क्या कारोबार के लिए जरूरी है ब्लॉकचेन!
पूरे विश्व में ब्लॉकचेन तकनीक के उपयोग को लेकर जारी होड़ के बीच यह विचार करना जरूरी है कि आपका कारोबारी मॉडल ब्लॉकचेन तकनीक की मांग करता है या नहीं.
वर्ष 2018 की शुरुआत में एक ओर पंजाब नैशनल बैंक घोटाले ने देश की बैंकिंग प्रणाली में सुरक्षा, पारदर्शिता जैसे मुद्दों पर बड़े विमर्श को दोबारा शुरू किया, दूसरी ओर विभिन्न देशों द्वारा कई तरह के प्रतिबंध लगाने के कारण आभासी मुद्राओं की कीमतों में भारी गिरावट आई, जिसने आभासी मुद्रा के साथ ही ब्लॉकचेन तकनीक को भी आम आदमी से अवगत कराया। ब्लॉकचेन तकनीक में शामिल विकेंद्रीकरण, पारदर्शिता और आंकड़ों की सुरक्षा जैसी विशेषताओं के कारण पूरे विश्व में इस तकनीक के उपयोग को लेकर होड़ शुरू हो गई लेकिन इसके उपयोग से पहले किसी भी उद्योग या संस्था को यह विचार जरूर करना चाहिए कि क्या उनका कारोबारी मॉडल ब्लॉकचेन तकनीक की मांग करता है या नहीं।
ब्लॉकचेन एक विकेंद्रीकृत तकनीक है जिसमें शामिल सभी व्यक्तियों के पास उसमें हो रहे लेनदेन या आंकड़ों का रिकॉर्ड रहता है। साथ ही, जटिल क्रिप्टोग्राफी तकनीक की सहायता से आंकड़ों को सुरक्षित रखा जाता है। आज ऑनलाइन शिक्षा, बैंकिंग, वायदा कारोबार, जमीन रिकॉर्ड, स्वास्थ्य संबंधित आंकड़े, ऑनलाइन मतदान आदि के क्षेत्र में ब्लॉकचेन के उपयोग की संभावनाओं पर तेजी से काम चल रहा है और कई परियोजनाएं अपने अंतिम चरण में हैं।
विश्व की सबसे बड़ी हीरा खनन कंपनी डी बीयर्स हीरा कारोबार में ब्लॉकचेन तकनीक लेकर आ रही है तो तेलंगाना सरकार अपने कई कामकाज ब्लॉकचेन पर स्थानांतरित करने पर विचार कर रही है। हालांकि इससे पहले यह जानना जरूरी है कि क्या वास्तव में इन परियोजनाओं में ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग हो रहा है या उसके जैसी लेकिन कुछ अलग तकनीक का।
दरअसल समय के साथ साथ ब्लॉकचेन तकनीक के कई प्रकार सामने आए हैं। विकेंद्रीकृत आंकड़ों के प्रबंधन (डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर) को सामान्य भाषा में ब्लॉकचेन तकनीक बोला जा रहा है, लेकिन दोनों में मामूली अंतर भी है। विश्व आर्थिक मंच द्वारा अप्रैल 2018 में जारी रिपोर्ट ‘ब्लॉकचेन बियोंड दी हाइप’ में बताया गया कि विकेंद्रीकृत आंकड़ों का तीन तरह से प्रबंधन किया जा सकता है। पहला, एक समूह तक सीमित और अनुमति के बाद ही शामिल हो पाना। दूसरा, सार्वजनिक लेकिन अनुमति लेकर ही शामिल हो पाना और तीसरा, पूरी तरह से सार्वजनिक और बिना किसी अनुमति के शामिल होने की सुविधा। इस रिपोर्ट में तीसरे प्रकार को ही ब्लॉकचेन तकनीक बताया गया है।
हालांकि कई अन्य विशेषज्ञ पहले और दूसरे प्रकार को अनुमति प्राप्त ब्लॉकचेन और तीसरे प्रकार को सार्वजनिक ब्लॉकचेन भी कहते हैं। दूरसंचार नियामक ट्राई ने मई माह में एक मसौदा जारी किया था जिसमें अवांछित फोन कॉल व एसएमएस पर लगाम लगाने के लिए डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर तकनीक के इस्तेमाल की बात की गई, ना कि ब्लॉकचेन तकनीक की।
ब्लॉकचेन कितनी जरूरी
पीडब्ल्यूसी इंडिया में सहयोगी और ब्लॉकचेन विशेषज्ञ श्रीराम अनंतशयनम कहते हैं, ‘कई लोग ब्लॉकचेन के बारे में बात कर रहे हैं और इसे लगभग सभी समस्याओं का उपाय मान रहे हैं। यह सही धारणा नहीं है। अगर किसी समूह में कोई लेनदेन हो रहा है और उसमें किसी मध्यस्थ की भूमिका है, तो वहां ब्लॉकचेन का उपयोग कारगर हो सकता है।’ दरअसल, ब्लॉकचेन के उपयोग से पहले हमें अपने कारोबार से जुड़ी कुछ अहम बातों पर ध्यान देना होगा।
पहला, क्या हम किसी मध्यस्थ या ब्रोकर को प्रक्रिया से हटाना चाहते हैं? साधारण शब्दों में क्या निर्णय लेने का काम किसी एक व्यक्ति या संस्था के बजाय सभी पर बराबर बांटा जाए तो उस प्रक्रिया में ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग हो सकता है।
दूसरा, कारोबारी मॉडल में यदि जानकारियों का आदान-प्रदान हो रहा है तो क्या सभी सदस्योंं को इन जानकारियों तक पहुंच देनी है अथवा नहीं। उदाहरण के लिए, भारत में 19 जीवन बीमा कंपनियां एक ब्लॉकचेन परियोजना पर काम कर रही हैं, जहां उनके ग्राहकों की सभी जानकारियां रखी जाएंगी। हो सकता है कि इससे ग्राहकों को बीमा खरीदना और नवीनीकरण कराना आसान हो, लेकिन उनकी निजी जानकारियों तक सभी कंपनियों की पहुंच पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं।
तीसरा, क्या वर्तमान कारोबारी मॉडल में कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिनका निदान ब्लॉकचेन तकनीक के बिना संभव नहीं है? कहीं ब्लॉकचेन तकनीक हालिया कारोबारी प्रक्रिया को अधिक जटिल तो नहीं बना देगी।
चौथा, क्या हम केवल डिजिटल ऐसेट के साथ काम कर रहे हैं? दरअसल, यदि हम एक ऐसे कारोबारी मॉडल में ब्लॉकचेन का उपयोग करते हैं जिसमें भौतिक संपत्ति का लेनदेन हो रहा है तो उसका ट्रैक रखना मुश्किल होगा। उदाहरण के लिए अगर हम गेहूं के संचरण पर निगरानी के लिए ब्लॉकचेन पर काम कर रहे हैं तो गेहूं से आटा और फिर ब्रेड बनने के बीच की प्रक्रिया को ब्लॉकचेन पर दर्ज करना मुश्किल होगा।
पांचवां, लागत तथा प्रभावशीलता। अभी यह एक नई तकनीक है जिस पर बड़ी कंपनियां शोध कार्य कर रही हैं। इस बात का ध्यान रखा जाए कि कहीं ब्लॉकचेन के उपयोग से कारोबारी मॉडल की लागत इतनी अधिक ना हो जाए कि उसमें पुन: बदलाव करना जरूरी हो जाए। अभी अधिकांश ब्लॉकचेन मॉडल प्रारंभिक चरण में ही हैं इसलिए इसकी विश्वसनीयता और स्थिरता को लेकर कोई स्पष्टता नहीं आई है।
छठा, दरअसल ब्लॉकचेन तकनीक में उपयोग होने वाले स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट कुछ कारोबारी नियमों का प्रोगामिंग स्वरूप है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि क्या कारोबार विशेष के नियमों को कंप्यूटर पर चलने वाले कोड में बदला जा सकता है। क्या इसके बावजूद उस कारोबार को करने के लिए नियामक या प्रमुख संस्थाओं की भूमिका बनी रहेगी?
अनसुलझे सवाल
अप्रैल 2018 में भारत में तीन ऑनलाइन बिल डिस्काउंटिंग एक्सचेंज प्लेटफॉर्म ने अपना ब्लॉकचेन नेटवर्क लॉन्च किया। तेलंगाना सरकार स्मार्ट शहर के लिए ब्लॉकचेन तकनीक पर काम कर रही है तो वहीं आंध्र प्रदेश जमीन रिकॉर्ड के लिए और केरल अनुसूचित जाति/जनजाति को लाभ पहुंचाने के लिए ब्लॉकचेन मॉडल पर काम कर रही है। फिर भी ब्लॉकचेन के अनुप्रयोग को लेकर कई सवालों के जवाब बाकी हैं।
पहला सवाल निजता से जुड़ा है। आखिर किसी व्यक्ति की निजी जानकारियों को किस स्तर तक सभी के साथ साझा किया जाएगा। वह भी ऐसे समय में जब पूरे विश्व में निजता को लेकर एक बड़ी बहस जारी है। यूरोप 25 मई 2018 से सामान्य डेटा संरक्षण नियमन (जीडीपीआर) को लागू कर चुका है और भारत में श्रीकृष्ण समिति ने भी निजता को वरीयता दी है। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय भी निजता को मौलिक अधिकार बता चुका है, जिससे आंकड़े साझा करने में कठिनाई आ सकती है।
स्वास्थ्य आंकड़े, डेबिट या क्रेडिट कार्ड लेनदेन आदि की जानकारी रखने से निजता का उल्लंघन हो सकता है। डी बीयर्स जिस ब्लॉकचेन को लेकर आ रही है उसके एक अंतिम सिरे पर हीरा खरीदार भी है। ब्लॉकचेन पर उसके बारे में जानकारी किस स्तर तक साझा रहेंगी कि उसे सुरक्षा का संकट ना आ जाए, यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। हालांकि जैक और मोनेरो प्लेटफॉर्म इस समस्या को हल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस पर अभी काफी काम करना बाकी है।
दूसरी समस्या आंकड़ों को ना बदल पाने की है। दरअसल ब्लॉकचेन तकनीक की यह खासियत है कि इसमें दर्ज किसी भी आंकड़े को बदलना बहुत अधिक कठिन है और यही विशेषता इसके लोकप्रिय होने का एक बड़ा कारण है। लेकिन जब हमारे कारोबारी मॉडल में लगातार आंकड़ों में संशोधन होता रहे, या हमें पुराने आंकड़ों की आवश्यकता ही ना हो? लगातार बदलते आंकड़ों की समस्या से जूझने में कठिनाई आ सकती है और ब्लॉकचेन फोर्क इसका अंतिम उपाय नहीं हो सकता।
तीसरा सवाल यह है कि क्या स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट को शत प्रतिशत विश्वसनीय माना जा सकता है। यह कारोबारी नियमों का कंप्यूटर की भाषा में लिखा एक कोड है। शायद, इसके अलावा कुछ दूसरे समझौतों की भी आवश्यकता पड़े। साथ ही, किसी नेटवर्क में कब किसे शामिल करना है और किसे निकालना हो, इसके निर्धारण पर भी विचार करना होगा।
एक समस्या स्केलेबिलिटी की है। विश्व की दो सबसे बड़ी ब्लॉकचेन परियोजना बिटकॉइन और इथीरियम भी अभी इस समस्या से जूझ रही हैं। बिटकॉइन ब्लॉकचेन में प्रति सेकंड 7-10 लेनदेन ही संभव हैं जबकि इथीरियम के मामले में यह औसतन 15 लेनदेन है। विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट में भी बताया गया कि अप्रैल 2018 तक विभिन्न डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर तकनीकों में प्रसंस्करण समय औसतन 2-10 सेकंड है। वर्तमान में उद्योग को एक सेकंड में हजारों-लाखों लेनदेन करने होते हैं और ऐसे में ब्लॉकचेन तकनीक की सफलता का केवल अनुमान लगाया जा सकता है।
(साभार- बी.एस.)
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