PM मोदी की इंडोनेशिया-सिंगापुर और मलेशिया यात्रा से भारत को क्या मिला?
आसियान देशों के साथ 'दोस्ती' को एक नया मोड़ देने के लिए पीएम मोदी 29 मई से 2 जून तक इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर के दौरे पर रहे. इस दौरान उन्होंने इन तीन देशों के साथ कूटनीतिक और रक्षा संबंधों को एक नई दिशा दी.
नयी दिल्ली, 03 जून: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन आसियान देशों इंडोनेशिया, सिंगापुर और मलेशिया की यात्रा के बाद शनिवार को दिल्ली लौट आए हैं. पीएम मोदी की तीन देशों की पांच दिन की ये यात्रा बेहद खास रही. उनका यह दौरा एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत दक्षिणपूर्व एशिया के साथ संबंधों को बढ़ाने के लिए भारत की कोशिशों का एक हिस्सा है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि तीन आसियान देशों की इस यात्रा से भारत को क्या हासिल हुआ और इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में भारत की स्थिति पर अब कैसी होगी?
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बीते हफ्ते दो खबरें चर्चा में रही. एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन की सिंगापुर में 12 जून को प्रस्तावित मुलाकात को लेकर कुछ भी साफ नहीं हो पा रहा था. दूसरी तरफ वॉशिंगटन-बीजिंग के बीच तनाव की खबरें थी. इन सबके बीच भारत ने चीन को चुनौती देने के लिए दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों की ओर कूटनीतिक कदम बढ़ाया.
आसियान देशों के साथ 'दोस्ती' को एक नया मोड़ देने के लिए पीएम मोदी 29 मई से इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर के दौरे पर रहे. इस दौरान उन्होंने इन तीन देशों के साथ कूटनीतिक और रक्षा संबंधों को एक नई दिशा दी. देश में 11 महीने बाद आम चुनाव होने हैं, ऐसे में पीएम मोदी की ये विदेश नीति किस हद तक कारगर साबित होगी, ये देखने वाली बात है.
इंडोनेशिया से बंदरगाह पर बनी बात
बहरहाल, तीन देशों की यात्रा के दौरान भारत ने स्पष्ट विदेश नीति और सुरक्षा नीति पर कदम बढ़ाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों की अपनी यात्रा के पहले पड़ाव में इंडोनेशिया पहुंचे. जकार्ता में उन्होंने इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदो से मर्डेका पैलेस में मुलाकात की. इस दौरान दोनों नेताओं ने इंडोनेशियाई नौसेना बंदरगाह विकसित करने की योजना के साथ चीन को काउंटर करने के संकेत भी दिए. मोदी और विदोदो ने भारत-इंडोनेशिया के बीच रक्षा और समुद्री सहयोग को बढ़ाने की बात भी कही.
बड़ा सवाल ये है कि सबांग इतना ज़रूरी क्यों है? दरअसल, संबाग का मलक्का स्ट्रैट वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज़ से इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां से तेल गुज़रता है. भारत और इंडोनेशिया ने सबांग में सहयोग के प्रस्ताव पर 2014-15 में सोचना शुरू किया था. हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती पैठ ने भारत और इंडोनेशिया की चिंता बढ़ा दी थी और इसी वजह से सबांग को लेकर सहमति बनी है.
मोदी ने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विकास के लिए दोनों देशों के विजन एक जैसे हैं. दोनों नेताओं ने अपने बयानों में स्वतंत्र, खुला, पारदर्शी, शांतिपूर्ण, समृद्ध और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र की वकालत की. इस दौरान दोनों देशों के बीच 15 समझौते भी हुए.
बता दें कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को बढ़ने से रोकने के लिए भारत कई कदम उठा रहा है. आसियान देश भी चाहते हैं कि भारत इस इलाके में बढ़ी भूमिका अदा करे और आक्रामक चीन को काउंटर करे. इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर की इस यात्रा के दौरान पीएम मोदी इस बात पर फोकस कर रहे हैं
इंडोनेशिया के बाद मोदी का दूसरा पड़ाव मलेशिया था. राजधानी कुआलालंपुर में मोदी ने अपने समकक्ष महातिर मोहम्मद से मुलाकात की. महातिर पिछले महीने हुए आम चुनाव के बाद मलेशिया के प्रधानमंत्री बने हैं.
सिंगापुर में शांगरी-ला-डायलॉग में हुए शामिल
शुक्रवार को पीएम मोदी सिंगापुर में थे. वहां उन्होंने पहले नानयांग यूनिवर्सिटी में छात्रों को संबोधित किया. फिर शांगरी-ला-डायलॉग में शिरकत करने पहुंचे. ऐसा पहली बार है, जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने 'शांगरी-ला-डायलॉग' को संबोधित किया हो. इस इवेंट को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, "कई हजार साल पहले भारतीयों ने पूरब का रुख सिर्फ सूरज को देखने के लिए ही नहीं किया था, बल्कि इसलिए भी किया कि सूरज की रोशनी पूरी दुनिया में फैले." मोदी ने कहा, "एशिया और दुनिया का अच्छा भविष्य होगा, अगर भारत और चीन भरोसे और आत्मविश्वास के साथ मिलकर काम करें."
मोदी ने कहा कि भारत हर दक्षिणपूर्व एशियाई देश के साथ राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा संबंधों को आगे बढ़ा रहा है. सिंगापुर सदियों से भारत के लिए व्यापक में पूर्वी देशों के लिए एक प्रवेश द्वार रहा है. इसके साथ ही सिंगापुर आसियान देशों के लिए एक स्प्रिंगबोर्ड की तरह है. दौरे के आखिरी दिन पीएम मोदी ने कई डेलिगेट्स से मुलाकात की, इनमें यूएस के डिफेंस सेक्रेटरी जिम मैटिस भी शामिल रहे.
भारत-इंडोनेशिया की दोस्ती से बढ़ी चीन की चिंता
हाल के सालों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के राजनयिक व सुरक्षा मंडल में 'इंडो-पैसिफ़िक' शब्द का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है. यही वजह है कि भारत के बढ़ते क्षेत्रीय स्तर को देखते हुए बुधवार को यूएस मिलिट्री पेसिफिक कमांड का नाम बदल दिया गया. अमेरिका ने अब इस कमांड का नाम यूएस इंडो-पेसिफिक कमांड कर दिया है.
लेकिन, चीन को इससे ऐतराज है. इंडोनेशिया के साथ हाल में भारत की बढ़ती नज़दीकी से चीन परेशान है. दरअसल, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र के मुताबिक, अगर भारत सबांग के सामरिक द्वीप तक सैन्य पहुंच चाह रहा है, तो वह चीन के साथ सामरिक प्रतियोगिता में भी आ जाएगा, जो चीन को कतई मंजूर नहीं है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक्ट ईस्ट पॉलिसी की बात कर रहे हैं. आसियान देश भी यही मानते हैं कि भारत को इस इलाके में बड़ी भूमिका अदा करे निभाना चाहिए, जिससे कि चीन को जवाब दिया जा सके. मोदी की इंडोनेशिया यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच समुद्री व्यापार को दोगुना करने पर भी सहमति बनी है. आर्थिक हितों की रक्षा के लिए समुद्री मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का जो संकल्प लिया गया है, वह भी चीन को शायद ही रास आए.
विदेश मंत्रालय के अधिकारी पीएम मोदी की तीन देशों की यात्रा को सफल मानते हैं. अधिकारियों के मुताबिक, नई दिल्ली के मजबूत कोशिशों को आगे जाकर फायदा जरूर मिलेगा. भारत सबांग के मलक्का स्ट्रैट को खोलने में कामयाब होगा. क्योंकि, यहां से उसका 60 फीसदी विदेशी व्यापार होता है.
बता दें कि हाल ही में वियतनाम ने भारत को साउथ चाइना सी में इन्वेस्टमेंट के लिए न्योता दिया था. इस पर चीन ने आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि हमारे पड़ोसी को विकास करने का हक है, लेकिन वह हमारे मामले में दखलअंदाजी न करे. साउथ चाइना सी के बड़े हिस्से पर चीन अपना अधिकार मानता है. वह साउथ चाइना सी के विवादित आइलैंड्स पर कई डेवलपमेंट्स मसलन एयरोस्ट्रिप बना चुका है.
गौरतलब है कि बीते महीने वियतनाम के दो युद्धक जहाजों को साउथ चाइना सी में देखा गया था. बता दें कि वियतनाम के ज्यादातर सबमरीन भारत में प्रशिक्षित होते हैं.
(साभार- न्यूज़- 18)
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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