विशेष: जेट एयरवेज की घटना से सबक सीखें: रघु ठाकुर
"अन्ततः 17 अप्रैल 2019 को जेट एयरवेज ने आखिरी उड़ान भरी व विमान के पायलेट ने एनाउन्स किया कि, अब यह जेट एयरवेज की आखिरी उड़ान है".
नई-दिल्ली: जेेेट एयरवेज की घटना पर राजनैतिक पैगम्बर- महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- रघु ठाकुर ने अपने लेख में लिखा है कि, "अन्ततः 17 अप्रैल 2019 को जेट एयरवेज ने आखिरी उड़ान भरी व विमान के पायलेट ने एनाउन्स किया कि, अब यह जेट एयरवेज की आखिरी उड़ान है।
जेट एयरवेज वैसे तो कई महिनों से और अगर गहराई में जाए तो कई वर्षाें से वित्तीय संकट से ग्रस्त था। जेट एयरवेज के मालिक श्री नरेश गोयल अपनी क्षमता भर ही नहीं बल्कि क्षमता से ज्यादा कर्ज बैंकों और सरकारी वित्तीय संस्थानों से ले चुके थे और उन बैंकों का ऋण अदा नहीं कर पा रहे थे। जेट एयरवेज से हजारो यात्री न केवल परेशान हो रहे थे बल्कि लाचारी में अन्य कम्पनियों के विमानों में कई गुना ज्यादा किराया देने को लाचार थे। जेट एयरवेज के ऐसे यात्रियों की संख्या हजारों में है और शायद लाख से थोड़ी ही कम हो।
बैंक अपने भारी भरकम बकाया की वसूली के लिए परेशान हैं। और ऊपरी तौर पर श्री नरेश गोयल ने जेट एयरवेज से अपना पल्ला झाड़ लिया है। परन्तु सच्चाई यह है कि वैधानिक तौर पर व दस्तावेज के आधार पर अभी भी वे, उनकी पत्नी और परिजन ही एयरवेज के कानूनी मालिक है। याने एक प्रकार से देश को गुमराह किया जा रहा है। जेट एयरवेज में काम करने वाले छोटे बड़े सभी कर्मचारियों की संख्या लगभग 23 हजार के आस-पास है और अब उन कर्मचारियों को जेट एयरवेज को बचाने के लिए आगे किया जा रहा है। यह सही है कि जो कर्मचारी जेट एयरवेज बंद होने से बेरोजगार हो गए उनके सामने रोजी रोटी की समस्या होगी और जेट एयरवेज के कर्मचारी संगठन ने इसी आधार पर प्रधानमंत्री को पत्र देकर उनसे हस्तक्षेप की अपील की है। बहुत संभव है कि यह पत्र गोयल एन्ड कम्पनी के इशारे पर लिखा गया हो तथा वे कर्मचारियों के बहाने मीडिया के माध्यम से सरकार पर दबाव डालना चाहते हों या फिर सरकार और गोयल की मिली भगत भी हो सकती है ताकि एक दर्दनाक वातावरण निर्मित कर सरकार को गोयल के समर्थन में हस्तक्षेप के लिए और बैंकों को दबाने के लिए तार्किकता मिल सके। इसी तरह बैंक कर्मचारी संगठनों ने भी महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अपील की है कि डूबी कम्पनी को बचाने के नाम पर बैंको को पैसा देने के लिये सरकार दबाव नहीं बनाये तथा चाहें तो कम्पनी के घाटा की पूर्ति सरकार स्वतः करें।
कहीं न कहीं सरकार की संवेदनाओं के तार कम्पनी से जु़ड़े जरूर नज़र आते है क्योंकि डीजीसीए ने बयान दिया है कि एयर इंडिया, जेट के 4 बोइंग व 37 विमानों को किराये पर ले सकती है तथा यह भी कि कुछ पायलटो को भी नौकरी दी जा सकती है। मैं नहीं जानता हूॅ कि डीजीसीए ने यह पहल भारत सरकार के इशारे पर की है या अपने आप। हालांकि ऐसी पहल कोई भी अफसर बगैर इशारे के नहीं कर सकता।
जेट के कर्मचारियों से मेरी भी सहानूभूति है। यद्यपि एक शिकायत भी है कि जेट का आर्थिक संकट जब शुरू हुआ था तब उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया। अगर उसी समय से वे बतौर मजदूर संगठन के और बतौर राष्ट्रीय दायित्व के सक्रिय हुए होते और मालिकों की लूट का विरोध किया होता तथा देश की जनता के साथ खड़े होते तो शायद यह संकट टल सकता था। परन्तु उस समय वे केवल अपने वेतन सुविधाओं में लिप्त रहे।
बैंक कर्मचारी चाहते है कि, घाटा पूर्ति सरकार करे और जेट कर्मचारी चाहते है कि घाटापूर्ति बैंक के कर्ज के माध्यम से हो। मेरी राय में ये दोनों ही उपाय गलत है। जेट एयरवेज का घाटा और उसकी जवाबदारी उसके मालिको की है तथा इस घाटे की पूर्ति कम्पनी की सम्पत्ति प्रबन्धन और अन्य अधिकारियों की निजी संपत्ति से की जाना चाहिए न कि सरकार से और न ही बैंको के पैसे से। क्योंकि बैंको का पैसा भी अंततः जनता का ही पैसा हैं जिसे देश के आम आदमी ने जमा पूंजी के रूप में बैंको में अमानत के तौर पर जमा किया हैं। बैंक इस पैसे के मालिक नहीं है बल्कि कस्टोडियन है। देश के सामान्य लोगो के जनधन खाते में लगभग 1 लाख करोड़ रूपया जमा है। यह गरीबों की बचत का पैसा है जिसे उन्होंने विभिन्न रूपों में अमानत के तौर पर, कहीं अनुदान की राशि के रूप में जमा कराया है। जनता के इस पैसे को इन हवाई कंपनियों को उबारने के लिए जनधन के पैसों को डुबाना, यह अवैधानिक अनुचित और देश के साथ धोखा होगा।
सच यह है कि इसकी जांच होना चाहिए कि आखिर जेट एयरवेज या और अन्य विमान कम्पनियां घाटे में कैसे गई। विमानों में यात्रा करने वाले यात्री कोई सामान्य यात्री नहीं होते बल्कि आमतौर पर सम्पन्न और अमीर लोग होते हैं। हवाई अड्डों के निर्माण में और उन्नयन में लाखों करोड़ रूपया देश की जनता का, सरकार ने लगाया है जिसका केवल इस्तेमाल करते किराये का पैसा ही विमान कम्पनियां देती है। इतना ही नहीं यह कम्पनियां सैकड़ों हजारों करोड़ रूपया सरकार और बैंको के उच्च अधिकारियों की मिली भगत से कर्ज ले लेती हैं। मनमाना मुनाफा कमाते हैं और उस मुनाफे से न केवल विलासी जीवन जीते है बल्कि मुनाफे की राशि को अन्य उद्योगों में लगा देते है कुछ समय पश्चात् जब विमान पुराने हो जाते हैं तो यह विमानन कम्पनियां घाटे का नाटक शुरू करती है तथा घाटे के नाम पर बैंको के कर्ज से मुक्त होने का प्रयास करती है। सरकारों की मिली भगत से यह भारी भारी राशियां डूबंत खाते या एन.पी.ए. में डाल दी जाती है, जिसे वसूली योग्य नहीं माना जाता है। कुछ समय मीडिया के माध्यम से बैंको की वसूली कार्यवाही के चर्चे फैलाए जाते है ताकि आम लोगों को लगे कि बैंक वसूली कार्यवाही कर रहें है और इस प्रकार बैंक अधिकारी खानापूर्ति करके सेवानिवृत हो कर चले जाते हैं। सरकारें और उनके मुखिया बदल जाते है तथा कम्पनी के मालिक मजे में अपना जीवन गुजारते रहते है। कुल मिला कर यह भारी धोखे का चक्र है।
जेट एयरवेज और ऐसी ही दिवालिया होने वाली अन्य कम्पनियों के सम्बंध में देश में एक सुस्पष्ट नीति की आवश्यकता है:
1. जेट और ऐसी ही अन्य घाटे में जाने वाली कम्पनियों की सम्पत्ति केे साथ साथ उनके मालिकों, प्रबन्धकों और उच्च पदासीन अधिकारियों की जो भी सम्पत्ति जमा हो उसे सरकार को जप्त कर कम्पनी के घाटा पूर्ति या उबारने के काम में लगाना चाहिए।
2. जिस तारीख से भी कोई कम्पनी घाटा बताना शुरू करे उसके अधिकारियों के वेतन में 75% और कर्मचारियां के वेतन में 50% कटौती का कानून बनाना चाहिए।
3. घाटे की शुरूआत होते ही कम्पनी के अन्य खर्चाें जैसे टी.ए.डी.ए., होटल में रहने आदि को कम से कम 50% कम कर देना चाहिए। हमारा रेल कर्मचारी रेल लेकर जाता है तो कर्मचारी अतिथि ग्रह में रूकता है वही खाना इत्यादि खाता है, सोता है और अगले दिन रेल वापिस लेकर आता है। यही स्थिति सरकारी बस कर्मचारियों की भी होती है परंतु प्राइवेट कर्मचारियों का तो कहना ही क्या है। प्राइवेट बस चालक का वेतन मुश्किल से 10-15 हजार होता है। उन्हें टी.ए.डी.ए. के नाम पर, नाम मात्र का पैसा मिलता है तो फिर विमान के कर्मचारी पांच सितारा होटल में क्यों रूके? और वह भी जबकि कम्पनी घाटे में है।
4. सरकार को चाहिए कि वह जेट एयरवेज का अधिग्रहण करें और अधिग्रहण की कीमत के बराबर राशि बैंक को दे, साथ ही कर्मचारियों की समिति बना कर उन्हें परिचालन के लिए सौंपे। जब तक पुराना कर्ज नहीं चुक जाता और सरकार का पैसा अदा नहीं हो जाता तब तक कर्मचारी आधा वेतन ले तथा उनके फंड की 25% राशि को कम्पनी कीे अंशपूंजी के रूप में लगाया जाए। जवाबदारी का कानून बने ताकि अगर कोई कम्पनी घाटे में जाती है तो उसके प्रबंधन को जवाबदार माना जाए तथा उसकी निजी सम्पत्ति से वह राशि वसूल करने का नियम बनें। कम्पनी के मालिकों और प्रबंधकों को जो एक ही होते है को, बैंको सरकार के बकाये के न चुकाने के अपराध में उसी प्रकार जेल में डाला जाए जैसे साहूकारी के अन्र्तगत कर्जदार दण्ड का पात्र होता है। जैसे कि स्वतः सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के मालिक श्री सुब्रत राय को जेल में डाला था और अभी भी कई कम्पनी मालिकों को जेल भेजने की प्रक्रिया चल रही है।
मैं बाम्बे हाईकोर्ट को धन्यवाद दॅूगा कि जिन्होने उनके समक्ष पेश कि गई याचिका में बैंको को या सरकार को निर्देश देने से इनकार कर दिया तथा याचिका निरस्त कर दी। देश में इस समय लगभग 6-7 लाख बीमार कारखाने हैं। यह आश्चर्यजनक है कि, इन बीमार कारखानों के लोगों के समाचार मीडिया में प्रमुखता तो दूर छपते तक नहीं हैं। यहां तक कि दिल्ली में लाखों मजदूर आकर प्रदर्शन कर चले जाते है परन्तु मीडिया में एक लाइन भी उनको नहीं मिलती। उनके दुखी चेहरों के फोटों कोई नहीं छापता उल्टे यह कहा जाता है कि इनके प्रदर्शन से जनता को परेशानी होती है, जाम लग जाता है, इत्यादि। परंतु जब कोई बड़ी कम्पनी और उसके मालिक डूबते है तो मीडिया उनके लिए इतना दुखी हो जाता है कि उनकी लम्बी-लम्बी कहानियां, चर्चा आदि को इतनी प्रमुखता से प्रकाशित करता हैं कि सरकारे राजनेता दल उसे भारी संकट मानकर जन सम्पदा को लुटाने के लिए बाध्य हो जाए। कभी कभी ऐसा लगता है कि मीडिया घरानों और कम्पनी मालिकों के बीच में जुड़वा भाइयों जैसा भाई चारा है।
जेट संकट और ऐसे आने वाले संकटों का उपाय लोहिया की उस नीति में है जिसमें उन्होंने कहा था कि सार्वजनिक क्षेत्र फिजूल खर्ची व विलासिता से मुक्त हो तथा सरकारी क्षेत्र भष्टाचार से।
मैं तो चाहूॅगा कि लोहिया की इस पुस्तिका ‘‘निजी और सार्वजनिक क्षेत्र’’ को सरकार निजी और सरकारी उद्योग और अफसरों के प्रबन्धको और कर्मचारियों को हेन्ड बुक के रूप में अनिवार्य रूप से दे।
हमारे देश में एफडीआई का बहुत मंत्र जाप होता है। तथा सरकारे विकास के लिए एफडीआई के पीछे भागती है। अभी कुछ दिनों पहले विदेशी निवेशकों ने देश के बैंकों के शेयर्स खरीदने पर 25 हजार करोड़ रूपया लगाया है और पिछले वर्ष बैंको के ही शेयर्स खरीदने के लिए 24 हजार करोड़ रूपये का निवेश किया था। याने मुश्किल से एक वर्ष में विदेशी पूंजी निवेशको ने बैंको के शेयर खरीदने पर 50 हजार करोड़ रूपये लगाए है।
विदेशी पूंजी के मालिक अब भारत के बैंको पर कब्जा करना चाहते है। इस खतरे को भी समझना होगा तथा बैंक कर्मचारी संगठनों को इसका भी विरोध करना चाहिए वरना किसी दिन वे रात में सोते वक्त सरकारी बैंक के कर्मचारी होंगे और सुबह उठने पर किसी विदेशी मालिक के नौकर बन जाएंगे।
यह भी षड़यंत्र हो सकता है कि, जेट एयरवेज को, दूसरी कंपनियां, सस्ते शेयर्स खरीद लें। तथा निजी कंपनी नये प्रबंधन के नाम पर, कर्मचारियों की हंटनी कर दें, बैंकों के कर्ज से मुक्ति पर लै। तथा अप्रत्यक्ष रूप से श्री नरेश गोयल या उनके ही लोग, कंपनी के हृदय मालिक बन जायें। सरकार को सी.बी.आई. से इसकी भी जांच कराना चाहिये।"
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