
मौलाना मंज़ूर अहसन एजाज़ी- आईये, जंग- ए- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार को जानते हैं ...
"लहू बोलता भी है'
ज़रा याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आये....
मौलाना मंज़ूर अहसन एजाज़ी
मंज़ूर अहसन एज़ाज़ी - की पैदाइश सन् 1898 में कस्बा दिहुली (मुज़फ़्फ़रपुर) बिहार मंे हुई थी। आपके वालिद का नाम मौलवी हफीज़ुद्दीन हुसैन और वालिदा का नाम महफूज़ुननिसा था। आप अपने तालीम के ज़माने से ही मुल्क की आज़ादी के लिए होनेवाले जलसों और जुलूसांे में शिरकत करते थे, जहां से वापस आकर पहले स्कूल और बाद मंे काॅलेज के लड़कों के साथ आज़ादी की जंग में शिरकत करने की मुहिम चलाते थे। पहली बार जब आप आंदोलन में शरीक हुए उस वक़्त आपकी उम्र 15 साल की थी, जिसकी बिना पर गिरफ़्तार करके आप छोड़ दिये गये। आप स्टूडेंट लीडर की हैसियत से काॅलेज के साथियों को साथ लेकर जंगे आज़ादी के लिए किये जा रहे जलसों में शरीक होते थे। आपके साथ नौजवानों की बड़ी तादात के बारे में सुनकर महात्मा गांधी ने आपको चम्पारन बुलाया, जहां आप गांधीजी के अलावा उस दौर के फायर ब्रांड कौमी लीडर मौलाना हसरत मोहानी से भी मिले और उनकी सलाह पर सन् 1917 में रोलेक्ट एक्ट के ख़िलाफ़ आंदोलन में हिस्सा लिया। फिर आप चम्पारन के किसान सत्याग्रह मंे शामिल हुए। अपनी मुलाज़िमत को छोड़कर सन् 1919 मे आप इण्डियन नेशनल कांग्रेस के यूथ लीडर की हैसियत से खि़लाफ़त और नाॅन काॅपरेटिव मूवमेंट में सरगर्मी से शामिल हुए। आपने आंदोलन के लिए चन्दा इकट्ठा करने में भी बहुत मेहनत की और लाखों रुपये फण्ड मंे जमा कराया। सन् 1921 मंे पहली बार आप जेेल गये। फिर तो जैसे जेल जाना आपका शग़ल हो गया। सन् 1930 में भी आप सत्याग्रह करते हुए पकड़े गए और जेल गये, जहां डेढ़ साल की सज़ा काटी। आप डाण्डी मार्च में सन् 1941 में, उसके बाद व्यक्तिगत सत्याग्रह मंे सन् 1942 मंे भी जेल गये। सन् 1942 मंे मुज़्ाफरपुर लोकल बोर्ड (म्युनिस्पेल्टी) के आप चेयरमैन चुने गए। आंदोलन से जो वक़्त मिलता उसे आप समाजी व तालीमी वेलफेयर के कामों मंे लगाते थे। आपने इसी साल सन् 1942 में क्विट इण्डिया मूवमंेट मंे ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ बहुत ज़बरदस्त सत्याग्रह किया, जिसमें गिरफ़्तार हुए और 4 साल क़ैद की आपको सज़ा हो गयी। मौलाना मंज़्ाूर अहसन एजाज़ी साहब ने अपनी 45 साला ज़िन्दगी मंे कुल 13 साल जेल मंे ही गुज़ारी थी। इस दौरान आप अलीपुर जेल, अलीगढ़ जेल, बक्सर जेल, मुज़फ्फरपुर और दीगर जेलो मंे रहे। आप बिहार लेजिसलेटिव एसेम्बली के लिए फ़तेहपुर सीट से जीतकर एम.एल.ए. बने और सन् 1962 तक रहे। आपने हिन्दू-मुस्लिम इत्तहाद के लिए हमेशा कोशिशें कीं और उनमें कामयाब भी रहे। आपकी पूरी ज़िन्दगी मुल्क की जंगे आज़ादी के काम आयी। आप 17 मई सन् 1969 को इस दुनिया से विदा हो गये।
(साभार: शाहनवाज़ अहमद क़ादरी)
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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