भारतीय संस्कृति राष्ट्र के विकास की आधारशिला है: डाॅ• शंकर सुवन सिंह
प्रयागराज: मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है। अन्य प्राणियों की मानसिक शक्ति की अपेक्षा मनुष्य की मानसिक शक्ति अत्यधिक विकसित है। मनुष्य के पास प्रचुर मात्रा में ज्ञान होता है। इस ज्ञान का उपयोग जीवन को सफल बनाने में लगाना चाहिए।
सफल जीवन के चार सूत्र हैं:
जिज्ञासा, धैर्य, नेतृत्व की क्षमता और एकाग्रता।
जिज्ञासा का मतलब जानने की इक्षा, धैर्य का मतलब- विषम परिस्थितयों में अपने को सम्हाले रहना। नेतृत्व की क्षमता का मतलब जनसमूह को अपने कार्यों से आकर्षित करना। एकाग्रता (एक़अग्रता) का अर्थ है एक ही चीज पर ध्यान केन्द्रित करना। तप और ब्रह्मचर्य से अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण पाया जाता है। तभी मनुष्य का जीवन सफल हो सकता है। एक सफल व्यक्ति ही देश की सेवा कर सकता है। मनुष्य कौन है। मनुष्य का तात्पर्य "मनुष्य वह है जो इस संसार को धर्मशाला समझे और अपने आपको उसमे ठहरा हुआ यात्री। साहित्य, संगीत व कला तीन स्तम्भ हैं। जिस पर ज्ञान रूपी माकन खड़ा है। मकान और स्तम्भ दोनों का आधार गुरु है। कहने का अर्थ बिना गुरु के ज्ञान का कोई अस्तित्व नहीं। भृतहरि के शब्दों में "मनुष्य की पहचान यह है कि वह साहित्य, संगीत व कला का आनंद लेना जनता हो। यदि नहीं जानता तो वह बिना पूंछ.सींग का साक्षात पशु है। भारतीय संस्कृति एक सतत संगीत है। आधुनिक काल में मनुष्य अपने ज्ञान का दुरूपयोग कर रहा है। उसने अपनी सभ्यता तथा संस्कृति को खो दिया है। संस्कृति, संस्कार से बनती है। सभ्यता बनती है नागरिकता से। संस्कृति व सभ्यता ही मानवता का पाठ पढाती है। संस्कृति आशावाद सिखाती है। संस्कृति का दर्शन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। दर्शन जीवन का आधार है। संस्कृति बौद्धिक व मानसिक विकास में सहायक है। कवि रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार संस्कृति जीवन जीने का तरीका है। भारत का संस्कृति शब्द संस्कृत भाषा से आया। संस्कृति शब्द का उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है, ऐतरेय ए ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है। ऋग्वेद संपूर्ण ज्ञान व ऋचाओं (प्रार्थनाओं) का कोष है। ऋग्वेद मानव ऊर्जा का स्रोत है। ऋग्वेद, सनातन धर्म का सबसे आरम्भिक स्रोत है। "असतो मा सद्गमय" वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है। सूर्य (सविता) को सम्बोधित गायत्री मंत्र, ऋग्वेद में उल्लेखित है। गायत्री मंत्र, ऋग्वेद के तीसरे मंडल के बासठवें सूक्त का दसवां मंत्र है। 3:62:10 ऋग्वेद भारतीय संस्कृति व सभ्यता का प्रतीक है। ऋग्वेद भारतीय संस्कृति का मूल है। वेद आज भी हैं जो २५०० ई• पूर्व से १५०० ई• तक थे। वेद श्रुति कहलाए। वेद ठहरे नहीं। वेद, ठहर गए होते तो सांप्रदायिक हो जाते। वेद मानव जाती की सम्पूर्णता है। संस्कृति रूपी आत्मा सभ्यता रूपी शरीर धारण किया हुए है। संस्कृति ही मानव की आधारशिला है। यह भारत का स्वभाव है। अतएव हम कह सकते हैं की भारतीय संस्कृति राष्ट्र के विकास की आधारशिला है।
(लेखक- डाॅ• शंकर सुवन सिंह, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर)
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