विशेष: ऐसी बहस क्यूं ?- अनिल अनूप
विशेष में लोक सभा चुनाव 2019 मैं नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप पर पत्रकार अनिल अनूप प्रस्तुत कर रहे हैं___
"ऐसी बहस क्यूं"
सवाल मुस्लिम लीग के हरे झंडे का नहीं है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग एक बौनी पार्टी है, जिसका कोई राष्ट्रीय वजूद नहीं है, लेकिन उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस चुनाव को हिंदू-मुसलमान का रंग देने का बयान जरूर दिया है। मुस्लिम लीग केरल में कांग्रेस गठबंधन में भी है, तो उसका दूसरा संगठन वाममोर्चे वाले गठबंधन का भी हिस्सा है। बेशक मुस्लिम लीग ने देश के विभाजन में भूमिका निभाई, तो उसके लिए भारतीय नेता भी जिम्मेदार थे। 1942 के मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में जिन्ना ने मुसलमानों के लिए अलग देश का प्रस्ताव पारित कराया था। उसके बाद महात्मा गांधीए जवाहर लाल नेहरू और राजगोपालाचारी सरीखे कद्दावर कांग्रेस नेता कई दिनों तक बंबई में जिन्ना की मिन्नतें करते रहे कि वह भारत का विभाजन होने से रोकें। वे मुलाकातें जिन्ना के घर पर की गईं, लेकिन जिन्ना को मनाया नहीं जा सका।
दूसरा तथ्य यह है कि जब ग्रेट कलकत्ता में फजलुल हक की सरकार थी, तब हिंदू महासभा के डाण् श्यामा प्रसाद मुखर्जी उसमें वित्त मंत्री थे। देश की आजादी के बाद उन्होंने जनसंघ की स्थापना की। ये तमाम ऐसे ऐतिहासिक तथ्य हैं, जो हमारा लंबा अतीत हैं।
बेशक वे आज प्रासंगिक नहीं हैं। फिर भी योगी ने बयान दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मुस्लिम लीग को मना किया था कि उनके कार्यकर्ता रोड.शो के दौरान पार्टी का हरे रंग का झंडा लेकर न आएं। उससे उ•प्र• के वोटर नाराज हो सकते हैं। वे हरे रंग के झंडे को पाकिस्तान का झंडा समझ सकते हैं।
बावजूद इस निर्देश के राहुल गांधी के रोड.शो में कांग्रेस के तिरंगे के साथ.साथ मुस्लिम लीग के झंडे भी फहराए जा रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने योगी आदित्यनाथ के बयान को दुष्प्रचार करार दिया और हरे रंग के झंडे संबंधी निर्देश का खंडन किया।
उ•प्र• के मुख्यमंत्री का बयान स्पष्ट है कि कांग्रेस सांप्रदायिक धु्रवीकरण, यानी हिंदू - मुसलमान करना चाहती है।
केरल के वायनाड की आबादी के समीकरण भी कुछ ऐसे ही हैं। बहरहाल आजादी के दौर के इतिहास को कुछ और खंगालें, तो तथ्य सामने आता है कि विभाजन के बाद मुस्लिम लीग को भंग करने की आवाज उठी थी। मौलाना आजाद जैसे कद्दावर नेता ने भी उस आवाज का समर्थन किया था। अंततः कराची अधिवेशन के बाद दोनों देशों की मुस्लिम लीग को मान्यता दी गई, लेकिन भारत और पाकिस्तान की मुस्लिम लीग के झंडे में कोई बुनियादी फर्क नहीं रखा गया। वह आज भी जारी है, लिहाजा भाजपा विरोध कर रही है।
भारत में मुस्लिम लीग चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त अलग-अलग सियासी पार्टियां हैं। उनके सांसद चुने जाते रहे हैं। केंद्र सरकार में मंत्री भी बने हैं। ऐसी पार्टी कांग्रेस नेतृत्व के गठबंधन में रहे या जनता पार्टी के साथ रहे, उसे असंवैधानिक नहीं माना जा सकता, लेकिन मुस्लिम लीग ने देश के कुछ राज्यों में मुस्लिम आबादी के अलग-अलग जिले बनाने का काम जरूर किया है। वायनाड में मलप्पुरम जिला इसका महत्त्वपूर्ण उदाहरण है, जहां करीब 70 फीसदी मुस्लिम आबादी है।
विडंबना है कि बेरोजगारी, गरीबी और किसान जिस चुनाव के मुख्य मुद्दे होने चाहिए थे, दरअसल वे बयान भर हैं। इन वोट बैंकों को आकर्षित करने के लिए बयान दिए जाते हैं और वादे किए जाते हैं। असल फोकस हिंदूू-मुसलमान पर है।
यदि ऐसा न होता, तो योगी मुस्लिम लीग को आधार बनाकर बयान क्यों देते/ बहस हिंदू-मुसलमान बहुलता वाले क्षेत्रों पर क्यों होती/ आज वामपंथियों को कांग्रेस के लिए अनाप.शनाप विशेषण इस्तेमाल नहीं करने पड़ते।
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