
फिलहाल हम अभी तूफान के मध्य में फंसे हुए हैं
नयी दिल्ली, 16 जुलाई: कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और व्यापार युद्घ की आशंका ने दुनियाभर के बाजारों में बेचैनी पैदा की है। जूलियस बेयर में एशिया के लिए प्रबंध निदेशक एवं शोध प्रमुख मार्क मैथ्यूज ने पुनीत वाधवा के साथ बातचीत में कहा कि उन्हें भारतीय बाजारों में तेजी की संभावना नहीं दिख रही है। लेकिन वित्त वर्ष 2019 में 15 प्रतिशत की आय वृद्घि के साथ भारत अगले मार्च तक फिर से आकर्षक बन जाएगा। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
क्या आप मानते हैं कि अगले 6 से 12 महीनों के दौरान वैश्विक इक्विटी बाजार तेजी की ओर बढ़ेंगे?
हम 'समर स्टॉर्म' के मध्य में हैं और यह प्रत्येक कुछ वर्षों में एक बार होता है। पिछली बार ऐसा 2011 में देखने को मिला था, जब यूनान संकट सामने आया। बढ़ती ब्याज दरें, डॉलर में मजबूती, व्यापार युद्घ, चीन की मजबूत होती स्थिति आदि का अचानक असर दिखा है। इसके अलावा, ऐसा लग रहा है कि एंजेला मर्केल सरकार का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है क्योंकि उनकी प्रमुख गठबंधन भागीदार बाहर निकलने की धमकी दे रही है। इसलिए यूरोप अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रहा है। तुर्की और मैक्सिको में चुनावों के साथ उभरते बाजारों में राजनीतिक घटनाक्रम महत्वपूर्ण हैं।
अमेरिकी बाजार के बारे में आपका क्या नजरिया है?
अमेरिका एक ऐसा बाजार है जो इन दबावों का मुकाबला करने में सक्षम रहा है। हालांकि अमेरिकी बाजार में भी कमजोरी के संकेत दिख रहे हैं। वैश्विक बाजारों ने दिसंबर 2016 से पहली बार अपने 200-डीएमए को तोड़ा है। जो चीज बाजार को गिरावट से सुरक्षित बनाएगी, वह है टैक्स कटï्स ऐंड जॉब्स ऐक्ट। इसकी वजह से एसऐंडपी 500 सूचकांक पर सूचीबद्घ 500 कंपनियों के लिए आय वृद्घि पहली तिमाही में 25 प्रतिशत रही और पूरे वर्ष के लिए यह 20 प्रतिशत रहनी चाहिए।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि हैंगसेंग, टॉपिक्स, एपीएक्सजे और एमएससीआई चाइना मंदी के दौर के नजदीक हा सकते हैं। क्या आप मानते हैं कि ऐसा हो सकता है? वैश्विक बाजारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
इस साल बड़ा आश्चर्य शांघाई के बाजार में बड़ी मंदी रही। शांघाई बाजार अपने जनवरी के ऊंचे स्तर से लगभग 20 प्रतिशत पहले ही गिर चुका है। इसके लिए डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों और व्यापार युद्घ से पैदा हुई आशंका को जिम्मेदार माना जा रहा है। हालांकि चीनी की कंपनियों को अमेरिका से सिर्फ 5 प्रतिशत राजस्व हासिल होता है। यह यूरोपीय देशों के मुकाबले काफी कम है जहां अमेरिकी राजस्व 18 प्रतिशत के आसपास है। अमेरिका के लिए चीन का निर्यात भी काफी कम (लगभग 5 प्रतिशत) है।
क्या व्यापार युद्घ की आशंका दूर हो गई है?
चीन मौजूदा वैश्विक क्रम का बड़ा लाभार्थी है और उसने व्यापक निर्यात आधार विकसित किया है, जबकि आयात को भी सुरक्षित बनाया है। लेकिन शांघाई के बाजार में गिरावट इस तथ्य से आई है कि चीन ऋण सख्ती पर जोर दे रहा है, जो मुख्य रूप से स्थानीय सरकारों पर केंद्रित राष्टï्रपति जी चिनपिंग के 'डी-लेवरेजिंग' (ऋण में कमी) कार्यक्रम का हिस्सा है। लेकिन अब तक सिर्फ एक स्थानीय सरकारी कंपनी विफल रही है।
क्या अगले वित्त वर्ष चीन के जरिये दुनियाभर में संकट पैदा हो सकता है?
2008 के वित्तीय संकट की वजह सब-प्राइम मॉर्गेज थी। ऐसे मॉर्गेज (गिरवी) जो कभी नहीं दिए गए। मुझे नहीं लगता कि चीन उस तरह के संकट की अनुमति देगा, और ऋण काफी हद तक एक क्षेत्र से अन्य क्षेत्र (सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों से स्थानीय सरकारों) के लिए नियंत्रण योग्य होगा।
भारतीय इक्विटी बाजारों के बारे में आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
भारत हमारे लिए 'बाई एंड होल्ड' बाजार है। हम सामरिक आधार पर भारत पर जोर नहीं दे रहे हैं। 'खरीदें, दूर हो जाएं और इसे भूल जाएं'। यह एक वैश्विक पोर्टफोलियो में अवश्य होना चाहिए और आपको इसे लंबे समय तक बनाए रखने की जरूरत है। तीन मुख्य चीजें भारत के पक्ष मं काम कर रही हैं। पहला, जनसांख्यिकीय- देश का विकास प्रोफाइल स्पष्टï है। दूसरा, मजबूत और बड़ी कंपनियां भविष्य में अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं। आखिरी, अगले साल के आम चुनाव का परिणाम, सुधारों की निरंतरता से आर्थिक वृद्घि को मजबूती मिलेगी। ये सब भारत के लिए शुभ संकेत हैं।
विदेशी निवेशकों ने पिछले कुछ महीनों में भारत में निवेश घटाया है। क्या वजह है?
हालांकि विदेशी निवेशकों ने बिकवाली की है, लेकिन इसकी मात्रा बहुत ज्यादा नहीं है। राइट्स लिमिटेड जैसे ताजा आईपीओ की सफलता और विदेशी निवेशकों से अभिदान स्तरों से संकेत मिलता है कि वे इस विकल्प (आईपीओ) के जरिये भारत में निवेश बढ़ाने की संभावना तलाश रहे हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अगले आम चुनाव में जीत पर आशंका के बादल उन्हें चिंतित कर रहे हैं।
(साभार- बी. एस.)
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