भूमिगत जल स्तर से तय होगी बिजली की दर!
नयी दिल्ली, 06 जुलाई: भूजल की बरबादी कम करने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को किसानों के लिए बिजली की दर संबंधित इलाके के भूजल स्तर और वहां फसलों के लिए पानी की जरूरत के आधार पर तय करने का प्रस्ताव रखा है। साथ ही केंद्र ने राज्यों से कम भूजल स्तर वाले इलाके के किसानों को मिलने वाली सब्सिडी बंद करने को कहा है। बिजली कानून की धारा 62 (3) के तहत शुल्क के निर्धारण में किसी भी इलाके की भौगोलिक स्थिति एक शर्त हो सकती है। केंद्र सरकार राष्ट्रीय शुल्क नीति में संशोधन करके बदलाव करना चाहती है। इसके मुताबिक अगर किसी इलाके में भूजल का स्तर कम होगा तो उस इलाके के किसानों को बिजली के लिए ज्यादा दाम देना होगा।
मुफ्त बिजली के दुरुपयोग को रोकने के लिए संशोधन में कहा गया है कि राज्यों को उन श्रेणी को खत्म करना चाहिए जहां सब्सिडी पर बिजली दी जा रही है। इसके बजाय उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के जरिये राहत दी जानी चाहिए। संशोधन के मसौदे के मुताबिक गरीबों के लिए बिजली की एक ही दर होगी। डेलॉयट टच तोमात्सु इंडिया में पार्टनर देवाशिष मिश्रा ने कहा कि सभी कनेक्शन पर मीटर लगाने और धीरे-धीरे क्रॉस सब्सिडी खत्म करना वर्ष 2003 के कानून का मूल उद्देश्य था। लेकिन कानून बनने के 15 साल बाद भी इसे हासिल नहीं किया जा सका है। प्रस्तावित संशोधन व्यावहारिक हैं। ये उज्ज्वला योजना में डीबीटी की सफलता से मिले सबक पर आधारित हैं। अगर इनके क्रियान्वयन में राज्यों ने सहयोग दिया तो फिर इससे खस्ताहाल बिजली क्षेत्र का कायापलट हो सकता है।
बिजली कानून के तहत शुल्क नीति बिजली की दर तय करने, बिजली खरीद समझौतों, कोयला और बिजली की बिक्री तथा खरीद के लिए मार्गदर्शक सिद्घांत है। नीति में संशोधन से कानून के जरिये सुधार का रास्ता साफ होगा। इस नीति को इससे पहले 2016 में संशोधित किया गया था। नई व्यवस्था को लागू करने के लिए राज्य बिजली नियामक आयोगों को अलग से शुल्क नियम बनाने होंगे। नई नीति का लक्ष्य बिजली उपभोक्ता की श्रेणियों की संख्या घटाकर अधिकतम 5 तक सीमित करना है। साथ ही इसका मकसद बिजली शुल्क को सरल बनाना है। कई वर्षों के दौरान विभिन्न तरह की श्रेणियां बनाए जाने के कारण यह बेहद जटिल हो गया है। संशोधन के मुताबिक उपभोक्ताओं की 5 श्रेणियां घरेलू, व्यावसायिक, कृषि, औद्योगिक और संस्थागत होंगी।
इस समय पूरे देश में बिजली शुल्क की 150 से अधिक श्रेणियां हैं। इनमें से अधिकांश लोगों को सब्सिडी देने और सस्ती बिजली देने के चुनावी वादों को पूरा करने के लिए बनाई गई हैं। इससे राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों की स्थिति खस्ताहाल हुई है क्योंकि उन्हें महंगी बिजली खरीदकर उपभोक्ताओं को सस्ते में देनी पड़ती है। अधिकांश सब्सिडी ग्रामीणों और सिंचाई के लिए दी जा रही है।
(साभार- बिजनेस स्टैण्डर्ड)
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