गाँधी शांति प्रतिष्ठान में रघु ठाकुर के तृतीय काब्य संग्रह -स्याह उजाला का विमोचन
ईश्वर तुम कहाँ हो....... : रघु ठाकुर
नई-दिल्ली: देेेश की राजधानी- दिल्ली के गाँधी शांति प्रतिष्ठान में महान समाजवादी चिंतक व विचारक- रघु ठाकुर के तृतीय काब्य संग्रह -"स्याह उजाला" का विमोचन सुप्रीम कोर्ट के बरी• अधिवक्ता- एस•एस•नेहरा की अध्यक्षता में हुआ।
ख्यातिनाम गाँधीवादी- समाजवादी चिन्तक रघु ठाकुर देश में समतामूलक समाज संरचना हेतु समर्पित हैं।
आप बचपन से युवावस्था तक और युवावस्था से लेकर अब तक उनका जीवन विभिन्न मोर्चों पर निरंतर संघर्षो में ही बीता। आज भी वे अपने विचारों की क्रांति-मशाल लेकर समूचे देश में अलख जगा रहे हैं और दमित - दलित तथा वंचित पिछड़े वर्गों के अधिकारों की लड़ाई अनवरत लड़ रहे हैं। आप दक्षेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं तथा वर्तमान में लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक तथा दुखिया बाणी के संपादक भी हैं।
काब्य संग्रह- "स्याह उजाले" के विमोचन के अवसर पर इसके रचयिता- रघु ठाकुर ने कहा कि मैं काब्य, शिल्प और तरन्नुम का बिल्कुल भी जानकार नहीं हूँ। मुझे तो जब कभी कोई घटनाएँ, विचार या भावनाएँ घेरती हैं तो मैं जस का तस शब्दों में उतार देता हूँ। मैं नहीं जानता कि ये कवितायें हैं भी कि नहीं, मैं तो बस इतना ही समझता हूँ कि भावनाओं का शब्द रूपांतरण ही कविता है। विचार उसकी सुन्दरता व तरन्नुम या लय उसका श्रृंगार है और शब्द उसके वस्त्र हैं। श्रृंगार और वस्त्र निर्माण की तकनीक को न मैंने कभी सीखा है और न सीखना चाह, परन्तु भावना और विचार को ही मैं यथावत् बगैर किसी लाग-लपेट के उतारने का प्रयास करता हूँ। अब इसका फैसला उन सुधी पाठकों के हाथ में है जिन्होंने इन्हें पढा है या भविष्य में पढेंगे।
उन्होंने कहा कि, इन कविताओं को टाइप करने, भेजने और सुरक्षित रखने में श्री मदन जी, मुकेश जी, शैलेन्द्र जी, हरि सिंह जी, रामशंकर पुरोहित जी, बद्री प्रसाद जी, धर्मेन्द्र सिंह राणा की भूमिका महत्वपूर्ण है और इनका शब्दों में आभार प्रकट करना संभव ही नहीं है।
रघु ठाकुर के तृतीय काब्य संग्रह -"स्याह उजाला" के विमोचन के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष (हिन्दी विभाग)- प्रो• हरिमोहन शर्मा, सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा• हरिसुमन विष्ट, प्रो• नीलिमा, बरि• पत्रकार- रामशरन जोशी, लोकसभा सांसद- डा• भागीरथ, राज्यसभा सांसद- संजय सिंह, विधायक छ•ग•-गुरदयाल, बरी• समाजवादी नेता राजनाथ शर्मा, नूर अहमद, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष- सच्चिदानन्द श्रीवास्तव व श्याम सुन्दर सिंह व अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे तथा सभी ने अपने विचार रखे।
वक्ताओं ने बताया कि रघु ठाकुर को आज की ही नहीं, पूर्व संग्रह की कविताओं को पढते हुए उनके ब्यक्तित्व के अनेक आयाम खुद ब खुद खुलने लगते हैं जिनमें प्रबल रूप से उनकी गहन संवेदनशीलता, सघन सहानुभूति और विद्रोही मन की छटपटाहट सामने आती है। यही उनके काब्य की सच्चाई है तथा यह वैचारिक आवेग है जो रघु ठाकुर के भाव-लोक में किसी रचना को जन्म देता है और जो आमतौर पर पाया जाने वाला निरा बौद्धिक ज्ञान नहीँ है, बल्कि दलित-शोषित- वंचित जनता के बीच रहकर उनकी तकलीफ़ और पीड़ा से उठी तड़प और उनके बरसों केजन-संघर्ष से उपजे दर्द की पहचान है।
रघु ठाकुर को एक राजनैतिक पैगम्बर के रूप देखा जाता है जिनके काव्य में बिद्रोही मन की तरल सरल अभिव्यक्ति दिखाई देती है।
रघु ठाकुर लिखते हैं कि, "ईश्वर तुम कहाँ हो?-"
ईश्वर तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?-...
......तुम्हारे मन और तन पर
इन दर्द भरी पीड़ाओं के, निशान क्यों नहीं?-
तुम्हारे हजार हाथ क्यों बँध गये?-
अंत में मुकेश चन्द्र ने इस अवसर के सहभागी बने सभी सम्मानित सहभागियों का आभार ब्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और "स्याह उजाले" काव्य संकलन के रचियता- परमादरणीय रघु ठाकुर की ओर मुखातिब होते हुए धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि, "मुझे गाँधी जी की तस्वीर, तस्वीर नहीं लगती, लोहिया जी की तस्वीर, तस्वीर नहीं लगती वल्कि रघु जी के सानिध्य में ऐसा लगता है कि गाँधी जी और लोहिया जी अभी जिन्दा है।"
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