सूचीबद्घ कंपनियों के ऑडिटरों द्वारा अचानक इस्तीफे: वित्त मंत्रालय पहुंचे संस्थागत निवेशक
नयी दिल्ली, 06 जुलाई: सूचीबद्घ कंपनियों के ऑडिटरों द्वारा अचानक इस्तीफे दिए जाने से उन कंपनियों के शेयरों में खासी गिरावट आई है। इसने संस्थागत निवेशकों को भी असमंजस में डाल दिया है। यही वजह है कि संस्थागत निवेशकों ने ऑडिटरों के मसले के समाधान के लिए वित्त मंत्रालय से संपर्क किया है। उद्योग से जुड़े सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्रालय के अधिकारियों, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी), भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान और अन्य संबंधित पक्षों के बीच जल्द ही बैठक हो सकती है। यूटीआई म्युचुअल फंड के प्रबंध निदेशक लियो पुरी ने कहा, 'इस मसले पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए सेबी और वित्त मंत्रालय सहित बहु-पक्षीय चर्चा होनी चाहिए। सभी हितधारकों को आम सहमति बनाने की जरूरत है। इस बारे में शीघ्र ही बातचीत होगी।'
ऑडिटरों के अपने कार्यकाल से पहले इस्तीफा देने से उन कंपनियों के शेयरों में अचानक तेज गिरावट देखी गई। मनपसंद बेवरिजेस, वक्रांगी, श्री अधिकारी ब्रदर्स टेलीविजन, अटलांटा आदि के शेयरों में 30 से 60 फीसदी तक की गिरावट आई है। कोटक म्युचुअल फंड के प्रबंध निदेशक नीलेश शाह ने कहा, 'बिना समुचित स्पष्टïीकरण के ऑडिटरों के अचानक कंपनी छोडऩे से संस्थगात निवेशक चिंतित हैं। ऑडिटरों की नियुक्ति शेयरधारकों द्वारा की जाती है, ऐसे में कंपनी छोडऩे के बारे में उन्हें शेयरधारकों को स्पष्टï जानकारी देनी चाहिए। ऑडिटरों के अचानक जाने से लोगों में संदेह पैदा होता है और कंपनी के मूल्यांकन पर असर पड़ता है।' पुरी का मानना है कि अगर ऑडिटर इस्तीफा देने के बजाय खुलासा करें तो शेयरधारकों को खुशी होगी। उन्होंने कहा, 'आप चाहते हैं कि ऑडिटर सूचना दें और केवल यह न कहें कि उनके पास पर्याप्त आंकड़े नहीं हैं और मैं इस्तीफा दे रहा हूं।' उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि संस्थागत निवेशक इस मसले को समझने के लिए पहले ही ऑडिटरों के साथ बैठक कर चुके हैं। उन्होंने सेबी अधिकारियों को भी इस समस्या से अवगत कराया है। उद्योग संंगठन सीआईआई द्वारा इस मसमले के समाधान के लिए एक समिति का गठन किया गया है।
एक ऑडिटर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, 'सवाल यह उठता है कि क्या ऑडिटरों को अपनी आचार संहिता के साथ समझौता कर कंपनी में बने रहना चाहिए। सभी आंकड़ों को सार्वजनिक करने से कंपनी को कहीं ज्यादा नुकसान हो सकता है।' डेलॉयट, हस्किन्स ऐंड सेल्स, प्राइसवाटरहाउस, केपीएमजी और ईवाई के सूत्रों ने दावा किया कि उन्होंने इस्तीफा देने से पहले सेबी और कंपनी मामलों के मंत्रालय को सूचना देने के अपने कर्तव्यों का पालन किया है। हालांकि संस्थागत निवेशकों का तर्क है कि ऑडिटर शेयरधारकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, ऐसे में उन्हें शेयरधारकों को जवाब देना चाहिए।
(साभार- बिजनेस स्टैण्डर्ड)
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