सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट के लिए पौराणिक राम सेतु को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे: सुप्रीम कोर्ट में केंद्र
प्रोजेक्ट के तहत भारत और श्रीलंका के बीच दो चैनल बनाए जाने हैं। स्वामी ने प्रोजेक्ट के खिलाफ SC में याचिका दायर की थी।
सेतु समुद्रम परियोजना के तहत श्रीलंका और भारत के बीच जहाजों की आवाजाही के लिए करीब 83 किलोमीटर लंबा चैनल बनाने का प्रस्ताव है। -फाइल
नई दिल्ली, 16 मार्च: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सेतु समुद्रम शिप चैनल प्रोजेक्ट के लिए पौराणिक रामसेतु को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। यूनियन मिनिस्ट्री ऑफ शिपिंग ने जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच के सामने ये हलफनामा दायर किया और प्रोजेक्ट के खिलाफ दायर याचिका को खत्म करने की अपील की। बता दें कि भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इस प्रोजेक्ट के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी।
याचिका में स्वामी ने क्या कहा था?
- सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट को केंद्र को निर्देश देने की अपील की थी। अपील में कहा था कि केंद्र के इस प्रोजेक्ट के चलते किसी भी हाल में पौराणिक राम सेतु को छुआ नहीं जाना चाहिए।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में क्या हलफनामा दिया?
- यूनियन मिनिस्ट्री ऑफ शिपिंग की तरफ से SC में एडिशनल सॉलिसीटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा, "सेतु समुद्रम शिप चैनल प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार पहले तय की गई मार्ग रेखा के विकल्प की तलाश करने की मंशा रखती है। ऐसा करते वक्त रामसेतु पर किसी तरह का प्रभाव या नुकसान नहीं होगा। ऐसा देशहित में है। सरकार ने ये जवाब पहले के निर्देशों के आधार पर दाखिल किया है। इस पक्ष को देखते हुए स्वामी की याचिका को अब खत्म कर दिया जाना चाहिए।"
हलफनामे पर स्वामी ने क्या कहा?
- स्वामी ने शुक्रवार को ट्वीट किया कि अब वे जल्द ही सुप्रीम कोर्ट जाएंगे और ये अपील करेंगे कि राम सेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए।
क्या है सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट?
- यूपीए सरकार के वक्त 2005 में इस प्रोजेक्ट का ऐलान किया गया था। शुरुआत में इस प्रोजेक्ट की लागत करीब ढाई हजार करोड़ थी, जो कि अब 4 हजार करोड़ तक बढ़ गई है। इसके तहत बड़े जहाजों के आने-जाने के लिए करीब 83 किलोमीटर लंबे दो चैनल बनाए जाने थे। इसके जरिए जहाजों के आने-जाने में लगने वाला वक्त 30 घंटे तक कम हो जाएगा। इन चैनल्स में से एक राम सेतु जिसे एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, से गुजरना था। अभी श्रीलंका और भारत के बीच इस रास्ते पर समुद्र की गहराई कम होने की वजह से जहाजों को लंबे रास्ते से जाना पड़ता है।
(साभार: दैनिक भाष्कर)
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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