनी, प्रयागराज/ इलाहाबाद)।
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