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लहू बोलता भी है: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मुल्ला अब्दुल क़य्यूम खान
आईये, जानते हैं,
आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मुल्ला अब्दुल क़य्यूम खान को......
मुल्ला अब्दुल क़य्यूम खान:
मुल्ला अब्दुल क़य्यूम खान की पैदाइश सन् 1853 में मद्रास में हुई थी। उसके बाद आपके वालिदेन कारोबार की गरज़ से हैदराबाद में आकर बस गये।
आपने फारसी, अरबी और उर्दू की तालीम दारुल-उलूम से हासिल की और आगे की पढ़ाई के लिए उत्तरप्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़िले में आ गये। मिर्ज़ापुर से ग्रेजुएशन करके आप वापस हैदराबाद गये और निज़ाम-स्टेट में ऊंचे ओहदे पर नौकरी करने लगे।
सन् 1880 में आपकी मुलाक़ात सरोजिनी नायडू के वालिद अघोरनाथ चट्टोपाध्याय से हुई, जो उस वक़्त अवा में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ जागरूकता पैदा करने की मुहिम चला रहे थे। आप पहले से ही निज़ाम-सरकार और ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ थे।
लोगों को इनसे निजात दिलाने के लिए आप माहौल बना रहे थे, निज़ाम के खि़लाफ़ स्वामी अघोरनाथ भी आंदोलन कर रहे थे, उन्हे साथ लेकर मज़बूती से आंदोलन शुरू कर दिया।
आपने निज़ाम के खिलाफ सिविल नाफरमानी का आंदोलन शुरू किया, जिसकी वजह से निज़ाम बहुत नाराज हुए और आपको हैदराबाद से निकाल दिया गया।
मुल्ला अब्दुल क़य्यूम खान सन् 1885 में इण्डियन नेशनल कांग्रेस के सबसे पहले मुस्लिम मेम्बर थे, जिसकी वजह से आपको सर सैय्यद अहमद के लोगों की मुख़ालिफ़त का भी सामना करना पड़ा। उन दिनों सर सैय्यद अहमद खान मुसलमानों की तालीम पर ज़ोर दे रहे थे और लोगों को कांग्रेस के साथ जाने को मना कर रहे थे जिसका मुक़ाबला करने के लिए इण्डियन नेशनल कांग्रेस की तरफ़ से मुल्ला अब्दुल क़य्यूम ने सर सैय्यद अहमद खान के खिलाफ मोर्चा खोला और सबसे पहले सफीर-ए-दकन अख़बार में मज़मून लिखना शुरू किया, जिसका बहुत असर हुआ। उसके बाद आपने मीटिंगों के पर्चे छपवाकर मुसलमानों को इण्डियन नेशनल कांग्रेस में शामिल कराने के लिए मुहिम छेड़ी, जिसकी वजह से मुसलमान कांग्रेस की तरफ़ आ गये।
आपने स्वदेशी आंदोलन में बहुत असरदार तरीक़े से मुस्लिमों को साथ लेकर अंग्रेज़ व निज़ाम की मुख़ालिफ़त की और उसी दौरान जेल भी गए। मुल्लाजी ने सन् 1905 में बंगाल के बंटवारे के एलान के ख़िलाफ़ भी ज़बरदस्त मुज़ाहिरा किया। हिन्दू-मुसलमान एकता के लिए भी लोग आपको बहुत याद करते थे। आपको सरोजिनी नायडू ने हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के लिए इंसानियत का पैगम्बर के नाम से एज़ाज दिया। इस महान मर्दे मुजाहिद का इंतक़ाल 27 अक्टूबर सन् 1906 को हुआ।
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