फेसबुक खतरनाक है और श्रीलंका की हिंसा ने इसे साबित कर दिया है
फेसबुक वहां खबर और सूचनाएं पाने का पहला प्लेटफॉर्म है. लोकल मीडिया को फेसबुक रिप्लेस कर चुका है, इसलिए कोई इन्हें जांचता भी नहीं
फेसबुक अभी अपनी परेशानियों से उबरा नहीं है लेकिन एक और बड़ी मुसीबत खड़ी होने वाली है. और ये भी परेशानी उस आशंका के सच होने जैसी है, जिसके चलते फेसबुक आलोचनाओं के घेरे में है. श्रीलंका में फरवरी में हुई हिंसा के पीछे फेसबुक की बहुत बड़ी भूमिका रही है. श्रीलंका में फेसबुक मेनस्ट्रीम मीडिया को किनारे कर चुका है और वहां लोग सूचनाओं और खबरों के लिए फेसबुक का रुख करते हैं. लेकिन कनेक्टिविटी और विचार साझा करने के मकसद से बना ये सोशल प्लेटफॉर्म श्रीलंका में हेट स्पीच का गढ़ बन चुका है.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने श्रीलंका में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर एक रिपोर्ट के लिए इन्वेस्टीगेशन की, जिसमें हिंसा के लिए गलत इन्फॉर्मेशन और झूठी खबरों की उपज फेसबुक पर हुई, ऐसा सामने आया है. फेसबुक पर क्या पब्लिश होता है, इस पर कंपनी का कोई कंट्रोल नहीं होता लेकिन फेसबुक ये जरूर तय करता है कि आपको आपकी रुचि की खबरें ही न्यूज फीड में दिखें. श्रीलंका में फेसबुक को हेट स्पीच और मिसइन्फॉर्मेशन के लिए इस्तेमाल किया गया और इसके नतीजे में पूरे देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी. श्रीलंका की सरकार ने फेसबुक को बैन भी कर दिया था. ये घटना बताती है कि फेसबुक किस कदर खतरनाक हो चुका है.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि समय-समय पर न्यूजफीड पर सामुदायिक नफरतों से भरे पोस्टों की भरमार होती है. फेसबुक वहां खबर और सूचनाएं पाने का पहला प्लेटफॉर्म है. लोकल मीडिया को फेसबुक रिप्लेस कर चुका है, इसलिए कोई इन्हें जांचता भी नहीं. और चूंकि फेसबुक मीडिया ऑर्गनाइजेशन नहीं एक सोशल प्लेटफॉर्म है तो सरकार भी इसपर कोई ज्यादा जोर नहीं चला पाती. और इस तरह फेसबकु से मिलने वाली गलत-झूठी खबरों और हेट स्पीच से प्रभावित होकर लोग असल जिंदगी में विनाशकारी काम करते हैं.
श्रीलंका में फरवरी में हुए हिंसा का आधार फेसबुक पर ही डाला गया था. हिंसा की जड़ ये थी सिंहली-बौद्ध समाज को बांझ बनाने के लिए मुस्लिमों की तरफ से साजिश रची गई थी. इस अफवाह के बाद ये नफरत और गुस्से से बढ़कर हिंसा में बदल गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत भी हो गई.
ये घटना बताती है कि जिस बात का डर अभी भारत, अमेरिका और यूरोप में फैल रहा था उसका एक नमूना श्रीलंका में दिख गया है.
भारत में भी अगर आप सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं तो आपको भी आए दिन हेट स्पीच, मिसइन्फॉर्मेशन, फेक न्यूज से दो-चार होना पड़ता होगा. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को प्रेसिडेंसी दिलाने में फेसबुक के मिसयूज का बवाल बड़ा है. वहां भी अश्वेत और अप्रवासियों के खिलाफ नफरत और हिंसा बढ़ी है और इसके पीछे फेसबुक की बड़ी भूमिका रही है.
यहां फेसबुक की बड़ी भूमिका रहने से आशय फेसबुक के इन्वॉल्वमेंट से नहीं फेसबुक के प्लेटफॉर्म के मिसयूज और उसके लापरवाह बने रहने से है. जब फेसबुक हमारे बारे में छोटी से छोटी जानकारी भी नोट कर सकता है और हमारी रुचि के हिसाब से हमें फीड दिखा सकता है तो वो ये क्यों नहीं देख सकता कि हम क्या शेयर कर रहे हैं या हम किसी तरह की हिंसा भड़का रहे हैं या नहीं?
फेसबुक कहता है कि वो किसी तरह के हिंसा या किसी को आहत करने वाले पोस्ट को बढ़ावा नहीं देता है और वो अपनी मनमर्जी अनुसार किसी को भी ब्लॉक या सस्पेंड कर सकता है, फिर वो हेट स्पीच और मिसइन्फॉर्मेशन पर ध्यान क्यों नहीं देता? जिज्ञासावश ये सवाल है कि जब फेसबुक हमारी फीड और हमारे डेटा के लिए इतना सबकुछ करने में सक्षम है तो वो हेट स्पीच, फेक न्यूज और मिसइन्फॉर्मेशन के बारे में कुछ क्यों नहीं कर सकता?
ठीक है कि हम न फेसबुक से उम्मीद कर सकते हैं न गूगल से उम्मीद कर सकते हैं कि वो इंटरनेट पर घूम रही हर खबर को वेरिफाई करें लेकिन इस बारे में कुछ तो करना होगा, कम से कम कंटेट पर तो नजर रखी जा सकती है. या लोगों को आगाह भी किया जा सकता है. इस बारे में कोई फीचर लाया जा सकता है, ऐसा असंभव तो नहीं.
और ये कहना कि फेसबुक का कमजोर होना हमारे लिए सही है, इस स्थिति में बिल्कुल ठीक है.
(साभार- फर्स्ट पोस्ट)
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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