लहू बोलता भी है: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलवी सैय्यद अलाउद्दीन
आईये, जानते हैं, आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलवी सैय्यद अलाउद्दीन को ....
मौलवी सैय्यद अलाउद्दीन
निज़ाम स्टेट साउथ इण्डिया की मज़बूत रियासत थी, जिसे ब्रिटिश हुकूमत की पुश्तपनाही थी। इस स्टेट में चूंकि अंग्रेजों से सीधी लड़ाई नहीं थी, इसलिए बैकवर्ड या जाहिल अवाम को यह समझाना बहुत मुश्किल हो रहा था कि मुजाहेदीन की लड़ाई किससे है। इस काम को मौलवी सैय्यद अलाउद्दीन साहब ने बहुत ही मेहनत और हिकमत से किया। तब जाकर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ अवाम का रुझान बदला। इन कोशिशों का नतीजा तब निकला, जब सन् 1857 के शुरू में निज़ाम-स्टेट में बगावत की पहली वारदात औरंगाबाद और हैदराबाद के आसपास के देहाती इलाक़ों में शुरू हुई। तब अंग्रेज़ अफ़सर और निज़ाम-हुकूमत ने घबराकर इस आंदोलन के रूप में उठी बग़ावत को दबाने के लिए बड़ी तादात में सिपाहियों और बग़ावती उलमाओं को गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया। औरंगाबाद में सेना की छावनी थी, इसलिए वहां के सिपाहियों को अवाम के सामने ही फांसी पर लटका दिया गया और कुछ को गोली मार दी गयी।
निज़ाम-हुकूमत ने हैदराबाद में बंद किये गये बाग़ियों को छोड़ने की मांग ठुकरा दी। इससे नाराज़ मुजाहिदों ने मक्का मस्ज़िद में 17 जुलाई सन् 1857 को मीटिंग करके फैसला किया कि मौलवी अलाद्दीन की क़यादत में ब्रिटिश रेजिडेंसी पर हमला करना है। फैसले के मुताबिक मौलवी साहब के साथ पांच सौ की तादात में मुजाहिदों ने शाम 4 बजे हमला बोल दिया।
निज़ाम की फौज की मदद में बड़ी तादात में ब्रिटिश फौज आयी और दोनों तरफ़ से झड़प व गोलीबारी हुई। पूरी रात दोनो तरफ़ से गोलीबारी होती रही। काफी लोग घायल हुए और कुछ शहीद भी हुए। सुबह हथियारों की कमी की वजह से मुजाहेदीन को मोर्चे से हटना पड़ा। मौलवी अलाउद्दीन की तलाश शिद्दत से होने लगी। उनकी गिरफ्तारी या उन्हें मारकर लानेवाले को 4000 रुपये के इनाम का एलान हुआ। मौलवी साहब अपने जेहादी दोस्त पीर मोहम्मद के पोशीदा ठिकाने पर अंडर ग्राउंड हो गये। डेढ़ साल बाद किसी की निशानदेही पर मौलवी अलाउद्दीन गिरफ्तार हुए। उन्हें उम्रकैद की सज़ा देकर 28 जून सन् 1859 को सेलुलर-जेल ;अण्डमानद्ध भेज दिया गया, जहां तक़रीबन 25 साल तक कै़द बा-मशक्कत करते हुए सन् 1884 में आप इंतक़ाल कर गये।
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